शनिवार, 30 जनवरी 2010
नैतिकता, आनंद, दोयम दर्ज़ा , इन शब्दों पर फ़्लैशबैक के साथ ,कुछ ट्रेलर
ये तो मैं बहुत पहले ही समझ चुका था कि हिंदी ब्लोग्गिंग मे भी अन्य सभी समाजों की तरह मुद्दों की कंगाली का दौर तो आता जाता ही रहता है और उसी का ये परिणाम होता है कि फ़िर मुख्य धारा के विषयों, और आलेखों के ऊपर अक्सर वो कहते हैं अलाने फ़लाने..........या फ़लाने ढिमकाने वाले मुद्दे ही हावी हो जाते हैं । हिंदी ब्लोग्गिंग में जब से कदम रखा है और कुछ सीखा हो न हो इतना तो अंदाजा हो ही गया है कि यहां शब्दों का नित नया संधान और उपयोग होता है । उसका बहुत से अर्थों में उपयोग या आप दुरुपयोग भी मान सकते हैं , होता है या शायद किया जाता है । हमें भी कभी कभी ऐसा मौका मिल ही जाता है । पिछले दिनों एक से एक शब्दों पर काफ़ी विचार मंथन चल रहा है , कुछ हमारे भी हत्थे चढ गए ..हत्थे इसलिए क्योंकि पल्ले पडे नहीं सो मत्थे चढे नहीं ....।
पहले बात करते हैं नैतिकता की , हम और हमारे मित्र श्री लपटन जी अक्सर ही इन मुद्दों पर बतियाते हैं ....सो हमने उन्हीं से सारे घटनाक्रम पर उनके दिव्य ज्ञान से कुछ प्रकाश डालने को कहा । वे कहने लगे क्यों ..भाई ये आज अचानक नैतिकता की याद कैसे हो आई । अमां जब तुम लोग एक दूसरे की टांग खींचते रहते हो, अनाम शनाम , गुमनाम बनके एक दूसरे को बदनाम करने का पुनीत शुनीत काम बेहिचक और बदस्तूर करते हो , तब तो तुम लोगन को कोई नैतिकता नाम की चिडिया की याद नहीं आती अब ई अचानक कईसे जाग गई भाई ,...कौनो राज पिछले जनम का खुला है का ?
अरे नहीं लपटन जी, पाप ......ओह मेरा मतलब राज तो इसी जनम का है मगर आजकल इसका राजफ़ाश हो रहा है इसलिए याद आ रहा है ,आपही कुछ बताईये न इस बारे में , हम लपेटते हैं .....
अच्छा तो सुनो अथ कथा नैतिकता पुराण भाया लपटन .........देखो बहुत समय पहले की बात है ......यहां बहुत समय पहले का भावार्थ समझ गए न .........बहुत समय पहले मतलब एक आध साल पहले ...मगर इसका उपयोग इस तरह से किया जाता है ...जैसे युगों पहले कोई डायनासोर के पैदा होते समय ही ब्लोग्गिंग शुरू की गई हो , खैर , तो बहुत समय पहले की बात है .........कुछ बहुते साहित्यकार, लेखाकार,चिट्ठाकार, .....यार और जितने तरह के कार हैं ...सब लगा लो , ........
मतलब ..बेकार, मक्कार, धिक्कार, ...और
राम राम , अबे तुम तो चुप ही रहो , यहां बालकाण्ड शुरू हुआ नहीं डायरेक्ट लंका कांड पर पहुंच गए , चुपचाप लपेटो......तो कुछ उन लोगों ने जब लिखना पढना शुरू किया ....तो सोचा कि यार खाली लिखते पढते , फ़िर पढते लिखते ,,,और बस यही करते हैं चर्चा तो करते नहीं कोई भी ..इसी बात को ध्यान में रख कर चर्चा शुरू की गई । बस चर्चा की चर्चा चल निकली .........अमा ऐसे नहीं जैसे जलूस निकलता है ..ऐसे जैसे बारात निकलती है । मगर तब इत्ता आज जैसा अनैतिक समय कहां था , कि लोग बाग सिर्फ़ पोस्ट और टीप तक सीमित रह जाते , सो आगे बढ के बात घर द्वार , पडोसी, परिवार , समाज तक पहुंची , किसी को बलात्कारी घोषित किया गया तो किसी को व्याभिचारी, ...किसी का मोहल्ला बिगडा तो किसी का कुनबा , मगर मजाल है किसी की जो किसी ने .........वो क्या कह रहे थे तुम एक फ़ालतू सा शब्द ........हां नैतिकता ......की बात किसी ने की हो । अरे जरूरत ही नहीं थी भाई उसकी ।
फ़िर समय बदला ,और डायनासोर के साथ अन्य छोटे जीवजंतु भी पैर पसारने लगे , तब चर्चा को और विस्तार देने के ख्याल से उसका विस्तार करते करते निस्तार कर दिया गया । अब छोटे जीव जंतु तो उत्ते बडे साहित्यिक कलेजे वाले थे नहीं , मगर उनकी चर्चा भी जरूरी थी क्योंकि चर्चाकार के चर्चा करने का मकसद था , " हमें जिस चर्चा में आनंद आता था हम उसकी ओईसन चर्चा करने लगे " टाईप , की चर्चा । तो फ़िर उनकी चर्चा कैसी होती ...बस चर्चा का होई बेचारे जीव जंतु सब के चर्चे कम परखच्चे ज्यादा उडने लगे । अजी कभी स्टिंग , कभी कटिंग, कभी ...अरे छोडो यार अब कित्ते बहाने गिनाएं ....बस समझो कि होने लगी । मुदा तभियो ......मजाल है किसी की जो किसी ने .........वो क्या कह रहे थे तुम एक फ़ालतू सा शब्द ........हां नैतिकता ......की बात किसी ने की हो । अरे जरूरत ही नहीं थी भाई उसकी ।
इसके बाद फ़िर समय बदला ...छोटे छोटे जीव जंतु भी चर्चा करने की सोचने लगे .......फ़िर अलानी फ़लानी , ढिमकानी , बेगानी ........और जाने कैसी कैसी चर्चा करने लगे ...चर्चा ये भी चल निकली .........यार कमाल तो यही है इस देश समाज का कि ..खर्चा चाहे निकले न निकले ......चर्चा जरूर चल निकलती है ...तो बस चल निकली । बस इसके बाद सुगबुगाहट शुरू हुई ......अरोप , गंभीर आरोप , और गंभीरतम आरोप लगे ..........कहा पूछा जाने लगा ........अबे काहे की चर्चा बे , जाने किस किस , जिस तिस , अपने बेगानों की, दीवानों मस्तानों की, फ़लाने ढिमकानों की .........मतलब यार किसी की भी चर्चा कर दी कैसी भी कर दी कभी भी कर दी ....ऊपर से किसी का माखौल नहीं उडाया , किसी से मौज नहीं ली , किसी को ठेस नहीं पहुंचाई , तो फ़िर कैसी चर्चा जी । इस बीच रही सही कसर पूरी हो गई , जब सुना कि कोई शौपिंग मौल इसी नाम का किसी ने खरीद लिया ......अब खरीद लिया तो खरीद लिया ......अब किसी से पैसे से थोडे खरीदा ......न ही ऐसा कि किसी ने बयाना दिया हुआ था पहले .............बस जी हो गई स्केटिंग शुरू ।तो यहीं से हिंदी ब्लोग्गिंग के इतिहास में नैतिकता का इतिहास शुरू होता है
आगे की कथा के लिए देखना /पढना न भूलें ........अगला अध्याय
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व्यंग्यकार का नाम तो इस समय याद नहीं आ रहा लेकिन उनकी लिखी ये बात दिमाग में है...उन्होने लिखा था कि "आज के इस धमाचौकडी युग में वही वंदनीय पुरूष है जिसने नैतिकता को समेटकर टांगों के बीच रखना सीख लिया है"...हालांकि जरूरी नहीं कि हम इस कथन से सहमत हों..वो तो वैसे ही दिमाग में आ गया तो लिख दिया.
जवाब देंहटाएंयूँ भी टिप्पणी करनी थी तो कुछ तो लिखना ही था :)
Pooree baat to samajhme nahi aayi...hamare agyan kee maafee chahte hain!
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ बदला, कुछ भी नहीं बद्ला।
जवाब देंहटाएंअरे अजय भाई,
जवाब देंहटाएंआपको नहीं पता चला, नैतिकता तो कब की बेहया नाम के शख्स के साथ ब्लॉगिंग के घर से भाग गई थी...फिर दोनों ने खुदकुशी कर ली...हां, औलाद ज़रूर छोड़ गए...नाम है...'मियां जी...ज़रा सुनो'...सुना है कुछ और औलादें भी
हैं...उनके नाम पता चलें तो बताइएगा...
जय हिंद...
पिक्चर अभी बाकी है ....!!
जवाब देंहटाएंचलिये हम भी थोड़ा इतिहास से परिचित हो लें
जवाब देंहटाएं"बालकाण्ड शुरू हुआ नहीं डायरेक्ट लंका कांड पर पहुंच गए"
जवाब देंहटाएंअजय जी, लंकाकाण्ड से ही तो मौज लिया जाता है, बाकी काण्डों में धरा ही क्या है?
किसी का मखौल नहीं उडाया , किसी से मौज नहीं ली , किसी को ठेस नहीं पहुंचाई , तो फ़िर कैसी चर्चा जी ?
जवाब देंहटाएंऎसी भी क्या जल्दी है :-)
बिल्कुल सटीक है जी.
जवाब देंहटाएंरामराम.
हां सही तो है.
जवाब देंहटाएंइस देश में सरकार से लेकर बेकार तक सभी प्रकार के लोग चर्चाओं में बहुत दिल से विश्वास रखते है ..परिणाम कुछ हो ना हो लाभ कुछ हो ना हो चर्चा ज़रूर होनी चाहिए और कुछ इसी प्रकार नैतिकता का भी जन्म होता है...बढ़िया प्रसंग...धन्यवाद अजय भाई
जवाब देंहटाएंनैतकता के पतन पर भी कोई अध्याय होगा क्या ?
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