शनिवार, 2 जनवरी 2010
प्राथमिक विद्यालय, बिहार का विकास , सच या झूठ (ग्राम प्रवास -३ )
जैसा कि पिछली पोस्टों में भी कह चुका हूं कि इस बार ग्राम प्रवास के दौरान जिस बात की सबसे अधिक जिज्ञासा थी वो बात थी बिहार में बह रही विकास की बयार को महसूस करना । क्योंकि इधर कुछ समय से बिहार के प्रगति पथ पर लौटने की कई सारी बातें सुनता आ रहा था । यातायात के क्षेत्र में तो सही मायने में अभी फ़िलहाल बिहार जिस तेजी से विकास की राह पर चलता हुआ दिख रहा है , उसने बहुत ही राहत पहुंचाया दिल को । कहने वाले तो कहते हैं कि आजादी के बाद पहली बार बिहार में रेल और सडक यातायात पर इतना ध्यान दिया जा रहा है , हो सकता है सच भी हो , क्योंकि मैंने अपने पिछले बीस वर्षों के दौरान भी ऐसा ही कुछ पाया । मगर गौर से देखें तो पता चलेगा कि इसमें राज्य सरकार की भूमिका कम और केंद्र की ही ज्यादा दिखाई देती है । क्योंकि चाहे वो राष्ट्रीय राजमार्ग के पुनरुद्धार की बात हो या नई रेल लाईनों के बिछाने का कार्य दोनों में ही केंद्र सरकार का हाथ है । मगर यहां मेरे जैसे आम लोगों के लिए ये भी बहुत बडी तसल्ली का कारण है कि कम से कम राज्य सरकार इस काम को होने तो दे रही है बिना किसी अडचन के ......और देर सवेर इसका असर तो दिखना ही है ।
अब इसके पहले कि और किसी मुद्दे पर बात छेडूं , पहले अपने ग्राम के प्राथमिक विद्दालय की खोज ली जाए । मेरे गांव के लगभग मध्य में स्थित और ग्राम के बींचो बीच से गुजरने वाली मुख्य सडक के किनारे स्थित इस विद्यालय में मैं कभी नहीं पढा, (क्योंकि पिताजी की फ़ौज की नौकरी के दौरान हम सब उनके साथ बाहर ही बाहर रहे ) मगर फ़िर भी इस विद्दालय के प्रति एक अजीब सा लगाव रहा मुझे । यही कारण था कि मैं जब भी गांव आता इस विद्यालय का एक चक्कर जरूर लगाता , शिक्षकों से मिलता, उनसे बातचीत करता , और जो भी कठिनाईयां होती उन्हें सुनने समझने की कोशिश भी करता । नौकरी में आने के बाद गांव जाना उतना तीव्र नहीं रहा सो उदासीनता बढती गई । और शायद ये कारण भी था कि उस विद्यालय में पढाई का, खुद विद्यालय का, पानी , शौच आदि की व्यवस्था सभी का कुल मिला के ऐसा हाल देख रहा था कि मुझे लग रहा था कि बेहतर होता यदि इस विद्यालय को बंद कर दिया जाता । मगर अपने पिछली ग्राम यात्रा के दौरान कुछ सकारात्मक परिवर्तन देखे तो मुझे बेहद खुशी हुई । पता किया तो विद्यार्थियों की संख्या में बढोत्तरी, भवनों के निर्माण , और भी कई तो सोचा कि यही मौका है कि इस विद्यालय में जब विकास का पौधा लगाया ही जा रहा है तो उसे खाद पानी के रूप में मैं भी कुछ योगदान कर सकूं । और उसी के अनुरूप मैंने विद्यालय के मा साब को एक चिट्ठी लिखी थी ।
इस बार उसी उत्साह के साथ मैं विद्यालय पहुंचा । वहां जाकर देखा तो मन फ़िर उदास ही हो गया । वहां जो मा साब थे वे असल में शिक्षामित्र के रूप में नियुक्त थे और असल में तो वे शिक्षामित्र भी नहीं थे उन्हें हमारे विद्यालय के एक मात्र शिक्षक ने जाने कितने पारिश्रमिक पर , जो कि सुना वे अपनी तनख्वाह से ही निकाल के देते थे , उसे रखा था सहयोग के लिए । आप चौंक गए कि आठवीं कक्षा तक का विद्यालय , कुल चार सौ विद्यार्थी, और शिक्षक , सिर्फ़ एक ...............रुकिए अभी थोडा सा और रुकिए और अब लिजीये दूसरा झटका झेलिए ....वे शिक्षक , जी जो एक मात्र शिक्षक हैं वे हैं शारीरिक शिक्षा के । यानि विषयों को पढाने वाला कोई भी शिक्षक नहीं है उस प्राथमिक विद्यालय में पिछले लगभग दो सालों से । मैं अब बेहद हैरान और व्यथित थ अकि जिस विद्यालय में पिछले दो वर्ष से कोई शिक्षक ही नियुक्त नहीं है वहां मेरी योजना क्या और कितना काम कर पाएगी । वहां तब उपलब्ध एक मात्र शिक्षक महोदय ने बताय अकि इस विद्यालय को संकुल मौडल के रूप में चुना गया है ॥ यानि अन्य विद्यालयों की तुलना में एक आदर्श विद्यालय , उफ़्फ़ तब ये स्थिति है । अलबत्ता पूछने पर पता चला कि भवन निर्माण का कार्य /दोपहर भोजन योजना आदि सुचारू रूप से चल रहे हैं । अब मेरी मुश्किल ये थी कि मैं उन दो बच्चों को ( जिन्हें प्रोत्साहन राशि देने की योजना बनाई थी ) चुनने का दायित्व सौंपा किसे जाए ॥ इस समस्या का जो हल निकला वो सुखद और दिलचस्प था , मगर उसे मैं आपको इस यात्रा संस्मरण के आखिरी भाग में बताऊंगा । इसके बाद मैंने शिक्षक महोदय से वो तमाम जानकारियां हासिल की जिसके आधार पर विद्यालय के लिए शिक्षक मुहैय्या कराने का प्रयास करना था ॥
चलते चलते इसी बहाने बिहार के विकास पर कुछ बातें हो जाएं । यातायात साधनों से इतर जब विकास का जायजा लिया तो उद्योग, चिकित्सा, सुरक्षा , सुरक्षा, विद्दुतीकरण ,लघु उद्योग आदि के स्थिति में बहुत अधिक परिवर्तन न देख कर मन थोडा उदास हुआ । माना कि वर्तमान सरकार और शासन व्यवस्था , स्थिति को रातोंरात नहीं बदल सकते थे किंतु मेरी समझ में ये नहीं आखिरकार वो क्या कारण हो सकते हैं कि पिछले तीन दशक में हमारे गांव से जिला नगर मधुबनी के बीच एक भी प्राथमिक चिकित्सा केंद्र तक नहीं मुहैय्या कराया जा सका है । न जाने किस या किन किन सरकारों के कार्यकाल में बंद हुए पेपर मिल, सूत मिल, चीनी मिल जैसी हज़ारों औद्योगिक ईकाईयों में से एक भी क्यों नहीं शुरू हो पा रही है ।
(सालों से बंद पडा हुआ अशोक पेपर मिल )
हालांकि पिछले ही कुछ समय में पटना डेयरी उद्योग द्वारा स्थापित , सुधा डेयरी उद्योग ने सफ़लता की वो कहानी लिख दी है और अभी भी लिख रही है , जिसने बिहार में उद्योग धंधे से जुडे किसी भी भ्रम को तोडने के लिए प्रमाण के रूप में काफ़ी है ।
( रेलवे प्लेटफ़ार्म पर सुधा का एक आउटलेट )
तो आज के लिए इतना ही .............कल आपको अपने गांव के पेड पौधों से मिलवाऊंगा , उनकी हरियाली देख के आपकी भी तबियत हरी हो जाएगी ऐसा विश्वास है मुझे ॥
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बढिया प्रस्तुति। अमूमन ज्यादातर गाँवों का यही हाल मिलेगा। बदलाव हो रहा है यही सूकून की बात है।
जवाब देंहटाएंअभी वक्त लगेगा कल्पना को साकार होने में
जवाब देंहटाएंचित्र अपनी कहानी कह रहे
बी एस पाबला
भाई! गाँव में बहुत काम कर के आए हो। सही सूचनाएँ लाना भी बड़ा काम है। गांव में विकास की संभावनाएँ बहुत हैं। सरकारें यदि सकारात्मक रुख अपनाएँ तो ग्राम विकास के लिए सामुदायिक सहयोग भी प्राप्त किया जा सकता है। लेकिन जानकर दुखः हुआ कि शिक्षा और स्वास्थ्य के प्रति आजादी के बासठ वर्ष बाद भी स्थिति सुधरी नहीं है।
जवाब देंहटाएंधीरे धीरे सुधार हो रही है..आशा है आने वाले कुछ दिनों मे सब बढ़िया हो जाएगा..बढ़िया विवरण..अजय जी!!
जवाब देंहटाएंजल्द ही तस्वीर बदलेगी...उम्मीद पे दुनिया कायम रखिए
जवाब देंहटाएंगांव में तो आपको पोस्ट लिखने के बहुत सारे मुद्दे मिल गए .. बिहार तो आपको विकास के पथ पर भी दिखा .. हमें तो अफसोस इस बात का कि झारखंड तो पीछे जा रहा है !!
जवाब देंहटाएंअजय जी आप ने जो चित्र गांव का खींचा है उस के हिसाब से तो अभी हम युरोप से २०० साल पीछे है, फ़िर हमारी राज्य सरकारे किस बुते पर जीत हांसिल करती है? शायद इस से अच्छे हालात तो ६२ साल पहले होंगे, यानि हम आगे जाने की वजाये पीछे जा रहे है, हम कदम कदम पर इस युरोप की नकल करते है, लेकिन सिर्फ़ गलत कामो मै
जवाब देंहटाएंधन्यवाद इस लेख के लिये
बिहार की प्रगति के बारे में जानकार अच्छा लगा ...
जवाब देंहटाएंआपकी अगली प्रविष्टि में आम और लीची के बागीचों के बीच से गुजरती सड़क की तस्वीर का इन्तजार रहेगा ...!!
बहुत अच्छी रचना। बधाई।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल समाज के एक सजग प्रहरी की नज़र से आप ने गाव की दशा को दर्शाया है । गाव की इस सतही हकीकत से रूबरू कराने के लिए शुक्रिया ।
जवाब देंहटाएंबदलाव होना ही चाहिये. कमोबेश एक ही स्थ्ति हैं. अगले भाग का इंतजार है. बहुत शुभकामनाए,
जवाब देंहटाएंरामराम.
एक बार बेतिया जाने का अवसर मिला था ।
जवाब देंहटाएंपटना से मुजफ्फर पुर होते हुए बेतिया, पूरे रस्ते में एक भी इंडस्ट्री या फैकट्री नहीं।
विकास हो तो कैसे। सारी ज़मीन जमींदारों के पास, जो थोड़ी बहुत गरीब के पास, उस पर हर साल गंगा में आई बाढ़ बहा कर ले जाये।
विकास हो तो कैसे। और प्रशासन ---??
राज्य सरकार का संवेदनशील होना जरूरी है विकास के लिए . चलिये एक आशा की किरण तो दिख रही है .
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