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रविवार, 19 जनवरी 2014

रिपोर्ट चंपू जी वाया मफ़लर ट्रैंड एंड चादर .....

नेट से मिले चंपू जी की लेटेस्ट पोज़ वाली फ़ोटो





अरे हां बहुत दिन हुए चंपू उर्फ़ हमारे तेज़म तेज़ पत्रकार बोले तो रपोटर रपट पेश नहीं किए , लीजीए उनका ताज़ा ताज़ा अपडेट , पिछले एक आध दिन का है

चंपू जी खडे हैं अक्षरधाम पुलवा के पास ( अब इनका कपार खराब है तो किया क्या जाए हमेशा शहादत वाली जगह पे नियुक्त किए जाते हैं , वर्ना मिस बिजली को देखिए , सलमान को कवर करती हैं हमेशा ) , तो चंपू जी बताएंगे दिल्ली में पडी सर्दी और कोहरे की मार

आजकल तो मौसम खबर में गाना भी चलता है , सो चलने के साथ ही चंपू जी प्रकट

" जैसा कि आप देख रहे हैं कि दिल्ली में ठंड और कोहरे की चादर फ़ैल गई ,( और मुझे छोड कर सब साले चादर पे फ़ैले होंगे ) और इस चादर ने पूरी दिल्ली को लपेट लिया है ,
इस कोहरे और ठंड के कारण लोगों को बहुत परेशानी हो रही , खासकर उन लोगों को जो सडकों पे चलते हैं .............."

स्टूडियो से दीमक चौपटिया पूछते हैं , तो क्या फ़ुटपाथ वाले मज़े में हैं यां वे टोपी पे टार्च बांध के लेग ड्राइव कर रहे हैं ....

" फ़ुटपाथ पर अगला बाइट में कवर करिएगा , अभी आगे सुनिए ...
तो जैसा कि आप देख रहे हैं कि कोहरे की ये चादर और मंतरी जी का  मफ़लर , दोनों ही हिट चल रहे हैं आजकल , समझिए कि ट्रेंड हो गए हैं आज के , हां ट्रेंड से दर्शकों को बताते चलें कि बेडा गर्क हो इस ट्रेंड का सुना कल किसी की जिंदगी ही इस ट्रेंड ने सस्पेंड कर डाली जी "

चौपटिया जी : "अरे वो छोडिए , और चादर पर लौट(लोट) जाइए .........

चंपू जी आखिर में आखिर में आस्तीन चढाते हुए , देखिए इत्ता मत लोटने को कहिए हमें , अभी के अभी यहीं रिजाइन मार देंगे और , मफ़लर बांध के मोर्चा संभाल लेंगे फ़िर लेते फ़िरिएगा हमसे बाइट , इंटरव्यू देंगे उनको जो हर हफ़्ते अदालत बिठाते हैं , इत्ती सरकार भी नहीं बिठाती जित्ते उन्होंने बिठा लिए अब तक "

भाड में गया चादर , और भाड में गई सडक , मैं तो खैर खडा ही भाड में हूं , रिपोट को यहीं लपेट रहा हूं , चाय बनवा के रखिएगा वर्ना कैमरा पर्सन भलुआ कह रहा है , खैंची वीडियो को खराब करना उसके बाएं हाथ का खेल है ..खतम किए रिपोर्ट ..रे काट रे भलुआ

:) :) :) :) :) :)

शुक्रवार, 30 अगस्त 2013

कैमरामैन लुट्टन के साथ चंपू जी ,चिंचपोकली "प्याज तक"




टीवी न्यूज़ एंकर चंपू जी : "ये है दरभंगा का वो सुलभ शौचालय जहां पर बताया जाता है कि एक बार यासिन भटकल ने छी छी किया था , आइए पूछते हैं दरबान जी से कुछ खास इस बारे में

दरबान जी बताइए , क्या आपको लगा था कि उस दिन भटकल ने कुछ खास किया था आपके शौचालय में ?

दरबान जी " हां सर , भटकल ने कुछ तो ऐसा किया था उस दिन कि हमारा पूरा सीवर ही अटकल हो गया था उस दिन के बाद

तो देखा आपने किस तरह से हमने एक्सक्लुसिवली आपको बताया कि भटकल ने सुलभ शौचालय में भी अपना दरभंगा मौडयूल छोडा था ।

कैमरामैन लुट्टन जी के साथ मैं ,चंपू जी , सुलभ शौचालय , दरभंगा ,"प्याज तक "

ब्रेक के बाद फ़िर जारी हैं पत्रकार चंपू जी नई रपट के साथ  
न्यूज़ चैनल के पत्रकार चंपू जी : भटकल के अब्बा लटकल से : क्या आपको लगता है कि आपका बेटा बेगुनाह है ?

टीवी दर्शक : चंपू जी , क्या आपको लगता है कि इससे भी बडा बेवकूफ़ी का सवाल कोई और रिपोर्टर पूछ सकता है , या आपने सबसे बडा पूछ लिया ?

चंपू जी : नहीं नहीं , अभी तो इंडिया टीवी वाला रिपोर्टर का भी पूछना बांकी है :)

स्टूडियो से मैं  झिंगुर चौधरी इसी के साथ आपको बताता चलूं कि आज के लिए यही विषय होगा हमारी "हडबडी बहस"  के लिए , तो देखना न भूलें आपके अपने चैनल ,

कल से लेकर आज तक , एक ही चैनल "प्याज तक "


सोमवार, 5 अक्टूबर 2009

कमाल है, हर साल पर्यावरण दिवस मनाते हैं...फ़िर ये बाढ क्यों....?



अभी तो दिल्ली की गरमी से थोडी बहुत राहत मिलनी शुरू हुई थी...थोडी सी बूंदा बांदी से लगने लगा था कि अब कम से कम इस बात का एहसास तो होगा कि सच में ही अक्तूबर का महीना आ गया है। मगर ये क्या अब सुन रहा हूं कि दक्षिण भारत में भारी बारिश से भयंकर बाढ आ गयी है। लाखों घर और नगर डूबे पडे हैं। इस बार बिहार से बंगलौर शिफ़्ट हो गये बाढ देवता.....मतलब चाहे जगह बदल लो .....मगर आओगे जरूर।


लेकिन ये क्या मतलब है जी इस बात का....जब हम हर साल इत्ते धूमधाम से विश्व पर्यावरण दिवस मनाते हैं..कित्ता कुछ करते हैं...कित्ता भारी भारी लिखते हैं....सारी संधियों पर भी हमने साईन वाईन कर दिये हैं...और तो और नयी नयी योजनायें भी बनाते हैं...अरे उसको छोडो....अब तो हम हर साल कभी किसी नदी को ....तो कभी किसी जलीय जीव को ..राष्ट्रीय दर्ज़ा दे रहे हैं..पता है राष्ट्रीय दर्ज़ा .....बताओ भला क्या कसर रह गयी....ये मुंए.....बाढ, भूकंप, तूफ़ान, ....फ़िर भी बेशर्मों की तरह मुंह उठाये चले आते है .......क्या इन्हें नहीं पता हमारी इस डेडिकेशन का.......

तभी आकाशवाणी होती है... .बेटा डेडिकेशन ...एक बात बताओ....कभी तुम लोगों ने पेड पौधे लगाये...कभी नदियों की मरती स्थिति के लिये कुछ सोचा...पहाड जो टूट टूट कर गिर रहे हैं...ग्लेशियर पिघल रहे हैं...इन सबके लिये कभी कुछ किया...........?

देखिये अभी तो हम ..पर्यावरण दिवस मना रहे हैं...जब मौका मिलेगा...फ़ुर्सत ्होगी तब ये भी कर लेंगे...अरे हां...हमारे मंत्री जी लगाते तो हैं हर बरस पेड आपने उनकी फ़ोटो नहीं देखी क्या...और सुनिये मिस्टर हवा सांऊड जी ....ये जो आप हमें करने की नसीहत दे रहे हैं......आप अमरीका को क्यूं नही कहते...आखिर उसने ही तो सारा बेडा गर्क किया हुआ है...वो भी तो नहीं करता ये सब...

अबे ओ, ये अपने मंत्रियों का तो नाम न ले ...आज तक तूने किसी मंत्री को भूकंप मे धंसते...या बाढ में डूबते....या तूफ़ान में उड जाते देखा है....नहीं न...तो क्या हुआ , और जहां तक अमरीका की बात है तो भाई...उसने अपने यहां यदि बम बनाये हैं तो इस बात के भी पूरे इंतजाम किये हैं कि यदि कोइ दूसरा उस पर वो बम फ़ोडेगा तो वो कैसे निपटेगा...इसी तरह उसने अपने यहां ...एक आपदा प्रबंधन नाम की नीति बनाई हुई है...सो उसे चिंता नहीं है इसकी...और फ़िर वो कौन सा तुम लोगों जैसे पर्यावरण दिवस...संधि ...वैगेरह में पडता है.......? समझे .....तो मनाते रहो तुम.....और मरते रहो तुम........

आकाशवाणी बंद हो जाती है...।

मंगलवार, 30 जून 2009

राखी सावंत : हिंदी ब्लोग्गेर्स से नाराज और निराश



जी हाँ बिलकुल सच बात है ..सुना है...और आप तो जानते ही हैं मैं कभी झूठ सुनता हूँ भला..कसम पीपल वाले चमगादड़ की कई बार तो खुद चमगादड़ अपने सीक्रेट मुझसे शेयर करते हैं..कोई और सुन नहीं पाता न....खैर इस वाली काबिलियत की कहानी फिर कभी..तो जैसे ही मैंने ये सुना की राखी जी ..अपनी राखी जी..अरे वही देश की बेटी ..जिसने कलयुग में सतयुग का धर्म निभाते हुए स्वयाम्बर की परम्परा को दोबारा जीवित करने का सबसे बड़ा धार्मिक आवाहन किया है ..आज कल ब्लोग्गेर्स से ..वो भी हिंदी के ब्लोग्गेर्स से (वैसे हिंदी के ब्लोग्गेर्स से नाराज रहना एक बड़ा फैशन बनता जा रहा है ..और विद्वान्जानो का कहना है की ये बीमारी जल्दी ही न रुकी तो स्वाइन फ्लू का रूप ले सकती है ) खासी नाराज भी हैं और निराश भी..बस अपना नैतिक...भौतिक..आर्थिक..दैहिक...सात्विक..और भी जितने प्रकार के विक टाईप के कर्त्तव्य होते हैं...उन सभी के मद्देनज़र फ़ौरन से पेश्तर उनसे मुलाक़ात करने की सोची ....मगर हमारे सोचने से होता ..यदि सचमुच ही कुछ होता ..तो कमबख्त उस अनामी के लिए आजकल जितने पापड हमें बेलने पड़ रहे हैं....उसे कोई सी भी ..कोई सी भी ..स्वाइन फ्लू..मैड काऊ...दिमागी बुखार,, अरे छोडिये ..हैजा ही हो गया होता..न भी विदा होता तो थोड़े दिनों के लिए सही किसी डाक्टर के यहाँ तो बैठा होता...अरे चलिए इसे भी छोडिये.
.मिलने गए तो पता चला की उनसे अभी केवल वही मिल सकता है जो उनके लिए मछली ..घड़ियाल..गोद्जिला..एनाकोंडा..जो भी उन्होंने रखा होगा..उसकी अंक में तीर मारने के लिए उतावला होगा...हमने सोचा अजीब मुसीबत है भाई...दूसरा उपाय लगाया...देखिये हमने एक संगोष्ठी ( अरे जिसे आप लोग पार्टी कहते हैं न उसे हम ब्लोग्गेर्स संगोष्ठी कहते हैं ) का आयोजन किया है ..इसमें तो आ सकती हैं........नहीं नहीं जी पार्टी ....से जुडी कुछ विध्वंसकारी यादों के कारण वे इसमें या आपकी जो भी गोष्ठी..है वो ..उसमें नहीं आ सकती...अबे तो क्या नाराजगी कभी दूर ना होगी...कलयुग में ऐसी सतयुगी प्रवृत्ति नारी को यों दुखी छोड़ दें हम...अबे लानत है...और हम धक्का -मुक्की करके चल ही दिए मिलने...जैसे तैसे पहुँच ही गए...कमबख्त ये जैसे तैसे वाली प्रणाली तो हमारे जीवन का मूल मंत्र बन गैयी है...ब्लॉग्गिंग भी चल रही है..जैसे तैसे....

गे गे गे गे ....सामने से गुनगुनाती राखी चली आ रही थी..... हम हैरान...चकित ..अरे राखी जी आप भी ..तो फिर ये स्वयाम्बर ....अरे चुप रहो..तुम ब्लॉगर भी न बिलकुल टी वी वालों की तरह होते जा रहे हो ...पूरी बात सुनते ही नहीं....मैं तो गा रही थी...गे गे गे गे रे..गे रे सायबा......प्यार में सौदा नहीं....न मांगू सोना चांदी ..न मांगू हीरा मोती....अरे अपना पसंदीदा गीत...समझे......ओह हो.....अच्छा सुना है आप हिंदी ब्लोग्गेर्स से नाराज हैं........?

बस राखी जी आ गयी अपने सात्विक मूड में .........अरे छोडो...ये बात...तुम लोग पता नहीं क्या क्या बहस करते हो ....पता नहीं कौन कौन से मुद्दे पर चर्चा..करते हो.....और एक दुसरे को शाबाशी देते हो...तो क्या मैं ही बच गयी थी.....तुमने फिर एक नारी की अवहेलना की है........ये कोई आम पहल नहीं है......इत्ते सारे लोगों में से स्वयाम्बर करके ...एक जने को ...सिर्फ एक जने को चुनना ...कोई हेल्प लाइन नहीं..कोई एस एम् एस भी नहीं....इस बात की कहीं कोई चर्चा नहीं...और तो और ताऊ जी ने भी ..अरे राज जी ने भी नहीं ..इस पर कोई पहेली नहीं पूछे.....जब तुम लोगों ने ही चर्चा नहीं की तो ...शुकल जी से क्या शिकायत करूँ की उन्होंने..चिटठा चर्चा में ..मेरी चर्चा की चर्चा नहीं की...मैं कोई ब्लॉगर तो हूँ नहीं की सीधे सीधे शिकायत कर दूं ...अनाम बन कर इसलिए नहीं किया ...क्यूंकि पता चला है की..कोई जाल वाल ..कोई काँटा डाल रखा है ......बताओ भला आज इस देश में इससे बड़ा क्रांतिकारी कदम है और कोई महिलाओं के परिप्रेक्ष्य में .......मैंने न में मुण्डी हिलाई...जाओ जाओ मुझे अभी ..बहुत से टेस्ट लेने हैं...लड़कों के ....

चलते चलते...हिम्मत करके ..पूछ ही लिया...अच्छा राखी जी यदि आपको कोई भी लड़का पसंद नहीं आया तो ....

हें..हें..बेवकूफ हो क्या...अरे फिर स्वयाम्बर नंबर तू...स्वयाम्बर नंबर थ्री......और जब कुछ भी नहीं तो
गे..गे..गे..गे..गे........

गुरुवार, 25 जून 2009

मोबाईलीताइतिस


(मोबालीतातिस से पीड़ित एक व्यक्ति ) गूगल बाबा से साभार





ये किसी भी लिहाज से ये अच्छी बात नहीं है..एक तरफ इस सूअर फ्लू ने सबको चिंतित और परेशान कर रखा है..इसके बाद बारिश की दो बूँदें पड़ते ही ..डेंगू..मलेरिया..बुखार और पता नहीं क्या क्या ढेर सारी बीमारियाँ ..अपने यहाँ मेहमान बनके आने वाली हैं..मुई कभी ..इस घर में डेरा डालेंगे..तो कभी उस घर में.....

मगर इससे भी ज्यादा चिंताजनक बात तो ये है की ..एक और बीमारी भी चुपके चुपके इन दिनों आपना पाँव पसार रही है....रही है क्या जी..लगभग आधी से ज्यादा नस्ल तो इसकी चपेट में आ भी चुकी है ....आपके ..हमारे..घर..बहार..सड़क पर ..सभी जगह इसकी मरीज आपको दिख जायेंगे....अरे मैं बताता हूँ ना इस बीमारी से ग्रस्त मरीजों के लक्षण..बीमारी का नाम है ..मोबालीताईतिस ..जी हाँ बिलकुल ठीक सुना आपने..

घर से बाहर निकलते ही कई सारे ..बीमार लोग..एक हाथ से या फिर दोनों हाथों से ..मोटरसायकल..कार..अजी अब तो बस, ट्रक..यहाँ तक रिक्शा भी चलाते हुए ....एक तरफ को गर्दन झुकी हुई ..कान और कंधे के बीच दुनिया की सबसे जरूरी वास्तु को टिकाये हुए ..चले जा रहे होते हैं..किसी की कोई फिक्र नहीं होती ...इस नश्वर संसार की सारी चिंताओं से मुक्त ..उनका सारा ध्यान उस देव वाणी की तरफ होता है जो उनके उस यन्त्र (अजी मोबाईल ) से निकल कर आ रही होती है...इस बीमारी के परिणामों की क्या बात कहें....उनका खुद का तो जो होता है ...वो होता ही है...यदि गलती से भी इन मरीजों के सामने ...कोई स्वस्थ इंसान पड़ जाए .....तो बस ..उसका बंटाधार तय है....वैज्ञानिक जो इस बीमारी के इलाज के लिए शोध रत हैं....बताते हैं की..इस बीमारी से बचने के लिए उन्होंने कई यन्त्र आविष्कार किये...जिन्हें हैंड्स फ्री कहते हैं....मगर क्या किया जाए ..कमबख्त मरीज मानते ही नहीं..कहते हैं इस बीमारी में उन्हें मजा आने लगा है...कहते हैं आदत पड़ गयी है...मुआ मोबाईल न हुआ ड्रग्स हो गया जैसे......

तो अब आपको जहां भी ये मरीज दिखें....उन्हें दूर से प्रणाम करके पतली गली हो लें..और दूर जाकर प्रार्थना करें..उनके लिए ...क्यूंकि देर सवेर.....उन्हें इस नश्वर संसार से मुक्ति....नारायण नारायण....वाह गोया ये पोस्ट न हुई हितोपदेश हो गया....

मंगलवार, 9 जून 2009

किस किस के ब्लोग्स को पोलियो ड्रोप्स पीना है..हाथ उठाओ (पसंद न आने पर पोस्ट वापस, ऑफ़र सिमित समय तक )



आज जैसे ही महेंदर भाई ने याद दिलाया कि, सबको अपने स्वास्थय का ध्यान रखना चाहिए ..मेरा ध्यान बरबस ही इस खबर भी चला गया जिसमें रवि रतलामी जी ने आगाह किया है कि इन दिनों कंप्यूटर पर बहुत से जीवाणुओं और कीटाणुओं का हमला हो रहा ( यहाँ ध्यान दें कि मैंने कम्पूटर कहा है,,ईकिसी की पोस्ट पर आने वाली तिप्प्न्नियों को जीवाणु और कीटाणु समझते हैं तो ये आपकी समस्या है ) ..इसके अलावा भी कई लोगों ने शिकयात की है कि किसी के ब्लॉग पर तिप्प्न्नियाँ नहीं हो पा रही हैं तो किसी का ब्लॉग पन्ना ही नहीं खुल रहा है..ऐसी संक्रामक परिस्थितियों में मुझे स्वाभाविक रूप से ब्लॉग की सेहत की चिंता सताने लगी. हो भी क्यों न आखिर ब्लॉग भी तो एक तरह का आदमी ही है...(.मेरा मतलब इंसान है ) स्पष्टीकरण देना ठीक रहता है ..पता नहीं कौन सी महिला शक्ति आपके पीछे पड़ जाए...क्या कह रहे हैं आप ..एक बात बताइये ..ब्लॉग आपके साथ हंसता है रोता है..चलता है रुकता है..और तो और लड़ता है...कई बार आपके साथ दूसरों को गलियाता है...अब सिर्फ इस वजह से कि वो आपके लिए आपकी बीवी से झगडा नहीं करता आप उसे इंसान नहीं मानेंगे ...ये तो आपकी ज्यादती है.....तो भैया कुल मिला कर कहना ये है कि ब्लोगों की तबियत नासाज हो रही है.....

अरे चिंता क्यूँ करते हैं ...हमें कौन सा स्वाइन फ्लू से निपटना हा कि विश्व स्वास्थय संगठन की मदद लेनी पड़ेगी...यहाँ हैं डॉ साहब ....अरे नहीं मैं अनुराग जी कि या पूजा जी की बात नहीं कर रहा...मैं बात कर रहा हूँ डॉ आशीष खंडेलवाल की.. जो समय समय पर ब्लोग्स का इलाज करते रहते हैं ....उनके लिए अब तक न जाने कितने इंजेक्शन..कितने टीके ..और पता नहीं kitane ड्रोप्स का आविष्कार किया है..एक टीका तो आज ही उतारा है ...हमने तो अपने ब्लॉग को लगवा भी लिया है....तो इस समस्या को जब उनके सामने रखा गया ....तो उन्होंने काफी न नुकुर के बाद आखिरकार ब्लोग्स के लिए पुल्स पोस्लियो ड्रोप्स
बनाने की गुजारिश की तो वे मान गए......तो हे बीमार ब्लोग्स के अभिभावकों ..अपने अपने हाथ खड़े करें ...अन्यथा ....ब्लोग्स लंब लेट हो जायेंगे....

वैसे आशीष भाई का जिक्र चला है तो बताता चलूँ कि ...एक तो देर सवेर उनका नाम गिनीज बुक में दर्ज होने वाला है क्यूंकि ..ब्लॉगजगत के सारे ब्लोग्गेर्स उनके फोल्लोवेर्स की लिस्ट में आ ही जायेंगे...और वे आजकल आनाम तिप्प्न्निकारों को ढूंढ ईनिकालने का कोई यन्त्र आविष्कार करने के जिस कार्य में लगे हुए हैं उससे तो उन्हें ब्लॉग्गिंग का नोबेल मिलना पक्का है.....खैर ये बाद की बात है ......(आप लोग उन्हें बताना मत कि मैंने ये खबर लीक कर दी है)

चलते चलते एक आखिरी बात......वो जो मैंने शीर्षक में लिखा था न ,,कि पोस्ट न पसंद आने की सूरत में वापस ले ली जायेगी...ऑफ़र सिमित समय तक ...सो भाई लोगों वो सिमित समय ये पढ़ते पढ़ते ख़त्म हो गया....वैसे भी अपने को पोस्ट वापस लेनी वेनी नहीं आती ........तो भैया जल्दी ही आशीष भाई ..ब्लॉग पल्स पोलियो डे की घोषणा करेंगे...तब तक ब्लॉग को ओ आर एस का घोल पिलायें....

शुक्रवार, 27 मार्च 2009

कार्यक्रम बदला, अब I P L, भारत में और चुनाव अफ्रीका में,

जैसे ही ये एक्सक्लूसिव ख़बर हमने अपने मित्र चिटठा सिंग को सुनाई वे हमेशा की तरह बिदक कर बोले ,
यार झा जी, ई सब एक्सलूसिव टाईप ख़बर कहाँ से ढूंढ कर लाते हो आप, और आपही को मिल जाता ई ख़बर सब, कुछो बोल देते हो।

हम भी टनक कर बोले , क्यूँ भाई आपको हमेशा ही ये शिकायत रहती है की हम सारी एक्सक्लूसिव खबर सिर्फ़ ब्लॉगजगत पर ही क्यूँ प्रकाशित करते हैं जबकि अपने इंडिया टी वी, अमेरीका टी वी, जापान टी वी वाले भी उसके लिए कतना पेमेंट करने को तैयार रहते हैं, अजी छोडिये ई सब बात हम तो ब्लॉगजगत के रिपोर्टर हैं। और हाँ शत प्रतिशत सच्ची ख़बर है ये, आईये आपको विस्तार से बताते हैं।
देखिये आप ई तो जानते ही हैं की अपने देश में लोग चुनाव से ज्यादा प्यार करते हैं की क्रिकेट से,( फ़िर जबसे क्रिकेट टीम में चीयर गल्स को भी शामिल कर लिया गया है तब से तो समझिये की क्रिकत्वा का गल्मर और भी बढ़ गया है ) सो ऐसे में किसी अनजान देश में उस खेल के महा कुम्भ को देखने के लिए देशवाशियों को यदि जाना पड़े तो ये तो निहायत ही अत्याचार टाईप वाली बात हुई न। इसलिए फैसला किया गया है की क्यूँ न आम चुनाव को दक्षिण अफ्रीका में करवा लिया जाए। देखिये इस बात के पीछे बहुत जोरदार तर्क दिया गया है भाई। एक तो चुनाव वहां होने से पूरी पारदर्शिता बनी रहेगी, दूसरे आतंकवादी हमले की आशंका भी नहीं रहेगी। अरे वहां कौन जा रहा है हमला करने। हमला करने के लिए अमेरिका , भारत, लन्दन जैसे स्थान ही आरक्षित हैं।

अब रही बात की वहां पर मतदान करने के लिए लोगों को कैसे ले जाया जायेगा। तो इस बात पर भी पूरा मंथन किया गया है। देखो कुल आबादी का आधा प्रतिशत ही अभी मतदान करने लायक हैं, मेरा मतलब वयस्क है, अमा तुम तो वयस्क कहते ही मुझे घूरने लगते हो, मन की वैसे वयस्क है मगर मतदान करने के लिए तो उम्र के हिसाब से वयस्क नहीं है न । तो बची आधी जनसंख्या के लिए वहां जानी की पूरी जिम्मेदारी टाटा भैया पर डाली जा रही है उन्हें इस बात के लिए मनाया जा रहा है अपने सस्ती नैनो को देश सेवा का मौका देते हुए सारी तैयार गाड़ियों तो भाड़े पर लोगों को अफ्रीका ले जाने के लिए करें। वैसे एक बात और भी तय हुई है की, अधिकाँश नेताओं का रेकोर्ड किसी न किसी थाने में तो है ही तो इसलिए एक केंद्रीयकृत प्रणाली के तहत सभी अपने पसंदीदा प्रतिनिधियों को सीधे थाने में जाकर वोट कर सकते हैं।
इस पूरे प्रकरण में इस बात को भी महत्व पूर्ण मानते हुए की आख़िर मास्टर ब्लास्टर को भी आई पी एल का बाहर जाना पसंद नहीं है तो उनकी भावना का पूरा सम्मान करने के लिए देश को थोड़े बहुत कष्ट और छोटे मोटे बदलाव तो करने ही चाहिए.

मंगलवार, 17 मार्च 2009

भैया ये ब्लॉग डे भी आने वाला है क्या ?

भैया ये ब्लॉग डे भी आने वाला है क्या ?:-

जी हाँ ! हो सकता है की आप मेरा ये प्रश्न सुन कर आश्यार्यचाकित रह गए हों, मगर यकीन मानें इसमें मेरा कोई कुसूर नहीं है। दरअसल हर दो तीन दिन में देखता हूँ कि कोई न कोई दिवस आ जाता है और मुझ जैसा बेचारा ब्लॉगर जो रात में बैठ कर कैफे में अपना नंबर आने पर कुछ लिख पाता है उसको तो जब तक दिवस का पता चलता है तब तक तक उस दिवस को बीते कई दिवस बीत जाते हैं। खैर, इस प्रश्न को यहाँ आप लोगों से पूछने kee मेरी मंशा इसलिए भी थी क्योंकि आज कल हर तरफ़ यही चर्चा है कि आई पी एल जरूरी है या कि आम चुनाव। सभी इसी पशोपेश में पड़े हुए हैं, तो ऐसे में यदि ब्लॉग डे भी पड़ गया तो ये तो काफी मुश्किल वाली बात हो जायेगी।

वैसे यदि अभी तक कोई ब्लॉग डे तय नहीं हुआ है तो मेरा ख्याल है कि हमें जल्दी जल्दी से आगे आकर एक ब्लॉग दिवस की घोषणा कर देनी चाहिए, कम से कम हिन्दी ब्लॉग डे तो हम घोषित कर ही सकते हैं। और इसके लिए हमें ज्यादा कुछ करने की जरूरत भी नहीं रहेगी। खूब जोर शोर से अपने भोले भले मीडिया के सहारे इस बात का प्रचार प्रसार, कुछ anonymous टाईप जोरदार विरोध करने वाले बंधू (क्योंकि हमारा बलोग डे बिना इनके विरोध और विध्वंसकारी बयां के सफल नहीं हो पायेगा )और कुछ हम जैसे वेल्ल ब्लॉगर जो ऐसे सभी दिवसों पर न जाने कितने वर्षों से एक ही बातें घसीटे जारहे हैं और ख़ुद भी घिसट रहे हैं । तो हे प्रभु लोगों, हे बड़े ब्लोग्गरों , हे ब्लॉग अद्दिक्तों, और जितने भी तरह के चिट्ठेकार हैं सबसे यही अनुरोध है कि कृपया मुझे नाचीज को भी थोडा मौका दें.

डाक्टर प्रोफेसर चुनाव में ,अब देश की तकदीर जरूर बदलेगी :-

मेरी न जाने कब से ये दिल्ली तमन्ना थी , सच कहूँ तो जब से पहली बार मैंने अपने चाचा जी की जगह जाकर बोगस वोट डाला था तभी से, कि अपना वोट किसी अच्छे , पढ़े लिखे, विद्वान् के खाते में दाल सकूँ। इतना लंबा समय बीत गया कि अब तो मैं अपने खाते के वोट भी कई बार दाल चुका हूँ मगर कमबख्त तलाश अभी भी नहीं ख़त्म नहीं हुई है। लेकिन इस बार ऐसा लगता है कि जरूर ही कोई न कोई करिश्मा होने वाला है। अब ये ओबामा के कारण हो रहा है या किसी और कारण से ये तो पता नहीं मगर सुना है कि इस बार चुनाव में प्रोफेसर और डाक्टर भी हमारे सच्चे प्रतिनिधि बनकर हमारे सामने आ रहे हैं हैं। क्या कह रहे हैं आपको नहीं पता। लीजिये डाक्टर के रूप में तो वही अपने मुन्ना भाई ऍम बी बी एस , अपनी नयी चिकित्सा तकनीक झप्पी थेरापी के साथ आपकी सेवा में आयेंगे। लेकिन इससे भी ज्यादा खुशी तो इस बात की है कि अपने महान प्रोफेसर बटुकनाथ (अजी वही साहसी प्रोफेसर जिन्होंने अपनी एक शिक्छार्थी को ब्रह्मचर्य आश्रम से गृहस्थ आश्रम का दिव्या ज्ञान भी करवा दिया ) जी भी चुनाव मैदान में हैं, सुना है कि उन्होंने चुनाव चिन्ह के रूप में दिल की मांग की है । तो इस बार निस्संदेह कुछ बहुत बड़ा परिवर्तन होगा भारतीय लोकतंत्र में, शायद ओबामा से भी बड़ा।

यार फालू करने का क्या फंडा है :-

हमसे मित्र चिटठा सिंग ने पूछा कि भैया ई फालू(फालो ) करने का क्या फंडा है । हमने कहा कि हमें क्या पता भैया । काफी विचार विमर्श करने के बाद के बाद एक सूत्र विकसित किया गया, आप भी नोश फ़रमाएँ।


आओ हम तुम,, कुछ ऐसी प्रथा चालु करें,
तुम हमें ,हम तुम्हें फालू करें.....

और देखिये हमने इस सूत्र vaakya को पकड़ कर सब शुरू भी कर दिया मगर हम फालू करते रहे और वे शोर्टकट से निकल कर हमें लात मार कर छोड़ गए। फ़िर भी हम हैं कि गाये जा रहे हैं जय हो जय , रिंग रिंग रिंगा रिंग रिंग रिंगा

मंगलवार, 10 मार्च 2009

अब होली नहीं है ,अब तो बुरा मानिए- होली बीतने पर एक हुलहुलाती चर्चा

जी हाँ आज कल तो यही बहस का विषय बन गया है की यार होली है तो क्या हुआ , थोड़ा बहुत बुरा तो माना जा ही सकता है। और फ़िर अब तो आलम ये है की चाहे कुछ माने या न माने मगर बुरा मानना तो हमारा प्रजातान्त्रिक अधिकार है। सुना है की बुरा मानने के अधिकार को लेकर आने वाली सरकार कोई विधेयक भी लाने वाली है। सरकार पर ध्यान आया, की पिछले दिनों चल रही धपर धापर के बीच ही होली आ गयी सो कुछ महत्वपूर्ण विषयों पर हुलहुलाती सी चर्चा संपन्न हुई। किनके किनके बीच , इस पाक कोपी राईट है इसलिए नहीं बता सकता।

पब्लिक को एक साथ दो फंक्शन का मजा , आई पी एल और आई जी :-
जी हाँ ऐसा किसी भी देश में पहली बार होने जा रहा है की लोगों को अजी, आम लोगों को सरे आम एक साथ दो बड़े बड़े मजेदार, सेंसेशनल, रोचक, लजीज, चकाचक, रंगीन फंक्शन देखने को मिलेंगे। पहला तो अपना वही २० - २० वाला आई पी एल मगर दूसरा तो इससे भी मजेदार आई जी ई। अजी अब भी नहीं समझे इंडियन जनरल इलेक्शन । अब देखना ये है की कौन सा फंक्शन इस बार ज्यादा मनोरंजन वाला होता है। हालाँकि सरकार ने इस बात का पूरा ध्यान रखा है की दोनों में से कोई भी एक दूसरे से क्लैश न कर सके और पब्लिक दोनों का मजा उठा सके। वैसे सबसे ज्यादा जिम्मेदारी तो बेचारे अभिनेताओं के लिए बढ़ गयी है, जिनकी डिमांड दोनों ही फंक्शन्स में बहुत ज्यादा है। तो हे देश वासियों तैयार हो जाओ डबल मजा लेने के लिए।

प्रधान मंत्री पद की सूची में हिमेश रेशमियां का नाम भी आया :-

जिन्हें मेरी तरह ही भारतीय लोकतंत्र की मजबूती पर पका भरोसा है और जनादेश का पूरा सम्मान वे करते हैं, मुझे पुरा यकीन है की उन्हें ये ख़बर पढ़ कर बिल्कुल भी नहीं चौन्कायेगी। यार इस बार तो ये चुनाव सिर्फ़ उनके लिए ही रह गए हैं जो या तो अपराधी हैं या अभिनेता। यदि आपकी कुआलिफिकेशन दोनों में ही है तो फ़िर तो समझिये की बड़े से लेकर राम सेना तक की तरफ़ से टिकट का ऑफ़र आपको मिल सकता है। और यहाँ कमाल देखिये की अपने सारे अभिनेता और फिल्मी शिल्मी लोग, कोई शिकार करके, तो कोई एक्सीडेंट करके, कोई धोखाधड़ी में तो कोई किसी और विशेष कार्य में संलिप्त होकर वो अपराध वाली कैटेगरी को कम्प्लीट
कर ही लेते हैं। ऐसे में इनकी डिमांड तो स्वाभाविक रूप से बढ़ ही जाती है। रही बात हिमेश रेशमियां की तो हुआ ये की रहमान साहाब ने ऑस्कर पुरूस्कार जीत कर अपना फर्ज अदा कर दिया। सो हिमेश भाई का कहना है की अब उनका ये फर्ज बँटा है की एक बार प्रधानमंत्री बन कर वो भी अपना कर्ज उतारें। हालाँकि उनका मानना है की नाक गायन के अनोखे आविष्कार के लिए देर सवेर उन्हें भी कोई अंतर्राष्ट्रीय पुरूस्कार तो मिल ही जायेगा, किंतु चूँकि वे न सिर्फ़ संगीतज्ञ हैं बल्कि हीरो, प्रोडूसर, डाईरेक्टर , और पता नहीं क्या क्या हैं, इसलिए देश के प्रति उनकी जिम्मेदारी और ज्यादा बढ़ जाती है।

सवाल ये है कि बापू की स्टेश्नरी, दारू के पैसे से आयी या कि किंग फिशर एयर लाईन्स के ? :-

देश में जहाँ इस बात की चर्चा हो रही है कि बापू की चीजें, कटोरी, चश्मा, और भी काफी कुछ देश में आखिरकार आ ही गया , वहीं दूसरी तरफ़ ये चर्चा जोर पकड़ती जा रही है कि नीलामी के लिए जो पैसे माल्या साहब ने वहां भेजे थे वे दारु की कमाई के थे या कि वो जो दूसरी कंपनी है राजा की मछली वाली ( दरअसल ये नाम मुझे मित्र चिटठा सिंग ने बताया कि यार सुना है माल्या ने दारु और मछली का पैसा लगाकर बापू की चीजें खरीदीं। अब दारू का तो मुझे भी पता था मगर मछली वाली बात से जब चौंका तो उन्होंने ही खुल कर बताया कि यार वो है न दूसरी कंपनी राजा की मछली हवाई जहाज कंपनी किंग फिशर एयर लाईन्स । और मेरे मुंह से सिर्फ़ इतना निकला सत्यानाश ।)
वैसे सुना ये है कि माल्या साहब के काम को देखते हुए कुछ और सुरा कंपनियों ने सरकार से मांग की है कि हमें अभी गांधी जी के वार्डरोब का काफी कुछ वापस लाना है सो दारु को खुल्लम खुल्ला छोट देनी चाहिए। मगर माल्या साहब तो कह रहे है कि मैंने तो ये पैसे उन एरलाईन्स स्टाफ्फ के जी पी ऍफ़, पेंसन वैगेरह से इक्कठा करके भेजा था जिन्हें ;पिछले दिनों मंदी के नाम पर हमने चुपके से लात मार मार कर बाहर निकाल दिया था।

तो भैया इतना सब कुछ झटपट , घट रहा है तो फ़िर क्यों न कोई बुरा माने, होली हो या दिवाली. वैसे भी अब तो होली जा चुकी है इसलिए बुरा मानिये , प्लीज मानिए न !

सोमवार, 9 फ़रवरी 2009

जो नहीं बिके , उन्हें खरीदा जाए

जो नहीं बिके , उन्हें खरीदा जाए :-

मेरे मित्र जो आई पी एल , की नीलामी पर पहले से ही बुरी निगाह डाले थे, जबकि मैं जानता था कि , क्रिकेट के देश में बचे कुछ ही दुश्मनों में से वे भी एक थे, जब पूरा दिन बैठ कर नीलामी की खबरें देखते रहे तो मेरे से नहीं रहा गया।

क्या हुआ , महाराज, आज ये क्रिकेट प्रेम कैसा, कहीं ऐसा तो नहीं कोई और ही चक्कर है, या कहीं आप ये तो नहीं समझ रहे कि इस आई पी एल की नीलामी में किसी पार्टी का टिकट भी नीलाम हो रहा है और आप जाहिर है इन उसे अगले चुनाव के लिए आजमाना चाह रहे हों। अच्छा अच्छा, ये सब कहीं हीरोइन लोगन को देखने के लिए तो नहीं था , आख़िर माजरा क्या था यार ?
अरे नहीं यार , कोई ख़ास नहीं, दरअसल मैं उन खिलाड़ियों के बारे में सोच रहा था जो बिके नहीं, मतलब किसी ने भी उन्हें नहीं खरीदा, सोच रहा हूँ कि क्यों न मैं ही उन में से कुछ को खरीद लूँ ?
मेरे अचंभित भाव वाले चेहरे को देख कर वे भी बौखला कर बोले,

क्यों यार , तुम ऐसे क्यों देख रहे हो, भाई जब मैं चालीस रुपैये, किलो टमाटर और प्याज खरीद सकता हूँ, पच्चीस रुपैये किलो चीनी खरीद सकता हूँ, जब हर महीने मैं अपने फोन में नयी नयी रिंग टोन भरवा सकता हूँ, इमरान हाशमी, सिकंदर खेर, हर्मन बवेजा की पिक्चरों की टिकट खरीद सकता हूँ और डूबने के बावजूद शेयर खरीद सकता हूँ तो फ़िर यार इन्हें क्यों नहीं खरीद सकता। हाँ हाँ, अब तुम ये पूछोगे कि मैं खरीदना क्यों चाहता हूँ। यार सच बताऊँ तो अभी तो मैंने भी नहीं सोचा है, मगर जब खरीद लूंगा तो करवा लूंगा कुछ भी। कभी मेरे बच्चों के साथ वीडीयो गेम खेल लेंगे, जिन्हें मैं बिल्कुल नहीं खेल पाता, कभी सब्जी भाजी ला दिया करेंगे, कभी मेरे साथ ताश वैगेरह खेल लिया करेंगे।
मगर ऐसा वे क्यों करेंगे भला,

अरे सब करेंगे, तुमने नहीं देखा पिछली बार तो जिंटा ने कुछ खिलाड़ियों को आधी रात को होटल से भगा दिया था, फ़िर मैं तो उनपर २० २० जीतने का कोई दबाव भी नहीं डालूँगा, और यार जब उन्हें किसी ने खरीदा ही नहीं तो फ़िर इससे अच्छा ऑफर उन्हें कहाँ मिलेगा ?

शुक्रवार, 30 जनवरी 2009

दिस इज रोड राजनीति ,माई डीयर !

मुझे पता है कि , आप और हम इस राजनीति शब्द से इतने उकता चुके हैं कि अब तो इसे सुनने का मन भी नहीं करता, लेकिन हुजूर क्या करें अब तो अगले चुनाव तक यही शब्द सुनने और सुनाने को मिलता रहेगा। आप चाहे आँख और कान बंद करे , खिड़की, दरवाजे, सब कुछ बंद कर लें, पता नहीं कहाँ कहाँ से ये शब्द आपके सामने निकल कर आ जायेगा, खैर अब जब झेलना ही है तो झेलिये,........

अभी हाल ही में पता चला कि भारत ने अफगानिस्तान में २०० किलोमीटर की लम्बी सड़क बन कर प्रधानमंत्री के हवाले कर दी , मतलब उनके राष्ट्र के सुपुर्द कर दी। लीजिये मैंने कोई मजाक की बात थोड़े की है जो आप मुस्कुराने लगे, बिल्कुल सौ प्रतिशत सच्ची बात कही है। दरअसल इसके पीछे बहुत उच्च स्तर की राजनीति चल रही थी जिसका पता हमने अपने विश्वस्त सूत्रों से लगा लिया। यहाँ अपने देश में अव्वल तो सड़क बनाने का काम बिल्कुल बंद हो चुका है, यहाँ तो मेट्रो और बड़े बड़े फ्लाई ओवर बन रहे हैं, जिसे अपने देश की ठेकेदार और इंजिनियर नहीं बल्कि जापान, फ्रांस, जर्मनी आदि की कंपनी और उनकी मशीनें बना रही हैं। यहाँ तो जो सड़कें अंग्रेजों ने बनाई थी, अपने ठेकेदारों को खाने कमाने के लिए उन्ही से इतना मिल जाता है कि इससे अलग सोचने और करने की फुर्सत कहाँ सब तरफ़ चेपी मारने का काम चल रहा है, कहीं गड्ढा ख़ुद रहा है तो कहीं गड्ढा भरा जा रहा है, कभी टेलीफोन की तारें बिछ रही हैं, तो कहीं पानी की पाईप लाइन तो कहीं सीवर लाइन।

ऐसी स्थिति में ठेकेदारों की नयी नस्ल के लिए कम काज ढूँढना बड़ा ही मुश्किल हो गया। इसी समस्या पर जब विचार विमर्श किया गया, जाहिर है कि ऐसे विचार विमर्श हम अपने सबसे बड़े शुभ चिन्तक अमेरिका से ही करते हैं, तो उन्होंने बताया कि अजी कौन सी समस्या है, हमने इराक़ और अफगानिस्तान की सारी सड़कें, गली मोहल्ले तोड़ फोड़ दिए हैं, आप अपने सारे टैलेंट को वहां भेजें। हमने भी फैसला किया कि इराक़ दूर है सो अफगानिस्तान से ही शुरुआत की गयी। वैसे इससे अलग एक राजनीतिज्ञ ने भारत के इस कदम को बिल्कुल अलग दृष्टिकोण से देखते हुए बताया कि , इससे भारत और अफगानिस्तान के बीच करीबी बढ़ जायेगी। जब भी वे इस सड़क पर बने सैकड़ों गड्ढों को देखेंगे तो उन्हें भारत की सड़कों और भारत की याद आयेगी। धीरे धीरे हम उन्हें सड़क का असली उपयोग, यानि सड़कों पर धरना-प्रदर्शन, आन्दोलन, बंद , जाम वैगेरह के बारे में भी प्रशिखन देंगे।
हमारे ज्यादा पूछने पर वे झल्ला उठे और कहने लगे, एक तो हम इस मंदी में रोजगार के नए अवसर पैदा कर रहे हैं, वो भी समाज सेवा के तडके के साथ आप उस पर भी हामी पर तोहमत लगा रहे हैं, अजी समझा कीजिये, दिस इस रोड राजनीति , माई डीयर.

बुधवार, 28 जनवरी 2009

काश मेरी भी एक सेना होती .......

मेरा तो शुरू से ही ये विश्वास था की हम कलयुग से आगे निकल कर सतयुग की तरफ़ बढ़ रहे हैं, आपको अब भी यकीन नहीं है, कमाल है, किस दुनिया में हैं आप। देखिये पहले शिव जी की सेना, फ़िर बजरंग बली का दल, और अब श्री राम जी की सेना का पदार्पण हो गया है । और मुझे पूरा यकीन है की जल्दी ही जटायु सेना, अंगद सेना, जाम्बवंत सेना, और नल नील सेना भी आ ही जायेगी। इस प्रकार पूरा राम राज्य आ जायेगा।
और ये तो तय है की जब सबकी सेनायें यहाँ आ जायेंगी तो उन्हें भी देर सवेर आना ही पडेगा।

हालाँकि इन सेनाओं के पदार्पण और उसके बाद उनकी सक्रियता को देखते हुए मैंने फ़ैसला कर लिया कि, मैं बांकी सब काम धाम को छोड़ कर सिर्फ़ सेना के अध्यन और उनकी सफलताओं के बारे में जानकारी रखूंगा ताकि किसी न किसी तरह से देश सेवा तो कर ही सकूँ। चूँकि दोनों पहले की सेनाओं का काम तो मैं बखूबी देख सुन चुका था,(अलबत्ता मैं अभी तक ये नहीं समझ पाया था कि शिव जी ने संस्कृत, हिन्दी, जैसी देसी भाषाओं को छोड़ कर मराठी भाषा से इतना प्रेम क्यों दिखया इस युग में , यदि कोई चेंज चाहिए था ही तो इंग्लिश को पकड़ लेते, खैर भगवानो का मामला है , अपना क्या ) इसलिए राम जी की सेना के बारे में जानने की इच्छा हुई, जो भी जितना भी पता चला, सोचा आपको बताता चलूँ।

मैंने पहला सवाल यही किया, प्रभु सेना का पदार्पण पब में क्यों हुआ , और वो भी नारी पर अत्याचार के अभियान के साथ।
देखिया , हमने तो रब के साथ शुरुआत करने की सोची थी, मगर अचानक पब का कार्यक्रम बन गया, और क्या अत्याचार , सीता की अग्निपरीक्षा को क्यों भूल रहे हैं आप लोग। फ़िर नारियों का पब जाना क्या अच्छी बात है, एक लिहाज से हमने तो उन्हें बचाया है।
मगर महाराज इस हिसाब से देश के लाखों करोड़ों उन बेचारी महिलाओं का भी तो कुछ सोचिये जो बेचारी अपना तन मन बेचने को मजबूर हैं।
नहीं जी, प्रभु जी ने पिछले बार ही, शबरी माता का उधहार कर के चैप्टर ख़त्म कर दिया था। आगे पूछो,

श्रीमान जी, आप क्या सेना के करने वाले काम भी करेंगे , मसलन, युद्ध लड़ना, आपदा में मदद करना,आतंकवादियों से लड़ना आदि।

अबे चुप रहो, तुमने क्या हमें आम सेना समझ रखा है जो वर्दी पहन कर देश के नाम पर अपनी जान मान कुर्बान कर देते हैं, ये प्रभु जी की दिव्या सेना है, हमारा कम सिर्फ़ नैतिक विचारों को लेकर आगे बढ़ना और लड़ना है, वरना क्या श्री राम जी की सेना होने के कारण हम श्रीलंका में लिट्टे वालों से लड़ने नहीं चले जाते।

अच्छा एक आखिरी शंका का समाधान कर दें, क्या कभी ऐसा भी होगा कि एक आध सेना हमारेनाम से भी शुरू हो जाए।
चुप हो जाओ, ये कैसे सम्भव है, इंसान , वो भी आम इंसान , के नाम पर सिर्फ़ राजनीति, होती है, योजनायें बंटी हैं, घोटाले होते हैं, सेना वेना नहीं बंटी। बोलो प्रभु श्रीराम की जय .

रविवार, 25 जनवरी 2009

न गण मिले न तंत्र, ये कैसा गणतंत्र ?

बचपन से देखता सुनता आ रहा था २६ जनवरी की परेड के बारे में मगर कभी गणतंत्र पर विचार विश्लेषण नहीं किया, सो सोचा की इस बार इस सुअवसर का लाभ उठाया जाए। एक गुनी आत्मा मिल गए मार्गदर्शक की तरह और मैंने उनसे ही कहा - हे प्रभो, मुझ सहित आज की सारी पीढी इस गणतंत्र नामक अजीब तरह की प्रणाली, प्रथा, शब्द , त्यौहार, दुर्घटना जो भी हैं के विषय में जानना चाहती है, कृपया इसकी महिमा का बखान करें।

देखो भैया , ज्यादा तो मैं भी नहीं जानता। पहले गण को ही ले लो । यदि पूछा जाए की गण का मतलब क्या तो मैं तो पढ़ा है की शिव शंकर प्रभु के चेले चपाटों क गण कहा जाता था। मगर आजकल तो शिव जी की बाकायदा एक सेना है जो फुल टाईम जॉब में एक ख़ास भाषा नहीं बोलने वालों के साथ मार कुटाई करती है और पार्ट टाईम जॉब में वैलेंताईं दे , फ्रैंडशिप दे, आदि पर आर्चीज़ , हालमार्क की दुकानें जलाते हैं।
वैसे एक और जगह पर गण लिखा देखा है मैंने। जन और मन के बीच में, अरे वही जन-गण-मन । शायद इसलिए जन और मन के बीच ही गण गुम हो जाता है समझे बच्चू।

अब बात करते हैं तंत्र की । सुनने में तो प्रजातंत्र, स्वतंत्र, लोकतंत्र, और खुफिया तंत्र आदि न जाने कितने तंत्र आते हैं मगर सब के सब सुपर फ्लॉप हैं। और तो और खुफिया तंत्र भी इतना ज्यादा खुफिया है की पता ही नहीं चलता की है भी या नहीं। हाँ तंत्र के नाम पर यदि कुछ चलती में है तो वो है तंत्र-मंत्र की लांखों दुकानें। अजी क्या खूब बिजनेस है इनका, गली गली में इनके आउटलेट्स खुले हैं, वशीकरण तंत्र, मारक तंत्र, यौवन प्राप्ति तंत्र, पुत्र प्राप्ति तंत्र, अदि अदि , । किसी भी मंदी वंदी का असर भी नहीं पड़ता है इस पर।

वैसे अब तो सरकार भी गण तंत्र का मतलब गन तंत्र समझ रही है , तभी तो इस बार संस्कृति मंत्रालय की वाद्ययंत्रों वाली झांकी को रद्द करके आयुध -शाश्त्रों की झांकी को रखा गया है परेड में.समझे।

चलो अब बस, - हैपी गणतंत्र दे .

शनिवार, 8 नवंबर 2008

शुक्र है कि मुझे भी धमकी भरा ई मेल मिल ही गया (व्यंग्य )

न जाने कितने दिनों से यही तमन्ना थी की काश मुझे भी kabhee कोई धमकी भरा ई मेल मिल पता। हालाँकि में पूरी संजीदगी से ये बता दूँ की धमकी भरी फी मेल ( अजी मेरी धर्म पत्नी ) तो मुझे काफी पहले ही मिल चुकी है। लेकिन यहाँ तो ज़माना ई मेल का है न।

रोज सुबह उठ कर जब अखबार पढता हूँ तो यही मिलता है, की फलाना को धमकी भरा ई मेल मिला , और सिर्फ़ कुछ ही दिनों बाद पता चलता है की वो ई मेल भेजने वाला भी कहीं से पकडा गया। कमाल है मुझे धमकी भरा फी मेल भेजने वाले, ( मेरे सास -ससुर ) तो कभी नहीं पकड़े गए, खैर। बात तो ई मेल की हो रही थी। जहाँ देखो इसी बात की चर्चा थी , हम दोस्तों के बीच भी।
यार कमाल है हम भी रोज ई मेल , ई मेल करते हैं मगर कमबख्त कभी ऐसा हुआ है की गलती से कोई धमकी भरा ई मेल हमें भी मिल जाए। मैंने मित्र से कहा।
अमा तुम कौन देश के प्रधान मंत्री हो , या की कौनो गुंडे हो, एक्टर, क्रिकेटर, कुछ भी नहीं हो तो तुम्हें कौन ई मेल करेगा बे।
क्या मतलब एक आम आदमी की कोई औकात नहीं उसकी कोई वैल्यू नहीं , अब तो मेरा मन करता है की अपने सब्जी वाले को ही एक धमकी भरा ई मेल भेज दूँ की , बेटा सुधर जा यूँ ही सब्जी के भाव बह्दाता रहा तो देखना मैं बड़े बड़े गमले खरीद कर ख़ुद के लायक सब्जी उगा ही लूँगा। और मैंने कौन सा सब्जी का निर्यात करना है, घर चलाने के लिए तो उगा ही लूँगा , फ़िर सोचा की पकडा गया तो उधार की सब्जी भी बंद हो जायेगी।
लेकिन अचानक ही सपना सच हो ही गया, आज ही एक बैंक से धमकी भरा ई मेल आया है, की बेटा तुम लोगों नो यहाँ हमारे बैंक से लोन लेकर सारी ऐश जुटा ली है, उससे अमरीका सरकार तक डूबने वाली है, चुपचाप सारे पैसे लौटा दो , वरना खैर नहीं।
हमने मित्र से सलाह ली, उसने कहा, चुपचाप बैठो रहो, ख़बर गर्म है की बैंक अपनी मौत ख़ुद ही मरने वाला है, कमबख्तों के पास इतने पैसे भी नहीं बचने वाले हैं की आगे से कोई ई मेल करें।
मगर यदि बैंक बच गया तो,
तो भी चिंता नहीं, धमकी वाली ख़बर से तुम रातोंरात लेनदारों के हीरो तो बन ही जाओगे।
शुक्र है कि मुझे भी धमकी भरा ई मेल मिल ही गया।

रविवार, 2 नवंबर 2008

कुछ बेतुकी, और अनाप शनाप बातें

आप सोच रहे होंगे की ये क्या बात हुई ये, बताने की क्या जरूरत है कि कुछ बेतुकी बात कहने जा रहे हैं, आप वो भी आज जबकि आप तो रोज़ ही वही कहते हैं, तो मेरी विनती तो सिर्फ़ ये है कि सरकार आज कोई उचित शीर्षक नहीं मिला इन बातों को कहने के लिए सो लिख दिया, अब आप इसे झेलें,

दादा के बाद जम्बो ने भी संन्यास लिए :- ये तो पहले ही लग रहा था कि ये टेस्ट मैच इस बार बिना किसी परिणाम यानि हार जीत के ही ख़त्म हो जायेगा, मगर इसका परिणाम ऐसा निकलेगा, ये तो किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। टेस्ट मैच के ख़त्म होते ही अपने जम्बो जी, अनिल कुंबले जी ने घोषणा कर दी कि वे संन्यास लेने जा रहे हैं, यानि अब वे क्रिकेट नहीं खेलेंगे, दादा के बाद ये दूसरा संन्यास उनका भी थोडा चकित करने वाला था इनका भी अप्रत्याशित, दोनों के ही लिए एक बात तो कही जा सकती हैं कि खेल और कैरियर में दोनों ने वो सब कुछ हासिल किया जो किसी को भी चाहिए होता है, और भारीतय क्रिकेट के अनुरूप वो प्यार और उपेक्षा भी मिली, समय भी एक लिहाज से उपयुक्त ही था, तो दोनों के ही हमारी तरफ़ से शुबकामनाएं। हाँ लेकिन जम्बो ने जिस तरह से अचानक ये फैसला लेकर सबको सुना दिया वो बेचारे मीडिया वालों के लिए थोडा मुश्किल काम हो गया, वरना वे अपने सारी ताकत लगा कर अनिल के बारे में वो सब भी ढूंढ लाते जो शायद उन्हें भी नहीं पता होता।
और सबसे महत्वपूर्ण बात तो ये कि अब जब आस्ट्रेलिया वाले वापस जायेंगे तो जानते हैं क्या कहेंगे,जब उनसे इस दौरे की उपलब्धी के बारे में पूछा जायेगा तो,
" जी, अबसे हम हर साल भारत के दौरे पर जायेंगे और उनके एक दो खिलाडिओं को संन्यास दिला कर ही वापस आयेंगे, ये भी हमारी रणनीती का एक हिस्सा है "।

अभी और झेलिये "क्योंकि सास भी कभी बहू थी " :- अभी कल ही तो में एक पोस्ट लिख मारी थी कि अपनी बा, सास बहू वाली वोलेंत्री रिटायरमेंट लेकर जा रही हैं, और जल्दी ही ये धारावाहिक भी शायद हमारे बीच नहीं रहेगा, मैंने तो बेचारे कि दिवंगत आत्मा की शांती के लिए बाकायदा हवन भी रखवा लिए था, मगर आम आदमी के सपने कहाँ सच होते हैं जी, आज ही पता चला है कि इसकी निर्मात्री, माता एकता कपूर ने स्टार चैनल के ख़िलाफ़ ही मुकदमा ठोंक दिया है कि उनके इस धारावाहिक को जल्दी क्यों समाप्त किया जा रहा है, जी हाँ आपने बिल्कुल ठीक ही सुना है, जल्दी समाप्त किए जाने के खिलाफ ।
दरअसल उन्होंने सोच रखा था कि जब तक इस धारावाहिक के ख़िलाफ़ धरना प्रदर्शन, बैन .आदि नहीं होगा तब तक यूँ ही चलाते रहंगे, या शायद सोचा हो कि जब तक तुलसी और मिहिर, और कारन और पता नहीं कौन कौन की शादी दस दस बार तलाक बीस बीस बार और अफ्फैर भी बहुत बहुत बार नहीं दिखा देती, जब तक इस आधुनिक शान्तिनिकेतन में एक हज़ार एक लोगों की मैय्यत नहीं उठती और पता नहीं जितने भी मन्नतें हैं वो सारी नहीं पूरी हो जाती तब तक सास भी रहेगी और बहू भी और कभी भी नहीं, हमेशा हमेशा के लिए, तो तैयार हो जाएँ कुछ और दिन इसका मजा लेने के लिए।

बर्मूडा और चेकोस्लोवाकिया, ये देश हमेशा तुम्हारा ऋणी रहेगा :-
आप लोगों में से शायद कुछ लोगों को बर्मूडा का नाम ध्यान हो, मैं याद दिलाता हूँ, ये वही छोटा मगर उपकारी देश है जिस, एकमात्र देश को हमारे देश की क्रिकेट टीम ने पिछले विश्वा कप में हरा था और क्या खूब रिकोर्ड बना लिए थे, यदि ये देश न खेल रहा होता तो विश्वा कप से हम ज्यादा बेइज्जत होकर निकलते, खैर, तब सबने एक स्वर से इस देश के बलिदान और हमारे देश के प्रति इसके योगदान के लिए धन्यवाद दिया था। इदाहर कुछ दिनों से एक और देश ऐसा ही उपकार कर रहा है, आपने वो विज्ञापन देखा है जिसमें लोग मीठा इसलिए खा लेते हैं कि भारत के जीतते जीते चेकोस्लोवाकिया जीत जाता है, मुझे ये तो उस विज्ञापन देख कर नहीं पता चला कि किस खेल में भारत उससे हार गया, मगर लोगों की खुशी और मीठा खाते देख कर इस बात को जानने की कोशिश भी नहीं की, कुछ अछा ही रहा होगा।
दूसरा विज्ञापन है कि यदि आपका बच्चा यदि ठीक ठीक चेकोस्लोवाकिया बोल लेता है तो समजिये कि आपकी बीमा राशि भारी भरकम होगी, हाँ उस विज्ञापन में भी ये नहीं बताया गया कि आख़िर बच्चा ही ये बोलने की कोशिश क्यों करे जबकि मैं तो दावे के साथ कअह सकता हूँ कि हमारे तो कई बड़े, अजी बड़े छोडिये, नेता और मंतरी भी चेकोस्लोवाकिया नहीं बोल सकते, और फ़िर उस देश के नाम से बीमा का क्या सम्बन्ध। खैर जो भी इतना तो तय है कि रूस कि तरह ये दोनों देश भी हमारे अभिन्न मित्र बनते जा रहे हैं। आज ही नक्शे में दोनों को ढूँढने की कोशिश करूंगा , आप भी करें.......

शनिवार, 1 नवंबर 2008

बा कहेंगी बाय बाय (क्यांकि सास भी कभी बहु थी को श्रधांजलि )

अजी भारतीय टेलीविजन जगत में इन दिनों बस यही ख़बर सब तरफ़ फ़ैली हुई है की बा , अजी अपनी बा, क्या भाई, वही सास भी कभी बहू थी, सदियों पुराना धारावाहिक , की बा, वो अब बाय बाय कहने जा रही हैं, और खाली बैठे न्यूज चैनेल ( जैसा की वे हमेशा रहते हैं ) इस पर तरह तरह की परिचर्चाएं आयोजित करवा रहे हैं, कुछ एक्सक्लूसिव खबरें भी आ रही हैं, मसलन कहीं बा भी दादा, अजी अपने सौरभ दादा के संन्यास से प्रेरित होकर तो ऐसा नहीं कर रही हैं, वैगेरह वैगेरह।
तो फायनली उन्होंने २०५ वर्षों की जिंदगी ( नहीं उनके उम्र के बारे में ये महज एक अंदाजा भर है , क्योंकि उनकी उम्र का ठीक ठीक आकलन करने के लिए लगाए गए गणितज्ञों ने इस काम से ये कह कर पीछा छुडा लिया की इससे आसान तो शेयर मारकाट के डूबने की वजह तलाशना है ) जीने के बाद अचानक इसे छोड़ने का मन बना लिया , वैसे उन्हें ऊपर बुलाने के लिए ख़ुद उनके पति , बापूजी को नीची आना पड़ा, जब उनसे पूछा गया इस बारे में तो उन्होंने कहा , अजीब हाल वहां ऊपर सारा रेकोर्ड, अपडेट कराये, सभी जगह की बुकिंग कराये हुए भी सालों बीत गए और बा का कहीं कोई इरादा न देख मुझे मजबूर होकर ऊपर से नीचे आना पड़ा।
वैसे इसके पीची और भी कुछ वजह बतायी जा रही है, उनका कहना है की जिस तुलसी के साथ उन्होंने ये सफर शुरू किया था उसमें उन्होंने अपने आंसुओं से इतना पानी डाला की अब वो तुलसी एक बरगद के पेड़ की तरह हो गयी है, सो उनका काम ख़त्म हुआ।
एक दूसरी बात ये सूनी जा रही है की बा आजकल बहुत कन्फ्यूज हो जाती हैं, उन्हें यही पता नहीं चलता की कौन किसी पत्नी है, किउन किसका बेटा, और किसका चक्कर किसके साथ चल रहा है, कई बार तो शूटिंग के दौरान उन्होंने भाई बेहें को ही दूधो नहाओ पूतो फलो का आशीर्वाद दे दिया, वैसे इसमें बा का क्या कसूर , जब दर्शकों को भी ये पता नहीं चल रहा है,
सुना तो ये भी गया है की, बा को बुढ़िया तुलसी का रोल ऑफर किया गया, कहा गया की तुलसी तो एक ऐसा किरदार बन गया है जो कोई भी कभी भी आ कर कर सकता है, मगर दिक्कत ये आयी की मिहिर जो दिन पर दिन जवान होते जा रहे हैं वे जब कभइन कभी गलती से अभी वाली तुलसी से आशीर्वाद ले लेते हैं तो बा के तुलसी बन्ने पर क्या कर लेंगे।
एक सबसे पुख्ता ख़बर ये भी है की शायद बा को नाच बुधिये , ओल्ड बॉस जैसे नए धारावाहिक में काम करने का ऑफर मिल रहा है,

अब इतनी सारी बातों के बीच से सच कौन सा है , ये तो वक्त ही बताएगा, मगर फिलहाल तो हकीकत यही है की बा हमें बाय बाय करने जा रही हैं, हमरी गुड विशेस उनके साथ हैं

बुधवार, 22 अक्टूबर 2008

सावधान, विरोध प्रदर्शन वाले जलाने के लिए चंद्र यान को ढूंढ रहे हैं.

ये हमरे लोकतत्र की मजबूती का सबसे बड़ा प्रमाण है कि, हम किसी की भी कैसी भी चिंगारी को अपने फेफडों से फूंक फूंक कर एक बड़ी आग पैदा कर लेते हैं, और फ़िर उस मशाल को थाम कर जो भी सामने पड़ता है उसको स्वाहा कर देते हैं। और यकीन मानिए उनका ये आग लगाने का तरीका तो उन आदिमानवों के दो पत्थर से रगर कर आग जलने के तरीके से भी ज्यादा सफल और चमत्कारी सिद्ध हुआ है । सो जैसा कि पुरी तरह से अपेक्षित था कि राज ( नाम तो सुना होगा ), के राज पर जब भी जरा सी उंगली उठी अजी उंगली की कौन कहे, सिर्फ़ नजर भी उठी तो फ़िर तो बड़े अस्वमेध यज्ञ में पूरे देश की सम्पत्ती , रेल, बस, गाडियां, सरकारी ओफ्फिस सब कुछ बिना भेदभाव के जलाए जायेंगे। कोई राज के विरूद्ध सुपर फास्ट को आग लगा रहा है तो कोई राज के समर्थन में राजधानी और शताब्दी को , मगर खुसी इस बात की है कि जला दोनों ही ट्रेन को ही रहे हैं, क्यों, पता नहीं वैसे मुझे लगता है कि उन्हें लग रहा होगा कि लालू जी ने इतने अरब ख़राब का फायदा करवाया है तो फ़िर दस बारह ट्रेन जलाने से क्या नुक्सान हो जायेगा।,

मगर अब स्थिति सचमुच चिंताजनक होती जा रही है, ख़बर के अनुसार ( प्लीज, ये सूत्र के बारे में न पूछा करें, खासकर जब ख़बर एक्सक्लूसिव हो तो ), दोनों पक्षों के लोग अब चंद्र यान को ढूंढ रहे हैं ताकि उसे जला कर इस विरोध प्रदर्शन में थोड़ी और गंभीरता लाई जाए। वैसे इसके पीछे भी कारण है, दरअसल किसी ने दबे मुंह से बात फैला दी कि जब चंद्र यान जा ही रहा है और उसके लौटने की कोई ख़ास गारंटी नहीं है तो क्यों न ठाकरे , आजी वही राज फाश वाले , को भी उसमें बैठा कर ऊपर भेज दिया जाए, नीचे की सारी समस्या ही ख़त्म हो। दूसरी अफवाह ये है कि सभी बिहारी, मुझे सहित, ने मांग कर दी है कि जब दिल्ली, मुंबई, आसाम, सभी जगह हमारी वजह से ही मुश्किलें पैदा हो रही हैं तो फ़िर हमें , हम सबको चाँद पर भेज दो । मैंने तो सलाह दी थी कि यार ये जलने और जलाने का शुभ कार्यक्रम थोड़े दिनों के लिए टाल दिया जाए , तब तक उन बेचारों को उसमें बैठा कर घर पहुंचा दिया जाए जो बेचारे ट्रेन के जलने और उसके कैंसिल होने के कारण घर नहीं जा पा रहे हैं।

फिलहाल तो स्थिति गंभीर ही बनी हुई है , यदि चंद्र यान को छुपाने के लिए आप के पास कोई जगह हो तो बताएं ?

मंगलवार, 21 अक्टूबर 2008

मनसे यानि, मनोरोगियों की नक्सलवादी सेना

इन दिनों आ सी एल की ख़बरों की जितनी ही दुर्दशा हो रही है उतनी ही ज्यादा चर्चा अपने मनसे की हो रहे है और फ़िर हो भी क्यों न जितनी तेज़ गति से वे रोज कोई न कोई रोमांचक मैच खेल रहे हैं तो जाहिर है की उनकी ही चर्चा ज्यादा होनी चाहिए। हाल ही में इस खाकसार को उनका सामना करने का मौका मिला, (यहाँ ये स्पष्ट कर दूँ की ये साक्छात्कार उनके कारागार प्रवास से पहले का है, इसलिए शक न करें )

सर, आपकी ये जो मनसे नामक टीम है, इस पर कई गंभीर आरोप लग रहे हैं, पहला तो यही है कि, आप मनसे नहीं हैं आप लोग असल में तनसे हैं, मतलब आप लोग सारे काम तनसे, विशेष कर हाथ और लात से ही ज्यादा करते हैं, और मन की कौन कहे जो बोले बैगैर भी काम चल सकता है आप उसमें भी अपनी जुबान का काम लेते हैं तो कैसे हुए आप मनसे,
उन्होंने घूर कर देखा , और इशारा किया कि आगे बढो।
साडी कहा जा रहा है कि आपकी सेना का पूरा नाम तो मनोरोगियों की नक्सलवादी सेना होना चाहिए, काम तो आपके उनके जैसे ही हैं, और फ़िर कहे का पुनर्निर्माण, क्या निर्माण ऐसे होता है ।
बिल्कुल, आपने इतिहास नहीं पढा , किसी भी निर्माण से पहले उसका विध्वंस होना जरूरी होता है । देखो दिल्ली सात बार बसने से पहले उतनी ही बार उजड़ी भी थी न , अबकी बार मैंने घूर कर देखा, नहीं शर्मा कर।

सर सुना है आप हमेशा ही धमकी देते रहते हैं कभी किसी को कभी किसी को, असर वासर तो होता नहीं है कुछ।
क्या कहा असर नहीं होता , किसने कहा आपसे , अजी हमने रातों रात मुंबई के सारे पोस्टर्स, दुकानों के नाम, होटलों के नाम सब कुछ मराठी में करवा दिया,और बोल्लीवुद के कौन कहे, अपने सरकार देखी थी, उसके बाद जो रामू ने सरकार राज बनायी थी, वो किसके लिए थी, और किसे खुश करने के लिए थे, आप सरकार में राज के बाद भी नहीं समझे ।

सर हाल में बिहार , यु पी , से बेचारे गरीब छात्र यहाँ परिक्षा देने आए थे, उनके साथ भी आप लोगों ने मारपीट की, कई तो उनमें से ऐसे थे जो मराठी जानते भी थे, फ़िर भी.....

क्या मराठी जानते थे, सब झूठ, जब सर पे डंडा पडा सारा झूठ निकल गया, वे चीख तो हिन्दी में रहे थे ।

सर , भविष्य के लिए आपकी और क्या क्रांतिकारी योजनायें हैं ?

पहले तो में सरकार से मांग करने जा रहा हूँ कि जब सबके लिए इस पे कमीसन में बात हुई, सेना के लिए तो अलग से हुई तो हमारी सेना के लिए कुछ क्यों नहीं सोचा गया, जल्दी ही राष्ट्र्यव्यपी, नहीं महाराष्ट्रव्यापी आन्दोलन होगा। हम फैसला लेने जा रहे हैं कि जितने भी बड़े बड़े कलाकार हैं सबको अपना सरनेम महाराष्ट्रियन ही लगाना होगा, जैसे, शाहरुख पाटिल, आमिर राणे, अमिताभ गायकवाड, सलमान पवार, कैटरीना मातोंडकर अदि , और भी कई योजनायें हैं, आप देखते रहे।
मगर सर सुना है कि आप दोनों परिवारों के बीच कुछ अनबन चल रहे है, जैसे उन्होंने कहा कि सब कुछ उनके
पिता महाराज का है .
अजी छोडो छोडो मजाक है क्या, उनके कहने से क्या होता है, उनका तो तभी पता चल गया था , वैसे तो कहते थे कि मैं ये हूँ वो हूँ और , जब माईकल जैकसन आया तो कहने लगे कि , मुझे फक्र है कि माईकल जैकसन जैसे कलाकार ने मेरा टॉयलेट उप्यूग किया, बताइए तो ये कोई बात हुई।
अच्छा आप अब जाईये मुझे मनसे के बारे में पूरे मन से सोचना है।
मैं भी मन ही मन सोचते चला गया.

मनसे यानि, मनोरोगियों की नक्सलवादी सेना

इन दिनों आ सी एल की ख़बरों की जितनी ही दुर्दशा हो रही है उतनी ही ज्यादा चर्चा अपने मनसे की हो रहे है और फ़िर हो भी क्यों न जितनी तेज़ गति से वे रोज कोई न कोई रोमांचक मैच खेल रहे हैं तो जाहिर है की उनकी ही चर्चा ज्यादा होनी चाहिए। हाल ही में इस खाकसार को उनका सामना करने का मौका मिला, (यहाँ ये स्पष्ट कर दूँ की ये साक्छात्कार उनके कारागार प्रवास से पहले का है, इसलिए शक न करें )

सर, आपकी ये जो मनसे नामक टीम है, इस पर कई गंभीर आरोप लग रहे हैं, पहला तो यही है कि, आप मनसे नहीं हैं आप लोग असल में तनसे हैं, मतलब आप लोग सारे काम तनसे, विशेष कर हाथ और लात से ही ज्यादा करते हैं, और मन की कौन कहे जो बोले बैगैर भी काम चल सकता है आप उसमें भी अपनी जुबान का काम लेते हैं तो कैसे हुए आप मनसे,
उन्होंने घूर कर देखा , और इशारा किया कि आगे बढो।
साडी कहा जा रहा है कि आपकी सेना का पूरा नाम तो मनोरोगियों की नक्सलवादी सेना होना चाहिए, काम तो आपके उनके जैसे ही हैं, और फ़िर कहे का पुनर्निर्माण, क्या निर्माण ऐसे होता है ।
बिल्कुल, आपने इतिहास नहीं पढा , किसी भी निर्माण से पहले उसका विध्वंस होना जरूरी होता है । देखो दिल्ली सात बार बसने से पहले उतनी ही बार उजड़ी भी थी न , अबकी बार मैंने घूर कर देखा, नहीं शर्मा कर।

सर सुना है आप हमेशा ही धमकी देते रहते हैं कभी किसी को कभी किसी को, असर वासर तो होता नहीं है कुछ।
क्या कहा असर नहीं होता , किसने कहा आपसे , अजी हमने रातों रात मुंबई के सारे पोस्टर्स, दुकानों के नाम, होटलों के नाम सब कुछ मराठी में करवा दिया,और बोल्लीवुद के कौन कहे, अपने सरकार देखी थी, उसके बाद जो रामू ने सरकार राज बनायी थी, वो किसके लिए थी, और किसे खुश करने के लिए थे, आप सरकार में राज के बाद भी नहीं समझे ।

सर हाल में बिहार , यु पी , से बेचारे गरीब छात्र यहाँ परिक्षा देने आए थे, उनके साथ भी आप लोगों ने मारपीट की, कई तो उनमें से ऐसे थे जो मराठी जानते भी थे, फ़िर भी.....

क्या मराठी जानते थे, सब झूठ, जब सर पे डंडा पडा सारा झूठ निकल गया, वे चीख तो हिन्दी में रहे थे ।

सर , भविष्य के लिए आपकी और क्या क्रांतिकारी योजनायें हैं ?

पहले तो में सरकार से मांग करने जा रहा हूँ कि जब सबके लिए इस पे कमीसन में बात हुई, सेना के लिए तो अलग से हुई तो हमारी सेना के लिए कुछ क्यों नहीं सोचा गया, जल्दी ही राष्ट्र्यव्यपी, नहीं महाराष्ट्रव्यापी आन्दोलन होगा। हम फैसला लेने जा रहे हैं कि जितने भी बड़े बड़े कलाकार हैं सबको अपना सरनेम महाराष्ट्रियन ही लगाना होगा, जैसे, शाहरुख पाटिल, आमिर राणे, अमिताभ गायकवाड, सलमान पवार, कैटरीना मातोंडकर अदि , और भी कई योजनायें हैं, आप देखते रहे।
मगर सर सुना है कि आप दोनों परिवारों के बीच कुछ अनबन चल रहे है, जैसे उन्होंने कहा कि सब कुछ उनके
पिता महाराज का है .
अजी छोडो छोडो मजाक है क्या, उनके कहने से क्या होता है, उनका तो तभी पता चल गया था , वैसे तो कहते थे कि मैं ये हूँ वो हूँ और , जब माईकल जैकसन आया तो कहने लगे कि , मुझे फक्र है कि माईकल जैकसन जैसे कलाकार ने मेरा टॉयलेट उप्यूग किया, बताइए तो ये कोई बात हुई।
अच्छा आप अब जाईये मुझे मनसे के बारे में पूरे मन से सोचना है।
मैं भी मन ही मन सोचते चला गया.

रविवार, 10 अगस्त 2008

चिचिंग चांग, चमचम, चों चों, यानि ओलम्पिक उदघाटन में मज़ा नहीं आया .

यार पिछले कितने समय से ओलम्पिक उदघाटन का इंतज़ार कर रहे थे। पहले तो सोचा था कि किसी खेल वेळ में नाम लिखवाकर पहुँच जायेंगे मगर पता चला कि गुल्ली डंडा , पतंगबाजी, कंचे, ताश, डंडे से टायर चलने आदि , जिन जिन खेलों में हमने महारथ हासिल की थी उन्हें तो हमारे अलावा कोई देश जानता ही नहीं। बताइये होता तो सारे गोल्ड, सिल्वर आयरन ,स्टील मैडल अपने ही होते न । खैर, जब पक्का हो गया कि नहीं जा पायेंगे तो मन बना लिए घर पर ही उदघाटन समारोह का मजा लेंगे। मगर धत तेरे की।

आप ही बताइये चीन के नाम पर अपने लोगों के दिमाग में क्या आता है - चौमींत, चाऊ चाऊ, और ढेर सारा चाईनीज़ नकली समान। पूरे समारोह के दौरान आँखें फाड़ फाड़ कर चाउमीन देखने के लिए बेताब रहे और बाद में तो हमें यकीन सा होने लगा कि इस चौमें से चीन का कोई लेना देना नहीं है, होता तो क्या ओलम्पिक में न दिखता। मगर हां नकली समान वाली बात तो बिल्कुल ठीक लग रही थी। यार, वहाँ नकली बुश, नकली मुशर्रफ नकली सोनिया और पता नहीं कितने सारे नकली नेता बिठा रखे थे।

सुनने में तो आया है कि बहुत सारे नकली मैडल भी तैयार हुए हैं ताकि हमारे देश तथा उनके जैसे और खिलाडिओं को निराश न होना पड़े। हां, भाई एक बात और जनसंख्या के हिसाब से चीन से हम सिर्फ़ एक नंबर पीछे हैं और ओलम्पिक में हमारा कोई नंबर ही नहीं है। हालाँकि चीन ने भारत पर साजिश रचने का आरोप लगाया है कि भारत ने मात्र ५६ लोगों को ओलम्पिक में भेजा है ताकि बांकी लोग यहीं रहकर जल्दी से जल्दी चीन की सबसे ज्यादा जनसंख्या का रेकोर्ड तोड़ दें।

कुल मिलाकर उदघाटन में मजा नहीं आया................................
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