शनिवार, 25 जनवरी 2014

समर्थन या घमरथन


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आजकल शाम को टीवी पर आने वाली बहसों में सबसे ज्यादा दयनीय स्थिति दिल्ली कांग्रेस की दिखती है जो चीख चित्कार मचा सिर्फ़ तीस चालीस दिन की बालिग सरकार को भ्रष्टाचारी साबित करने का प्रमाण दे रहे होते हैं और ये पूछने पर कि फ़िर समर्थन काहे टिकाए हुए हैं पलट काहे नहीं देते गोरमिंट को , कि बस चिचियाहट रिरियाहट में बदलने लगती है ............

वैसे समर्थन से याद आया कि केंद्र सरकार ने इसे और जोरदार समर्थन भाव से उस व्यक्ति का तबादला कर दिया जिसे मुख्यमंत्री जी ने उस जांच की कमान देने के लिए उपयुक्त समझा जिसके पहले ही निशाने पर राष्ट्रमंडल खेल घोटाला केस होता ...उसका तबादला कर दिया गया ............सुना है कि पांडिचेरी अब इत्ती दूर से जित्ती जांच करनी हो कर डालें .....और शाम को ही फ़िर बडी बहस में घेर लिया जाएगा टोपी वालों को कि काम नहीं करते हो जबकि काम तो काम तो काम साला "जुकाम" तक की रिपोर्टिंग का आम चल रहा है ..............

समर्थन की बात पर ये भी याद आया कि जिस तरह से सरकार की मैय्यत निकालने के लिए दोनों बड्डे अपने अपने दांव चल रहे हैं एक बांस काट रहा है तो दूसरी डोरी तैयार करने को तत्पर है ,हर कोई मटका उलटा करके फ़ोडने को उद्धत मगर ये आदमी मुआं इत्ता खपा मरा लुटा हुआ है कि उअके जी को कोई रोग लगता दिख नहीं रहा है । लोगबाग भीतर ही भीतर ये सोच कर हैरान हो रहे हैं कि हर बार विलेन की तरह पेश एक खिदमत दिल्ली पुलिस अचानक ही इतनी चहेती बन गई कि मानो बताया जताया जा रहा हो कि हमारे पीठ पर अक्सर पडती आपकी लाठियां हमें तहे दिल से स्वीकार हैं दारोगा जी .................

मुझे लगता है पिछले कुछ वर्षों में नशे के कारोबार को पूरी योजना के साथ स्थापित किया गया है कि अवाम जितना अधिक होश खोकर जिएगी उतना ही अधिक जोश सरकार के अफ़सरी तेवरों में आएगा । तेवर बहुत बडी जिम्मेदार कडी है इस व्यवस्था के दोहरेपन की । सरकार अपने मुलाज़िमों के साथ काम करती हुई खुद भी मुलाज़िम की तरह पेश आनी चाहिए और बपौती तो कतई नहीं बननी चाहिए ......................फ़िलहाल तो सबको इस समर्थननुमा घमरथन में ने उलझा सा रखा है .......................

3 टिप्‍पणियां:

मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला

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