शुक्रवार, 29 जनवरी 2010

रोज़ नए दर्द, संभालता हूँ मैं

हर पल,
इक नया ,
वक़्त ,
तलाशता हूँ मैं॥

जो मुझ संग,
हँसे रोये,
वो बुत,
तराश्ता हूँ मैं॥

मेरी फितरत ,
ही ऐसी है कि,
रोज़ नए दर्द,
संभालता हूँ मैं॥

परवरिश हुई है,
कुछ इस तरह से कि,
कभी जख्म मुझे, कभी,
जख्मों को पालता हूँ मैं॥

सुना है कि, हर ख़ुशी के बाद,
एक गम आता है, तो,
जब भी देती है, ख़ुशी दस्तक,
आगे को टालता हूँ मैं॥

वो कहते हैं कि,
धधकती हैं मेरी आखें,
क्या करूं कि सीने में,
इक आग उबालता हूँ मैं॥


क्या करूं , ऐसा ही हूँ मैं....

11 टिप्‍पणियां:

  1. वाह,आज तो कविता का मूड बन आया अजय भाई ।

    झा जी, आप जैसे भी हैं, अच्छे हैं।
    ये बात दावे से कहता सकता हूँ मैं।

    जवाब देंहटाएं
  2. हर पल,
    इक नया ,
    वक़्त ,
    तलाशता हूँ मैं॥

    जो मुझ संग,
    हँसे रोये,
    वो बुत,
    तराश्ता हूँ मैं॥

    मेरी फितरत ,
    ही ऐसी है कि,
    रोज़ नए दर्द,
    संभालता हूँ मैं॥
    Ek tarashi huee rachana!

    जवाब देंहटाएं
  3. एक अदम्य जिजीविषा का भाव कविता में इस भाव की अभिव्यक्ति हुई है।

    जवाब देंहटाएं
  4. सुना है कि, हर ख़ुशी के बाद,
    एक गम आता है, तो,
    जब भी देती है, ख़ुशी दस्तक,
    आगे को टालता हूँ मैं॥

    जीवन एक चक्र है बिल्कुल सही बात कही आपने हमें अपनी खुशियों में इस कदर नही मशगूल हो जाना चाहिए की आने वाली किसी अनहोनी का समाना न कर पाएँ....सुंदर भाव...धन्यवाद अजय भैया ..

    जवाब देंहटाएं
  5. अरे भाई लगता है की मुझसे भी आप कविता करवा के ही छोड़ेंगे ...सुंदर रचना

    जवाब देंहटाएं
  6. सुना है कि, हर ख़ुशी के बाद,
    एक गम आता है, तो,
    जब भी देती है, ख़ुशी दस्तक,
    आगे को टालता हूँ मैं॥
    वाह वाह बहुत सुंदर लेकिन दर्द भरी रचना.
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत गहन भाव लिये है ये रचना.

    रामराम.

    जवाब देंहटाएं
  8. सुना है कि, हर ख़ुशी के बाद,
    एक गम आता है, तो,
    जब भी देती है, ख़ुशी दस्तक,
    आगे को टालता हूँ मैं॥

    वो कहते हैं कि,
    धधकती हैं मेरी आखें,
    क्या करूं कि सीने में,
    इक आग उबालता हूँ मैं॥

    वाह, क्या कहूँ ? बहुत ख़ूबसूरत !!

    जवाब देंहटाएं
  9. आग उबालने का बिम्ब अद्भुत है

    जवाब देंहटाएं

मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला

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