शुक्रवार, 8 जनवरी 2010

मेरे शब्द ही मेरी पहचान हैं ............



जब पिछले साल का अंत हो रहा था तो ब्लोग जगत के लिए फ़िर से उसी उथल पुथल का दौर शुरू हो चुका था जो एक बार शुरू होता है फ़िर थमने का नाम नहीं लेता मगर दिल कह रहा था कि चलो शायद रात गई बात गई की तरह नए साल आने सिर्फ़ तारीख नहीं बदलेगी, बल्कि धीरे धीरे ही सही कुछ तो मंजर बदलेगा मगर बीते एक सप्ताह में ही जो धमाकेदार उठापटक हुई है , उसने एक हिंदी ब्लोगगर के रूप में निराश ही किया अगर नया नया ब्लोग जगत में आया होता तो शायद इन परिस्थितियों में हताश और हतोत्साहित भी होता , मगर अब तो अपने इस ब्लोग संसार को भली भांति जान गया हूं मालूम है कि जब हम सब आए इसी समाज से हैं तो लाख चाहें मगर वो सामाजिक गुण अवगुण तो ही जाते हैं तो ये आरोप प्रत्यारोप , ये गुटबाजी का दोषारोपण, पुरस्कार तिरस्कार के नाम पर नोंक झोंक , हिंदी अंग्रेजी के नाम पर दिनकर निराला मंथन , पुरूष नारी की चिंता में लिखी गई बहुत सारी पोस्टें और सबसे दुखद ये कि ये सब बदस्तूर चल ही रहा है ऐसा लगता है कि अब तो ये ब्लोग जगत का एक स्वाभाविक चरित्र बन गया है लेकिन इसका एक सबसे बडा नुकसान ये होता है अक्सर ये नकारात्मकता ....ब्लोगजगत में चल रही सकारात्मकता और उससे उजले पक्षों को जैसे ढक के रख दिया है और यही मेरे दुख का कारण है , खैर कहते हैं बादल हैं तो छटेंगे भी इसलिए उसकी चिंता में दुबले होने से तो अच्छा है कि अपना काम किया जाए

ये तो बहुत ही अच्छी बात है कि , ब्लोग्गिंग को लेकर तरह तरह का आत्ममंथन हो रहा है, लोग ब्लोग्गिंग में आने का उद्देश्य , पोस्टों को लिखने पढने का मनोविज्ञान, टिप्पणी और प्रतिटिप्पणी का विश्लेषण , पुरुस्कार ,सम्मान की बातें , दिनकर साहित्य चर्चा, और भी बहुत कुछ लग रहा है कि ब्लोगजगत गतिमान है इन्हीं स्थितियों ने मुझे भी बहुत कुछ सोचने पर विवश किया मुझे लगता है कि हमारी जो भी छवि बनती या बनाई जाती है , ये जो फ़ैसले किए जाते हैं , अवधारणाएं बनाई जाती हैं कि फ़लाना उस मानसिकता का ही है , या शायद अब तो पोस्टों और टिप्पणियों से ये भी निर्धारण किया जाने लगता है कि फ़लाना फ़लाने गुट का है और मुझे दुख इस बात का है कि हम सब चाहे अनचाहे इस सब के दायरे में ही जाते हैं और किस कारण से ऐसा होता है ..........सोचा तो जाना कि सिर्फ़ और सिर्फ़ हमारे शब्द , हमारा लेखन ......यही तो निर्धारण करता है सब कुछ हमारे विचार जब शब्दों के सहारे हमारी पोस्टों पर उतरते हैं तो वो अपने आप ही सब कुछ निर्धारित करते जाते हैं और इसके साथ ही जब हम दूसरों की पोस्टों को पढ के उन्हें टीपते हैं तो वो इस बात का फ़ैसला करता है कि हम किसी बात को किस दृष्टिकोण से देखते और लेते हैं , क्योंकि हर चीज के दो पहलू होते हैं

मगर इन सबसे मह्तवपूर्ण होती है ये बात कि पोस्टों से टीपों से हमारी लेखन शक्ति, पढने समझने की ताकत , किसी गद्द पद्य को सही सही ढंग से समझ पाने की काबिलीयत बेशक हमारी पोस्टों से झलके ये भी हो सकता है कि जो भी मानसिकता के होने होने का आरोप हम पर लगता है वो भी कभी कभी या अक्सर गलत साबित हो जाए मगर इन सबसे जो एक बात बिल्कुल स्पष्ट निकल कर आती है वो है आपकी हमारी नीयत कहते हैं कि नीयत में खोट नहीं होनी चाहिए , और यदि नीयत में खोट है तो फ़िर शब्द , विचार, विश्लेषण , तर्क .....सब कुछ बेमानी है ............ और मुझे बस यही फ़िक्र रहती है कि हम अपनी नीयत को साफ़ और स्पष्ट रख सकें तो इसके आगे सब कुछ गौण हो जाएगा हो सकता है दो ब्लोग्गर्स की विचारधारा और सोच आपस में मिलती हों क्योंकि दोनों ही अलग अलग पहलू से देख रहे हों , मगर यदि नीयत दोनों की ही उस बात को देखने और परखने की है तो फ़िर चिर शत्रुता कैसी और गुटबाजी कैसी, आखिर ब्लोग्गिंग से बाहर तो कोई नहीं है ...... कोई भी नहीं ...बस आज के लिए इतना ही

20 टिप्‍पणियां:

  1. बढीया लगा आपको पढकर , अजय जी आपसे काफी हद तक सहमत हूँ , परन्तु जो भी बातें आपने बताई उसे हटाने के बाद हमारे पास किते मुद्दे बचेंगे लिखने को ?

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  2. मिथिलेश भाई,
    मैंने मुद्दों की नहीं नीयत की बात की है , और ये तो बिल्कुल ठीक बात कही आपने कि लेखन तो मुद्दों पर ही होना चाहिए मगर अहम बात है कि नीयत साफ़ और स्पष्ट होनी चाहिए ॥क्यों

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  3. जीतने जिताने के लिए इतना ही चाहिए
    इससे अधिक की दरकार भी नहीं है
    इसे पढ़कर उलझ न जाए
    इतना कोई होशियार भी नहीं है।

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  4. आपका यह पोस्ट बिल्कुल समय का मांग के हिसाब से है। आपकी बातों से सहमत हूं। यह सब देख कर एक बार तो मन हुआ कि कहां आ फंसा। इससे तो अच्छा था कभी-कभार लिखता था और डायरी में बंद। पर फिर आप जैसे कुछ सिनियर ब्लॉगर्स के आलेख ने रुक कर कुछ और इंतज़ार करने का हौसला दिया। आज ही एक ब्लॉग पर एक अच्छे सृजनकार को अंग्रेज़ी के ब्लॉगिंग से हिन्दी में न आने का संकल्प फिर से मन दुखी कर गया।

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  5. नीयत सही हो और ईमानदारी हो दुनिया को बेहतर बनते हुए देखने का जज्बा तो विचारधारा तो चलते चलते किसी रास्ते पर मिल जाती है। आप की सोच सही है अजय भाई।

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  6. अजय भाई आप की बात से सहमत हू; केसी गुट वाजी, ओर किस लिये, हम सब का एक परिवार सा बन गया है, जब कोई नया आता है तो कोई भी अपना किवाड बन्द नही करता उस के लिये. ्सब प्यार से टिपण्णी भी करते है, अब कोई सभी से पंगा ले ओर सब मिल कर उसे धमकाये तो यह कोई गुट बाजी नही, हम सब के पास इतना समय नही कि दुनिया के झंझटॊ से बच कर यहा आये ओर यहां भी दिमागी परेशानी पाये..... लेकिन अब आदत हो गई है, बुरा लगता है लेकिन सहना आ गया है.
    बहुत सुंदर लिखा, यह सब के दिल की बात होगी

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  7. आपने बिल्कुल सही कहा कि हमारे लेखन की नीयत साफ़ और स्पष्ट होनी चाहिए

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  8. खुली नज़र क्या खेल दिखेगा दुनिया का
    बंद आंख से देख तमाशा ब्लॉगिंग का...

    जय हिंद...

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  9. धीरज धरिये और अपना कार्य करते रहिये.

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  10. किताबे गम में खुशी का ‍िठकाना ढूंढो
    अगर जीना है तो हंसी का बहाना ढूंढो ।

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  11. नीयत अच्छी हो तो नकारात्मक भावनाएं भी सकारात्मक में बदलने का गुर रखती हैं ..मतभेद होना कोई गलत नहीं है ...जितना की मनभेद होना और किसी को नीचा दिखने के लिए गुटबाजी करना ...
    सार्थक आलेख ...बहुत बढ़िया ...!!

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  12. बहुत सटीकता से आपने बात को कहा, आभार पर बाड खेत को खाने लगे तो क्या करियेगा?

    रामराम.

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  13. पहले ही कह दूं भुत अच्छा लिखा है आपने ..कहीं भूल न जाऊं
    ये ब्लागजगत भी समाज का प्रतिबिम्बन है -जो यहाँ से भागना चाहते हैं वे वही है
    जिन्हें समाज से भी कुछ ल्केना देना नहीं है -वे एक तरह के हीन श्रेष्टता बोध से भी ग्रसित है
    समाज भी असी लोगों को एक लप्पड़ लगा के चल देता है
    इसलिए ही विचारों में ध्रुव विरोधी होने के बावजूद भी मैं रचना सिंह का वस्तुतःएक परोक्ष (और यह प्रत्यक्ष भी ) प्रशंसक हूँ .
    वे मुद्दों को लेकर डटी तो रहती हैं यहाँ और मैं भी उन मुद्दों पर सर्वजन के विचारों का आह्वान करता रहता हूँ .
    होने दीजिये न गुत्थम गुत्था -एक बात जानता हूँ -सत्यमेव जयते नान्रितम ! इट इज ट्रुथ एंड आणली ट्रुथ विच प्रिवेल्स !
    भागो मत यहाँ से कायरों ! और यह भी कि, न रोक युधिष्ठिर को यहाँ .....

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  14. बिल्कुल ठीक कहा आपने
    कि
    नीयत में खोट नहीं होनी चाहिए , और यदि नीयत में खोट है तो फ़िर शब्द , विचार, विश्लेषण , तर्क .....सब कुछ बेमानी है
    लेकिन
    चिंता में दुबले होने से तो अच्छा है कि अपना काम किया जाए। फिर चाहे कोई कायर कह पुकारे।

    बी एस पाबला

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  15. Aapke aalekhne sanjeeda bana diya..
    Aapko naya saal mubarak ho!

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  16. बस अपनी लगन से अपना काम करे जाओ गुटबन्दी किस लिये ? खैर ये गुटबन्दी वाली बात कभी मेरी समझ मे नहीं आयी कौन कौन से3 गुट हैं क्यों हैं कहाँ हैं शायद मैं सभी गुटों मे हूँ । हा हा हा अच्छा लिखा है बहुत बहुत शुभकामनायें ये नोक झों क चलती रहे तो रोनक बनी रहती है ब्लाग जगत मे । बस चलते रहिये देखते सुनते रहिये टिपियाते रहिये।

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  17. ऐसे ही मैं आप का प्रशंसक नहीं हूँ !
    कुछ बात है कि ...

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  18. देखिये इसी बहाने कितना अच्छा लिख डाला है आपने...

    ये सब दौर तो चलता ही रहेगा। दरअसल ब्लौग-जगत में उपलब्ध त्वरित-प्रतिक्रिया का विकल्प ही इसे इतना कंट्रोवर्सी-प्रोन बनाता है। सब क्षणभंगूर किंतु...

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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला

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