मंगलवार, 20 अक्टूबर 2009

अनलिखी डायरी का एक पन्ना

दीवाली की अगली सुबह

सोचता हूं सिर्फ़ एक दिन या कहा जाए कि सिर्फ़ एक रात मनाए जाने वाले इस पर्व के लिये साल भर इंतजार, फ़िर महीने पहले से तैयारी ,उसकी योजना, खरीददारी और न जाने कितने ही काम। फ़िर एक रात रोशनी , धुएं, और खूब शोर शराबे के बीच सब कुछ रात के आगोश में समा कर खत्म। कमाल का त्योहार है दिवाली भी। वैसे भारत जैसे देश में रहने के बहुत सारे फ़ायदों में से एक ये भी है कि साल भर आपको अपनी खुशियां, अपना स्नेह, अपना अपनापन सब कुछ बांटने के लिये पर्व त्योहार के रूप में लगातार बहाने मिलते ही रहते हैं। शायद ही कोई महीना जाता हो जब त्योहार मनाने के लिये नहीं मिलते हों । मुझे दीपावली और छठ के बाद नव वर्ष के शुभ आगमन तक जो एक समय आता है वो इस वजह से भी अखरता है कि पर्व रहित समय होता है।

पिछले दो दिनों से ब्लोगजगत इतना दीवालीमय था कि बस लग रहा था कि रंग बिरंगी फ़ुलझडियां सारा प्रकाश यहीं बिखेर रही हैं। हम भी ब्लोग्गंग में अपने दो साल पूरे करने की खुशी को डबल करते हुए घर पर दीवाली की भी धूमधाम से तैयार चल रही थी। बचपन से शौक रहा कि कुछ न कुछ प्रयोग करते ही रहते हैं । इस बार श्रीमती जी और उनकी कुछ सहेलियों के सामने उस दिन बाजार में खरीददारी करते समय हमने हांक दी कि रंगोली बनाना कोई कठिन काम नहीं है, बस जी हुक्म हो गया कि फ़िर साबित किजीये..लिजीये हमने कुछ यूं साबित किया...देखिये ठीक बन गई न.....?



इसके बाद घर की सजावट का काम,जिसे करने में न जाने बहुत पहले से ही खुद ही एक अजब सी खुशी होती है मुझे, तो जाहिर है कि वो सब मैंने अपने हाथों से ही किया ।हां दीवाली के पटाखों की तस्वीर नहीं है..क्योंकि अव्वल तो हमने वो चलाए नहीं बच्चों ने अपने हम उम्रों के साथ मामा मामी की निगरानी में खूब चलाए।और मन गई दिवाली ।
कल रात को दो बजे तक दीपावली की रात के उत्सव और उमंग में शामिल होने के बाद स्वाभाविक था कि आज देर से उठा जाए। बाहर उठ कर आए तो लगा कि दीवाली की सुबह पर कभी गौर किया ही नहीं कि दीवाली अगली सुबह कैसी होती है..आम दिनों
की सुबह से बिल्कुल अलग। बहुत ही कम ठंडी सी सुबह में बारूद की गंध अभी भी फ़ैली हुई है। चारों तरफ़ फ़ूटे हुए पटाखों के चीथडे उडे हुए कागज । उनके बीच अलग से चमकते ..बिना फ़ूटे हुए पटाखे ...एक दम खामोश....दोहरा दुख और उदासी ओढे हुए । दोहरा इसलिये कि जब उनके भीतर झांक कर सुना तो जैसे कह रहे थे , कि कल तक अपने कुनबे , अपने कारवें के साथ बिल्कुल तैयार थे...तपे हुए..फ़टने के लिये...और आज सब चले गए छोड के..दूसरा दुख ये कि जिन बच्चों को खुशी देने आए थे वो भी नहीं दे पाए। कमाल है खुद के जीवन के बच जाने का इतना दुख तो और कहीं नहीं देखा। पटाखा कहता है मेरे जीवन का उद्देश्य तो यही था कि मेरे

वजूद का धमाके के साथ खात्मे से बच्चे की मुस्कान बढ जाए। जब यही हो न पाया तो ...पटाखा उदास हो ही रहा था कि इतने में छोटा सा शुभम आ जाता है। बडी ही खोजी नज़र से ..एक एक पटाखे को परख रहा है । गुंजाईश और संभावना तलाशी जा रही है....कितने हैं जिन्हें आज दोबारा ....।वो पटाखा भी शुभम के हाथों में पहुंच कर चमक उठता है।

छत पर पडी हुई बेतरतीब सी जली अधजली फ़ुलझडियां....काली खुरदुरी ..कल कितना चिडचिड चुडचुड करते हुए रोशनी फ़ैला रही थीं। रात को दिन बना रही थीं आज दिन में खुद ही रात जैसे काली होकर पडी हुई हैं। हवाई पटाखे ..रौकेट...और अनार के बचे हुए खोल और डंडियां..कुछ लुढके हुए.कुछ सीधे खडे,,फ़ुंके हुए..ऐसे जैसे ..कोई ज्वालामुखी अभी अभी अपना लावा उगल कर ..चुप हो गया है.....। और शायद वो लावा ही तो है जो कल रात सारे पटाखों ने उगला था। इसके बाद दीयों के पास पहुंचा.....बाती/ज्योति...कहने लगे..देखो हमने तो पूरी कोशिश की थी कि रौशनी फ़ैलाते रहें...मगर इस दीये का पेट देखो न ..कितना खाली है..सारा तेल ही सूख गया हम क्या करते। मैं सोचने लगा कि ..ये शायद ये कहने की कोशिश कर रहा है कि मैं भी इस देश के किसान की तरह हूं अभी ..बिल्कुल खाली पेट ...देखना एक दिन इसी खाली बुझे हुए दीये की तरह हो जाओगे तुम सब ....यदि इस ज्योति को भर पेट तेल नहीं मिला तो..तुम्हारा प्रकाश छिन जाएगा।

मंदिर के आगे रखा बचा हुआ प्रसाद, फ़ुल्लियां, चीनी के खिलौने, मिठाई, फ़ल और उसमें पडे हुए गेंदे के फ़ूल की पत्तियां जो न सिर्फ़ देखने में प्रसाद को बहुत सुंदर बना रही थी..बल्कि उनकी खुशबू से प्रसाद की पवित्रता भी भीनी भीनी महक रही थी।और उनके पास ही रखे हुए मिठाई के ढेर सारे डब्बे, और बहुत सारे उपहार। अजी माफ़ किजीयेगा ये मुझे भी नहीं पता कि उनमे क्या क्या आया है और अभे तो ये खुलेंगे भी नहीं। अरे भूल गये क्या अभी तो कल भैयादूज है जी ..तो उनके उपहार भी तो आने हैं....तो सब एक साथ ही खोले जाएंगे न। दीवाली की अगली सुबह कितनी अलग रही न...कुछ आम दिनों की अपेक्षा।
आप बताईये कि आपका क्या हाल रहा जी.....................................?



ये पोस्ट दीवाली के अगले दिन लगाने के लिये तैयार की थी.....मगर जाने नेट वालों को क्या दुश्मनी थी...अब जो है सो आपके सामने है....हमने भी ठान ही लिया था कि चाहे होली से दीवाली आ जाये हम तो ये पोस्ट लगा कर रहेंगे....अजी कमाल है इत्ती मेहनत से तो हमने रंगोली बनाई, मंदिर सजाया, घर सजाया और फ़िर भी...


















19 टिप्‍पणियां:

  1. एक खुश्बू दार सुबह चाहे प्रेम से सुगंधित हो चाहे मिठाई से सुगंधित हो या पटाखों से सुगंधित हो..आपने एक अलग परंतु बहुत अच्छा विचार प्रस्तुत किया दीवाली के बाद का वर्णन अच्छा लगा भाई पढ़ कर बस यही हम लोगो का जीवन है सारा पल सारी खुशियाँ एक रात या एक दिन के लिए बचा कर रखते है वो जाता है फिर उसके बाद दूसरे दिन की तैयारी में सब लग जाते है..

    बढ़िया प्रसंग..बहुत बहुत धन्यवाद

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  2. अजय जी बहुत बढिया पोस्ट लिखी है। साथ ही रंगोली बनाने में भी आपका जवाब नही।बहुत बढिया बनाई है...सचित्र प्रस्तिति बहुत अच्छी लगी।धन्यवाद।

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  3. आपकी दीवाली मनाने का वर्णन लगा और सजावट बहुत सुंदर लगी .. रंगोली तो वाकई लाजबाब थी .. हमने भी दीपावली अच्‍छी तरह मनाया !!

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  4. अजय भाई पोस्ट लिखने के लिए ये सारी चीजे देखी थी या देखने के बाद पोस्ट लिखने का ख्याल आया :)
    मस्त विवरण दिया है भाई आपने , मजा आ गाया पढ़कर
    नमस्कार

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  5. बहुत बढ़िया ओब्सेर्वेशन किया आपने आस पास के माहौल का !
    रंगोली के तो क्या कहने !!
    बहुत ही बढ़िया पोस्ट !

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  6. भाईया हम ने तो इस बार सिर्फ़ पुजा की, वो भी मां ने कहा था, कोई रोशनी नही कोई मेहमान नही, ओर शगन के तॊर पर थोडी सी मिठाई घर मै बना ली बस.
    वेसे आप की दिपावली तो मजे दार लगी, ओर रंगोली भी खुब सुंदर.
    धन्यवाद

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  7. क्या हुआ जो थोड़ा लेट हो गया, बचे पटाखे तो कईयों दिन तक जलाते थे....है ना...

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  8. कुछ साल पहले रंगोली के बारे मे हमने भी यही कहा था सो हर साल अपनी ज़िम्मेदारी तय हो गई अब बिटिया बड़ी हो गई है तो वह भी हाथ् बटाने लगी है । बाकी चीज़ो के बारे मे भी डींग हाँकी थी सो... क्या कहें आप खुद समझदार हैं । वैसे दीवाली हो या होली या कोई भी पर्व मिलजुलकर काम करने का अपना मज़ा है । अगली सुबह के बारे मे क्या कहे यह दृश्य सुबह सोकर उठने के बाद आइने मे अपनी सूरत की तरह ही दिखता है ।

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  9. दिवाली के अगली सुबह इसी भाव से पोस्ट निकलेगी, यह तय है...

    रांगोली अच्छी काढ़ लेते हैं भाई..गृहकार्य में निपुण बालक...


    और आज सब चले गए छोड के.....यही जीवन है...याद दिलाती है दिवाली की अगली सुबह...

    सुन्दर भावपूर्ण पन्ना!!

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  10. तो मुआ ये नेट था, जिसने दो-तीन दिन तक झा जी को हमसे दूर करे रखा...

    जय हिंद...

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  11. रंगोली तो बहुत ही सुंदर बनाई आपने, दीवाली का भी बढ़िया विवरण

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  12. इतनी सुन्दर रंगोली ...सजावट भी ...त्यौहार के जाने के बाद का आलम अच्छी तरह प्रस्तुत कर दिया है ...बहुत बढ़िया रहा डायरी का पन्ना !!

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  13. अरे वाह अजय जी, आप तो कमाल की रंगोली बनाते हैं...अओर पूरे प्रसंग को बड़े ही दिलचस्प ढ़ंसे प्रस्तुत किया है आपने।

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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला

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