शनिवार, 19 जनवरी 2008

सोच का फर्क

साहिल को बस में बैठते वक़्त ज़रा भे ये फिक्र नहीं थी कि उसके साथ की सीट पर कौन बैठता है। वैसे भी दिल्ली से चंडीगढ़ तक का सफर इतना लंबा नहीं था। फिर उसे तो खिड़की वाली सीट मिल ही गयी थी। दिल्ली से बाहार निकलते-निकलते सर्दी की धुप गरमाने लगी थी। खाले पडी सारी सेटों पर बची खुची सवार बिठाने के गरज से देरैवर ने रिंग रोड से बाहर निकलते ही हाईवे पर बस रोक दी थी और कंडक्टर गला फाड़ फाड़ कर चंडीगढ़ चंडीगढ़ चिल्ला रहा था। साहिल इन बातों से बेखबर अलसाया और उनींदा सा दो सीटों पर थोडा पसरा हुआ था॥

अचानक ही किसी के साथ बैठने के आहट और स्पर्श से उसकी आँखें खुली । देखा तो एक युवते साथ में बैठ चुकी थे। उसने उचटी सी निगाह डाली । हाथ में काला पर्स और पेप्सी की बोतल , गोरा रंग, तीखे नैन नाख्सः कुल मिलाकर आकर्षक व्यक्तित्व की युवते नहीं युवती तो नहीं हां महिला थी वह। साहिल को न जाने क्यों उसका स्पर्श अछा लगा। नारी देह का वो स्पर्श जो बस के हिच्कोलों से ज्यादा हो जाता था साहिल को कल्पना और रोमांच से भरे दे रहा था । साहिल सोच रहा था कि यदि इस महिला से दोस्ती-वोस्ती हो जाये तो क्या बुरा है उम्र थोडी ज्यादा है तो क्या हुआ॥

सफर चलता रहा और साहिल के कल्पना भी। अंततः चंडीगढ़ पहुँचते-पहुँचते ही काफी औपचारिक बातें हो गए कम से कम उतनी बातें तो जरूर ही जितनी दो सहयात्रियों के बीच हो जाते है। साहिल जन चुका था वो anaaraaee महिला अगले कुछ दिनों तक चंडीगढ़ में ही rukne वाली थे। बस चंडीगढ़ में प्रवेश कर चुकी थे॥

साहिल उतरने का उपक्रम करने लगा था। सुनिए आप अपना कोई फोन नंबर दे दीजीये जब तक यहाँ हैं बातें होती रहेंगी, वैसे भी आपकी बातें मुझे किसी की याद दिलाते हैं॥ वह महिला थोडा ठिथिकी फिर बोली, हाँ ये ठीक रहेगा मैं भी यही कहने वाली थी मगर कुछ सोच कर रूक गयी। तुमने मेरे बेटे की याद ताज़ा कर दे जो तीन साल पहले हमें हमेशा के लिए चूद कर चला गया था।

साहिल का हाथ फोन नंबर लेते हुए कांप रहा था । ये उम्र का फर्क था कि सोच का ?

2 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर लेख। बहुत ही अच्छा लिखा है आपने। क्षमा चाहता हूँ एकाध वर्तनी की अशुद्धिया हैं। फिर भी झक्कास।

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  2. aadarniya prabhakar jee,
    namaskaar. laghukathaa achhe lagee iske liye dhanyavaad. haan aapse pehle bhee bahut se mitron ne iskee shikaayat kee hai par kyaa karun ek to kaife mein baith kar blogging kee majbooree hai upar se vartanee kee ashudhiyaan mujhe is traslitor mein theek karnee nahin aatee . waise aage se vishesh khyaal rakhungaa.

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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला

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