रविवार, 11 नवंबर 2007

सबको होता है प्यार

हाँ, मैं जानता हूँ और मानता हूँ कि इस धरती पर ऐसा कोइ नहीं है, जिसे प्यार नहीं होता। नहीं, नहीं आप ये मत सोचना कि मैं किसी और प्यार की बात कर रह रह हूँ.हाँ पता है, पिता के प्रेम को स्नेह, माँ के प्रेम को वात्सल्य और बहन के प्रेम को ममता कहा जा सकता है मगर इससे अलग मैं ऊस प्रेम की बात कर रहा हूँ जिसे इश्क,प्यार,मोहब्बत और ना जाने किस किस नाम से जाना जाता है।

जिन्दगी में कभी ना कभी, कहीं ना कहीं किसी ना किसी से सबको ही ये प्यार होता है.मैं जब सातवीं कक्षा में था तो चौथी कक्षा में पढ़ने वाली और स्चूल बस में मेरे साथ जाने वाली स्वीटी, जब परेशान होती तो में भी चिंतित रहता था। वो हंस्टी थी तो में भी हंसता था .वो सब क्या था क्योंकि तब शायद हमें प्यार का मतलब भी नहीं पता था।

सबसे बड़ा सच तो ये है कि हमें अपने अंदर ,अपने आप ये एहसास हो जाता है कि प्यार हो गया है। चाहे इजहारे मोहब्बत हो या इनकार मिले मगर इश्क तो इश्क है। हाँ आजकल प्रेम का मतलब बदल रहा है, या कहूँ कि प्यार तो वही है, हम खुद बदल रहे हैं। क्या आपको भी ऐसा लगता है.

2 टिप्‍पणियां:

मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला

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