सोमवार, 23 नवंबर 2009
ब्लौग बैठक में हुई सकारात्मक और नकारात्मक लेखन पर चर्चा
हां तो पिछली पोस्ट और उससे पिछली में अधिकांश बातें , जो ब्लोग बैठकी में हुई वो आपको बता ही चुका हूं ....अब जो कुछ बचा रह गया है ॥उसे भी बताए देता हूं ....हा हा हा ....मुझे मालूम है ॥आप सोच रहे हैं ...यार कित्ता बतिया लिए इतने में ही मुआं रिपोर्ट खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही ॥दुम पे दुम जोडे चले जा रहे हैं झा जी .....नहीं जी आप बिल्कुल मत घबराईये .....बस ये कुल आखिरी ......अरे नहीं नहीं आखिरी से पहले वाली पोस्ट है .....चलिये आप तो ये सुनिये कि अगली बात क्या हुई ॥
हमारे बीच बहस का अगला मुद्दा या कहूं कि जिस बिंदु पर चर्चा हुई वो था इन दिनों ब्लोग्गिंग में जारी धर्म विषयक लेखन ॥ हालांकि अभी ये सब थोडा शांत है ,मगर चूंकि अभी कुछ समय पहले ही धर्म आधारित पोस्टो और आरोप -प्रत्यारोप , छीछालेदारी का जो दौर चला था उसने तो जैसे कुछ समय के लिये हिंदी ब्लोग्गिंग को एक जगह केंद्रित सा कर दिया था । सभी बडे छोटे ( यहां, अनुभव , लेखन, उम्र सब के हिसाब से कह रहा हूं ) ब्लोग्गर्स पोस्ट और पोस्ट नहीं तो टिप्पणियों या प्रति टिप्पनियों के माध्यम से चाहे अनचाहे उस में पड रहे थे ......मगर ये सब ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाता है सो इश्वर की क्रपा से सब जल्दी ही शांत हो गया ॥ इस मुद्दे पर बात रखते हुए सबने जो बातें अलग अलग रूप में कहीं उसका निहितार्थ था .....कि धर्म एक ऐसा विषय जो नितांत निजि है और उसे वैसे ही माना और रखा जाना चाहिये । बात हुई कि तो फ़िर ऐसे में क्या किया जाए जब कुछ लोग जानबूझ कर ॥ऐसी बातों को उभारते हैं जो आक्रामक माहौल बनाती हैं ...और फ़िर वो सब बोला और बुलवाया जाता है जो शायद वो कतई नहीं चाहता ....इसके लिये भी सबके अलग अलग मत थे ॥मसलन वही उनकी उपेक्षा की जाए....उन पर ध्यान ही न दिया जाए....,,आदि आदि॥मगर मुझे लगता है कि एक बार या दो बार पोस्ट आने के बाद ऐसी मंशा वाले लेखकों से निपटने के लिए ऐग्रीगेटर्स को ही कुछ न कुछ सोचना और करना चाहिये .....प्रतिबंधित न सही तो कम से कम से ब्लैक लिस्ट तो कर ही देना चाहिये .......॥
इसी क्रम में चर्चा के दौरान मैंने भाई खुशदीप और मुख्य रूप से द्विवेदी जी से प्रश्न किया कि आखिर ऐसा क्यों लगता है कि अक्सर नकारात्मक लेखन .....सकारत्मक लेखन पर हावी हो जाता है । सबका मानना था कि ऐसा नहीं है ॥क्योंकि विवाद को जितना भी खींचा जाए ,बढाया जाए, मगर सर्वकालिक लेखन ही हमेशा याद रखा जाता है .....और उसीका लेखक भी । और फ़िर नकारात्मकता की ओर सुलभता से आकर्षित हो जाना तो मानव का स्वाभाविक चरित्र है । यहां मुझे एक किस्सा याद आ रहा है जो शायद इस बात को ज्यादा बेहतर तरीके से सामने रख सके । एक बार एक विद्यालय के सामने एक छोटी सी बच्ची अपनी कोई बात एक पैंफ़लेट के माध्यम से सबको पढाने की कोशिश कर रही थी । वो विद्यालय के सामने से गुजरने वाले हरेक पैदल, गाडी वाले को रोक कर वो पैंफ़लेट पकडाती ...पकडने वाला एक उचटती सी निगाह उस पर डालता और थोडा सा आगे बढते ही उसे फ़ेंक कर आगे चल जाता ॥ इसी बीच एक मोटर सायकिल सवार ने बच्ची के पास आके कुछ कहा ...। बच्ची ने अगले व्यक्ति को वो पैंफ़लेट मोड तोड कर पकडाया ,......उस व्यक्ति ने कौतूहलवश उसे लेकर पूरा पढा ...और आने जाने वाले दूसरों को भी उत्सुकता हो गई ॥
कहने का मतलब ये कि ये तो मानव का स्वभाव है तो फ़िर जाहिर कि लेखनी में कैसे इस स्वभाव से अलग रहने की अपेक्षा की जा सकती है ॥। बस इस सबके अलावा हो बातें हुई वो आपसी स्नेह और हमारी आपसी चुटकियां थी ....जी हां और उन सबके बारे में आपको बताऊंगा अपनी अगली और आखिरी रिपोर्ट में ॥
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बहुत बढ़िया संस्मरण .....बढ़िया प्रस्तुति . भाई सकारात्मक ग्रहण करो नकारात्मक छोड़ दो
जवाब देंहटाएंबोध कथा अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंफिर क्या हुआ?
सकारात्मक लेखन गति पकडे़ और नकारात्मक लेखन बंद हो.. ये दुआ करते है..
जवाब देंहटाएंसाकारात्मक लेखन ही लम्बे समय तक लिक्खाड़ों की पंक्ति में बिठाए रख सकता है
जवाब देंहटाएंचलने दीजिये चर्चा का आनन्द ले रहे हैं ।
जवाब देंहटाएंअजय जी यही सही है हमे खुद भी सकारात्मक होना चाहिए और लोगो को भी अपने सकारात्मक रवैये से खुशी देनी चाहिए आज जहाँ इतना नकारात्मक दुनिया में भरा पड़ा है वहाँ कुछ अच्छा और बेहतर सोच ज़रूरी है..संस्मरण बढ़िया लगा..धन्यवाद अजय भाई
जवाब देंहटाएंमानोगे नहीं............... कल कहे थे पहले बुलबुल का ध्यान रखा करो फिर ब्लॉग्गिंग का !!
जवाब देंहटाएंअब कैसी तबियत है हमारी बेटी की ?
वैसे बढ़िया लिखे है १०० % सहमत है आपके विचार से !
बच्ची ने अगले व्यक्ति को वो पैंफ़लेट मोड तोड कर पकडाया ,......उस व्यक्ति ने कौतूहलवश उसे लेकर पूरा पढा ..
जवाब देंहटाएंहम तो भैया आपकी पूरी पोस्ट पढ़ते है। फिर भी आपने बातें तोड़-मरोड कर रखी... बडी भूमिका के बाद :)
बुलबुल का हाल कैसा है? पोस्ट से तो लग रहा है अब ठीक होगी।
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा, अभिनंदन।
जवाब देंहटाएंबात करते करते line काटने पर जो असहेजता होती है आज एक बार फिर महेसूस करी !
जवाब देंहटाएंखैर, बहुत अच्छा लगा बात करके खास कर मेरी बेटी अब ठीक है यह जान !
बाते तो अब होती ही रहेगी !
बहुत अच्छॆ विषय पर ओर अच्छी चर्चा.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत विस्तृत रही चर्चा.
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा झा जी!!
लिखना चलता रहना चाहिए ....... जो किसी को सकारात्मक लगता है किसी दुसरे को नकारात्मक लग सकता है ........
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंअजय जी एक बात कहना चाहूंगा कि पहले हमें , हमें से मतलब उन शीर्ष विद्वानों, साहित्यकारों को सकारात्मक और नकारात्मक लेखन को ठीक से परिभाषित करना होगा, क्योंकि अक्सर मैंने देखा है कि सत्य को भी कभी कभी हमारे देश में नकारात्मक लेखन की संज्ञा दी जाती है !
जवाब देंहटाएंआईडिया तो बढिया है।
जवाब देंहटाएंअजय भाई,
जवाब देंहटाएंव्यस्तता के चलते देर से पोस्ट पर आ पाया हूं...बिटिया बुलबुल का क्या हाल है...
जय हिंद...
बहुत बडिया इन्तज़ार रहेगा आगली पोस्ट का शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंचर्चा जारी रहनी चाहिए।
जवाब देंहटाएंतो ज़नाब, मुलाकात कब हो रही है ?
मुन्नाभाई सर्किट की ब्लोग चर्चा
जवाब देंहटाएंझा जी
मुन्नाभाई बोलने को मागता है की अच्छी चर्चा के लिऎ आपका प्यार की झपी वाला अभिनंदन करने का.....सोचरिएला है....