पिछले कई वर्षों की तरह जैसी उम्मीद थी बिल्कुल वैसा ही मनाया गया ये पृथ्वी दिवस, और पिछले कई वर्षों या कहूँ की दशकों की तरह इस बार से अगली बार तक कुछ भी वैसा नहीं बदलेगा की जिसके बाद हम कह सकें की देखो ये है पृथिवी दिवस को मनाने की सफलता । हाँ इस बार शायद फर्क ये रहा की मुझे सहित कुछ लोगों ने थोड़ी देर के लिए अपने घर या दफ्तर की बत्तियां बुझा दी होंगी , मगर क्या सचमुच इतना काफी है पृथ्वी को बचाने के लिए, लोग कहेंगे की लेकिन मुझे ऐसा नहीं लगता और मेरे.
लेकिन मुझे ऐसा नहीं लगता, और मेरे ख्याल से इससे बेहतर तरीके हैं जिनसे हम इस पृथ्वी दिवस को ज्यादा सार्थक कर सकते हैं। अरे भाड़ में गया पृथ्वी सम्मलेन, भाड़ में गया टोकियो समझौता, ;और भाड़ में जाएयीं इसी तरह के अन्य समझौते और बड़े बड़े वाडे, क्यूंकि उनसे न तो आज तक किसी का भला हुआ है ना ही आगे होने वाला है। एक छोटा सा उदाहरण लेते हैं , आज विद्यालयों में क्या हुआ होगा, कहीं पर कोई चित्रकला प्रतियोगिता आयोजित की गयी होगी, या कोई भाषण प्रतियोगिता हुई होगी, क्या इससे बेहतर ये नहीं होता की सभी विद्यार्थियों से कहा जाता की वे विद्यालय प्रांगन में एक एक पौधा लगायें। इसी तरह, आम लोगों से भी आग्रह किया जाता की अपने आसपास जहाँ भी उन्हें जगह मिलती है एक एक पौधा लगायें, फ़िर अगले वर्ष इसी पृथ्वी दिवस पर जब उन पौधों को देखते तो यकीन मानिए ऐसी अनुभूति होती जैसी अपने संतान की किसी भी उपलब्धि पर होती है। ये बात वो अच्छे तरह समझ सकता है जिसने मेरी तरह अपने हाथों से बहुत से पौधे लगाये हों। हालाँकि मुझे ये भी पता है की दिल्ली जैसे महानगर में ये पौधे लगना भी कोई आसान काम नहीं है क्यूंकि यहाँ की सारी जमीनें तो ये पत्थर के जंगल खा गए। ये खुशी की बात है की अभी पेड़ पौधे के मामले में हम अन्य बहुत से देशों के मुकाबले बेहतर स्थिति में हैं, मगर यदि इन diwason का कोई उपयोग हो सकता है तो फ़िर ऐसे ही रास्ते क्यूँ न चुने जाएँ।
दरअसल आज हम जिस जगह पर पहुँच गए हैं उसमें सच तो यही है की हमें अपने आसपास की vआतावरण से, मिटटी से, हवा से, पानी से कोई प्यार नहीं है, लगाव नन्हीं है, हम इंसान रहे कहाँ हैं जो इनसे प्यार बरकरार रह सके, हम तो मशीन हो गए हैं और जाहिर है की मशीनों की तो हमेशा से ही प्रकृति से दुश्मनी रही है । लेकिन काश ये बात सब समझ पाते की आज लगाया एक पौधा ही कल जाकर हमारी पृथ्वी को, हमारी धरती, को और हमारे बच्चों, हमारे भैविष्य को बचाए रखेगा, तो ही हम ये पृथ्वी दिवस मनाने के लायक भी रहेंगे। अन्यथा न पृथ्वी बचेगी, न दिवस,ना ही रात्री ............
Darasal bazar, naam aur shohrat ne sari samvednao ko bhunane ki lat laga di hai aadmi ko, bas nahi chalta warna kutte ko roti khilate hue apni photo khincha kar akhbaar me chhapa de aadmi (bhale hi baad me usko laat mar de)aur bhaisahab apne pados me paudha lagaya to kya kiya, 50 logon ke samne kaun sa certificate mil jayega?
जवाब देंहटाएंसचमुच एक पेड लगाकर सार्थक कर सकते हैं हम सभी पृथ्वी दिवस को .. इतनी बडी जनसंख्या जुट जाए एक एक पेड लगाने में .. कुछ वर्षों में ही कायापलट हो जाए पृथ्वी का।
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा आपने। यही पृथ्वी दिवस की सार्थकता है।
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मॉं की गरिमा का सवाल है
प्रकाश का रहस्य खोजने वाला वैज्ञानिक
आपने बहुत ही ख़ूबसूरत रूप से और बिल्कुल सही लिखा है!
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