तुम्हारा साथ
तुम्हारा नाम,
तुम्हारी सोच,
तुम्हारे सपने,
तुम्हारी कल्पना,
तुम्हारा यथार्थ,
तुम्हारी छवि,
तुम्हारा एहसास,
मन को हमेशा सुकून पहुंचाते हैं,
मगर जाने क्यूँ हम किस जूनून में पड़ कर,
तुम्हारा वजूद,
तुम्हारी कोमलता,
तुम्हारी मौलिकता,
तुम्हारी नश्वरता,
तुम्हारी निश्छलता,
तुम्हारा स्वरुप।
तुम्हारा सब कुछ,
मिटाने पर तुले हैं, उफ़ प्रकृति तुम कभी कुछ कहती भी तो नहीं.
कहने की जरूरत नही है उसे ..वह करेगी जब करेगी तब कोई कुछ न कह सकेगा
जवाब देंहटाएंउसके संकेतो को हम समझ नहीं पा रहे ... बडे दुष्परिणाम की प्रतीक्षा कर रहे हैं ... वही होगा।
जवाब देंहटाएंकहेगी नहीं..एक दिन बता देगी...वो दिन दूर नहीं..तब पछतावा बस रह जायेगा हमारे पास-अभी तो हम उसकी सहनशक्ति का माखौल उड़ाने में लगे हैं..कल जबाब न होगा!!
जवाब देंहटाएं-सुन्दर भाव!!
बहुत सुन्दर अजय जी.इस खिलवाड का नतीजा हमें नज़र भी तो आने लगा है.उसके मौन संकेत ही बडे खतरनाक हैं.बधाई.
जवाब देंहटाएंअदभूत है आपका प्रकृति चित्रण
जवाब देंहटाएंbahut sundar.
जवाब देंहटाएंfilhal aapki 5-6 post hi padh saka hoon, par sab nayaab. badhai aur shubhkamnayen ki aapki kalam ki nok aur zyada nukeeli ho.
nacheez ko saraahne ka shukriya.
hya baat hai aap bhimeri tarah kavita karne lage
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अजय जी
जवाब देंहटाएंaap sabkaa bahut bahut dhanyavaad, padhne aur pasand karne ke liye.
जवाब देंहटाएंअजय जी,आप किस्सा-कहानी पर आये, कहानी पढी और हौसला भी बढाया कितना धन्यवाद दूं??
जवाब देंहटाएंअजय जी
जवाब देंहटाएंप्रकृति बोलती है, बताती है, पर हमने अपनी आँखें और कान बंद कर रखे हैं, समझ भी बेच खाई है.