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सोमवार, 30 मार्च 2009

वहाँ चले हैं जूते, यहाँ चप्पल तो चलनी चाहिए

कुछ ऐसी ही नयी,
कोई ख़बर,
यहाँ भी निकलनी चाहिए,

हम बदलें ख़ुद को,
या बदल दें आईना,
हर हाल में ये,
सूरत बदलनी चाहिए,

इसको उसको सबको,
परखा लोकतंत्र बीमार ही रहा,
कुछ तो करो तदबीर ऐसी,
देश की तबियत सम्भल्नी चाहिए,

मत बने न बने ,
दाब भी चाहे कोई कर न सके,
कोशिश ये हो कि,
सबकी भडास निकलनी चाहिए,

हम कब मांगते हैं, उन्हें ,
वापस बुलाने का हक़,
हमारी तो इल्तजा है बस इतनी,
वहां चले हैं जूते,
यहाँ चप्पल तो चलनी चाहिए ..

गुरुवार, 16 अक्टूबर 2008

हाथ धुलाई के बाद हाथ जुड़ाई दिवस

हाथ धुलाई दिवस जो हाल ही में मनाया गया , के पीछे सबसे बड़ा कारण , मुझे लगता है करवाचौथ ही होगा , करवाचौथ में हाथों में मेहंदी लगवाने के लिए हाथ बिल्कुल साफ़ होने चाहिए न। पुरुषों को कहा गया की पैसा हाथों की मैल है । इसलिए इस दिवस के बाद और करवाचौथ के बाद आपके हाथों में न तो कोई मैल रहेगी , हो सकता है की हाथ ही न रहे।

खैर इसके बाद अब हाथ जुड़ाई दिवस या कहूँ की हाथ जुड़ाई महोत्सव मनाया जाने वाला है। हमारे आप जैसे दिखने वाले किंतु कुछ विशिस्थ नस्ल के प्राणी, अन्दर के मक्कार पाने को छिपा कर एक मासूमियत और दया का भाव लिए घर घर जाकर ये महोत्सव मानायेंगे। तब तक ये महोत्सव जारी रहेगा जब तक उनके झांसे में आकर आप अपने हाथ न कटवा बैठें। वैसे कभी कभी आपस में ये हाथ तुडाई , पैर तुडाई दिवस भी मना लेते हैं।

सार संग्रह ये की हाथ धुलाई हो या हाथ जुड़ाई , हाथ यानि जगन्नाथ.

बुधवार, 15 अक्टूबर 2008

लिव इन रिलेशनशिप यानि जीवन में जहाजी रिश्ता

अब चूँकि शहर , उसमें भी मेट्रो , वो भी राजधानी आ गए हैं, अजी आ क्या गए हैं, बस आ कर बस गए हैं तो स्वाभाविक रूप से सभी ग्रामीणों , और पुरे ग्राम समाज के प्रति एक चाही और अनचाही जिम्मेदारी आ ही गयी है, वो है शहर में चल रही नयी बातों, कानूनों, फैशन, बदलाव , के बारे में उन्हें जानकारी देना। आप यकीन मानें अपनी अभूतपूर्व बुद्धि के अनुसार हम ऐसा करते भी रहते हैं, ये अलग बात है अक्सर उसका अर्थ का अनर्थ ही हो जाता है। अभी कल ही लपटन चाचा का फोन आ गया, कहने लगे, बताओ , बचवा, का नया चल रहा शहर में , अब तो चुनाव के चर्चा हो रही होगी।
हमने कहा , कहाँ चाचा, अभी चुनाव तो दूर है, वैसे भी अगले पाँच साल तक किसे हम गद्दी सौपेंगे इस बात का फैसला करने में हम लोग पाँच मिनट भी कहाँ लगते हैं। आज कल तो लिव इन रिलेशनशिप की चर्चा हो रही है हर तरफ़।
चाचा डर कर पूछने लगे, का बात कर रहे हो भैया, का ई भी मैड काऊ, चिकन गुनिया तरह का कौनो बीमारी हैं का।

अरे नहीं चाचा, ई वैसे तो बीमारी ही है, मगर ऊ टाईप का नहीं है , जैसा आप सोच रहे हैं। दरअसल इसका सीधा मतलब है जिंदगी में एक जहाजी रिश्ता होना चाहिए।

का मतलब, पूरा बात खुल कर बतलाओ।

देखो , चाचा, आप तो जानत हो की अन्ग्रेज़न को जहाज और उनमें बनाये रिश्ते का कितना चाहत रहता है, ऊ आप टाइटैनिक देखबे किए होंगे, हम ता उस पिक्चर के बाद से कौनो सफर में एक पेंसिल और कागज़ साथ लेकर चलते हैं की ना जाने कब चित्रकारी का मौका मिल जाए। वैसे ही अंग्रेजों ने एक व्यवस्था बनाई है जिसमें चित्रकार और जिसका चित्र बनाना है ऊ जहाज के अलावा भी जगह तलाश कर अपनी कला का प्रदर्शन कर सकता है। और फ़िर हम लोग किसी से पीछी थोड़ी हैं, इसलिए वैसे रिश्ते यहाँ भी बनने और बनने की बातें चल रही हैं।

पर बिटवा, ऊ जहाज ता अंत में डूब गया था न,
अरे चाचा ता ई जहाज कौन सा पार जाने के लिए चढ़ा जाता है, ई जहाज और रिश्ता दोनों ही डूबने के लिए ही तो बनता है।

अच्छा तब तो तुम भी कहे नहीं कोशिश करते हो , नयी चीज है, सीख कर आओ, यहाँ गाँव का कुछ भला हो जायेगा।
अरे नहीं चाचा, जिनका शादी हो चुका है न , मतलब उनके लिए तो पहले ही dead out रिलेशनशिप बन चुका होता है , इसलिए उनके लिए ई जीवन में ऐसे कोई भी जहाजी रिश्ते का कोई काम नहीं है। अब छोडो चाचा, ई सब नया बात है, ज्यादा हमको भी नहीं पता है जैसे ही कुछ पता चलेगा हम आपको बताएँगे।

मेरा अगला पन्ना - क़ानून बना, कुँए में डाल.

सोमवार, 13 अक्टूबर 2008

एकता परिषद् हो या एकता कपूर, एक ही बात है

अपनी आदत के अनुरूप , मित्र लादेन पांडे, दूर से ही चिच्याते हुए आए, सुने हैं झा जी , एकता के लिए कोई बैठक हो रही है, आपको ख़बर है की नहीं।
हमने भी अनमने भाव से कह दिया, ठीक ही तो है यार इस एकता कपूर और इसके धारावाहिकों ने पूरा बेडा गर्क कर के रख दिया है, न सर पैर का पता चलता है , न घर द्वार का, ना रिश्ते नातों का कोई मतलब रहता है न ही जीवन मृत्यु का, कमबख्त ने तो महाभारत को भी अपना सीरियल बना कर छोड़ दिया है, अब तो बर्दाश्त के बाहर की बात है, बैठक होनी ही चाहिए।
अरे आप का कहे जा रहे हैं, दरअसल वो बात नहीं है।

मैं थोडा ठिठका, अच्छा , तो फ़िर क्या, एकता कपूर की शादी वादी के लिए कोई बैठक कर रहे हैं, अजी छोडो आप भी किस चिंता में पड़े हो , वो क्या एक शादी करेगी, उसे तो सारे कैरक्टर वाले लोगों से अलग अलग शादी करनी पड़ेगी।

अब लादेन पांडे भड़क गए, का झा जी, हम जा रहे हैं, हम तो ये कहने आए थे कि, देश की गंभीर आंतरिक स्थिति को देखते हुए एकता परिषद् की महत्वपूर्ण बैठक होने जा रही है, आप पता नहीं कौन सा रोना लेकर बैठ गए।

अरे क्यों भड़क रहे हो लादेन भाई , तुम तो यार सचमुच लादेन की तरह बिदक रहे हो , काहे कि महत्वपूर्ण बैठक, कैसी एकता, और कौन सी परिषद्। तुम ही बताओ , इस बैठक में किस बात पर चर्चा नहीं हो रही है जानते हो, आतंकवाद पर। अब बताओ , इस देश में आतंकवाद का मकसद और परिणाम सिर्फ़ इसलिए ही हैं ना कि इस देश की एकता टूटे, वरना क्या आतंकवादियों ने यहाँ से सोने की चिडिया पकड़नी है। ये सब तो एक नाटक चल रहा है, बिल्कुल एकता कपूर के नाटक की तरह। सम्प्रदायवाद, जातिवाद, धर्म परिवर्तन , पता नहीं कौन कौन से एपिसोड ढूंढे और शूट किए जा रहे हैं, असली मुद्दे को छुआ तक नहीं जा रहा।
जिस तरह एकता कपूर के सभी सीरियलों में , परिवार, समाज, रिश्ते ,नाते, नारी, कथा ,कहानी का एक ही हश्र और अर्थ , यानि बिना मतलब और बिना सर पैर का होता है , उसी तरह इस एकता परिषद् में सब कुछ एक ही ढर्रे पर चलता रहता है, जिसका ना कोई प्रभाव है ना ही कोई परिणाम.अब बताओ भैया लादेन पांडे , है न एकता कपूर और एकता परिषद् बिलकुल एक जैसे, बिल्कुल जुड़वा भाई बहन।

लादेन जी मुस्काते हुई अपना पांडे पण दिखाते हुए हमारे गले लग गए.

शनिवार, 11 अक्टूबर 2008

मुंबई तेरे बाप की, और खंडाला तेरी माँ का

मुंबई तेरे बाप की और खंडाला तेरी माँ का :-
उस दिन जब उद्धव ठाकरे , अजी अपने बाबा साहब के चश्मों चिराग ने जयघोष किए की मुंबई उनके बाप की है, उच्च तरंगों से युक्त मेरे मष्तिष्क ने फ़ौरन कई सारे निष्कर्ष निकाले। पहला ये कि, यदि मुंबई उनके बाप की है तो निश्चित तौर पर खंडाला उनकी माँ का ही होगा। मैंने फ़ौरन लप्तु चचा को फोन कर कहा कि चाचा झुग्गी में जो आलीशान प्लाट आप लिए हैं ऊ का पक्का रजिस्ट्री बाबा साहब से ही कराईयेगा। फ़िर पराबैंगनी किरणों से युक्त दूरदृष्टि ने और भी कई बातें भांप ली। इस हिसाब से तो बिहार लालू जी का, गुजरात मोदी भैया का, बंगाल चटर्जी -बनर्जी का, तमिलनाडु अपनी ललिता पवार, अजी जय ललिता जी का , उत्तम प्रदेश बहन जी का, और बांकी सब प्रदेश भी नेता लोगों या उनके बाप का है। भैया जिनका या जिनके भी बाप का ई दिल्ली हो जल्दी से जल्दी घोषणा करें हमको भी तो एगो घर खरीदना है यहाँ पर तो उसके लिए तो मालिक से ही न बात करनी पड़ेगी।
ठीक है, हो सकता है ई बात ठीक हो मुदा सबको एक बात बताना ठीक रहेगा कि पूरा हिंदुस्तान हम लोगों का- यानि एक आम भारतीय जी - है, हमारे बाप का है , हमारा है। और पता नहीं क्यों मन कहता है कि पूरे हिन्दुस्तान का बाप किसी भी लोकल बाप से बड़ा ही होगा, समझ गए न बाबा साहेब और बेटा साहेब।

मालामाल ,फिर भी बेहाल :-
इन दिनों हमारे दफ्तर में कुछ अजीब आलम है। दरअसल जब तक पे कमीसन नहीं आया था, सब कर्मचारी पे पे पिपिया रहे थे, मगर अब जब उसके लागू होने की बारी आयी है तो स्थिति और भी कमाल हो गयी है। अब जबकि सबकी बाकया राशि का बिल बनाया जा रहा है तो दफ्तर की तरफ़ से सबसे दो स्कीमों में से एक चुनने को कहा गया है , जिसके अनुसार बकाया राशि का बिल बनाया जायेगा। इसमें से एक ही स्कीम कर्मचारियों को ज्यादा फायदा पहुंचाने वाली है, मगर सबसे दिलचस्प बात ये है कि किसी को भी नहीं पता कि उसे किस स्कीम को अपनाने से ज्यादा फायदा होगा। नतीजा ऐसा कि पूरी भागमभाग मची है। दिमाग में पठाखे फ़ुट रहे हैं, बेचारे सब के सब मालामाल होने वाले हैं फ़िर भी बेहाल हैं। आज के नवभारत टाईम्स , दिल्ली संस्करण में तो पूरी कहानी ही छपी है । देखें क्या होता है.....

मंगलवार, 26 फ़रवरी 2008

अमां, ये कोई रेकोर्ड हुआ ! (व्यंग्य )

देखिये तो कैसा ज़माना आ गया है लोग रेकोर्ड बनाने और उसे तोड़ने के लिए कैसे कैसे पग्लाने वाले काम कर रहे हैं। कोई पानी के अन्दर जा कर शादी कर रहा तो कोई हेलिकोप्टर में उड़ते हुए शादी कर रहा है। कोई इनसे ये पूछे की भैया क्या पानी के अन्दर शादी करने से तुम्हारे बच्चे कछूवे की तरह मजबूत और ढीठ होंगे या की हवा में शादी करने से बच्चे उड़न तश्तरी पैदा होंगे, कहिर छोडिये इनको ये कहाँ सुधरने वाले हैं। अपने यहाँ भी कम खर्चे वाले रेकोर्ड बनाने की होड़ लगी रहती है , कोई मूंछ बढ़ा रहा है तो कोई पुँछ। कल यानि २५ फरवरी को इंदौर में ३२ हज़ार छः सौ इक्कीस लोगों ने एक साथ जमा होकर चाय पीकर , सबसे बड़ी चाय पारी का गिनीज रेकोर्ड बानाया। अजी लानत है , ये भी कोई रेकोर्ड हुआ, नित्थल्ले से खड़े हो कर सिर्फ़ चाय पी ली और रेकोर्ड बना लिया।

इससे अच्छा तो ये होता की हमारे आईडिया से काम लेकर ऐसे धाँसू रेकोर्ड बना लेते । आप भी गौर फरमाएं:-

१। पहला रेकोर्ड ऐसा बनाया जा सकता था की देश के सभी चावान्ने छाप , नीम हकीम अपनी काबिलियत से ३२ हज़ार छ सौ इक्कीस लोगों की किदनियाँ निकाल लेते , किद्नीयाँ ही क्यों सारे निकाले जा सकने वाले अंग , या कहें पार्ट-पुर्जे निकाल लेते। फायेदे का फायदा और रेकोर्ड का रेकोर्ड।

२। एक ही दिन पूरे देश में एक साथ ३२ हज़ार छ सौ इक्कीस किसान आत्म हत्या करते, वैसे तो वे अलग अलग ये काम कर ही रहे हैं तो फिर क्यों ना रेकोर्ड के लिए करें।

३। देश में हमारी कुशल दोक्तार्नियाँ क्यों पीछे रहे , जब डॉक्टर कुछ नया कर रहे हैं , तो उन्हें भी कन्या भ्रूण हत्या का एक राष्ट्रीय अभियान चला कर एक ही दिन में वही ३२ हज़ार छू सौ इक्कीस भ्रूण हत्या कर देनी चाहिए।

४। अजी ताजा ताजा रेकोर्ड तो इस बात का भी बनाया जा सकता है की मुम्बई से एक ही दिन ३२ हज़ार छे सौ इक्कीस बिहारियों को बाहर कर दिया जाए। अजी अब उनके जरूरत भी कहाँ है कम से कम जाते जाते एक रेकोर्ड तो बना ही सकते हैं।

५। अपना ब्लॉग जगत ही क्यों पीछे रहे , अब जबकि ब्लॉग जगत के विभ्भिन्न मोहल्लों , गलियों और कस्बों में नुक्ताचीनी , छेताकंशी, आरोप आदि का दौर चल रहा है तो क्यों ना एक ही दिन सब मिल कर एक साथ आपस में एस छेछालेदारी कर के कुल ३२ हज़ार छे सौ इक्कीस बार यही पोस्ट करते रहे।

६। एक आखिरी रेकोर्ड ऐसा भी हो सकता है की किसी एक ब्लॉग पर जाकर कुल ३२ हज़ार छे सौ इक्कीस बार तिप्प्न्नियाँ कर दी जाएँ ताकि वो खुशी के मारे कोमा में चला जाए ।

कहिये क्या ख्याल है , आपके पास भी तो रेकोर्ड बनाने के अनोखे आईडिया होंगे तो बताइये ना......
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