हाँ , हाँ , मैं जानता हूँ की आप लोगों ने सिर्फ़ ये कहावत सुनी है इन नेकी कर दरिया में डाल, लेकिन महाराज , ये तो बरसों पुरानी बात है, अव्वल तो आज कोई नेकी करता नहीं है, अलबत्ता कुछ रेकी जरूर कर रहे हैं (सुना है किसी किस्म का इलाज होता है ), और यदि किसी ने गलती से नेकी कर भी ली तो बिल्कुल शेयर बाजार के इनवेस्टमेंट की तरह से उसे मान कर उसके बदले कुछ ज्यादा बड़ा पाने की सोचने लगता है, रही बात दरिया की तो अब जो भी नहर, दरिया बचे हैं, सब नाले बने हुए हैं। अरे देखिये फ़िर मुद्दे से भटक गया, मैं कानूनों की बात कर रहा था।
अपने यहाँ जितने सारे क़ानून बने हुए हैं, या की अब भी बनाए जा रहे हैं, उसमें से आधे से ज्यादा तो हमें ही सुधारने के लिए बनाए जाते हैं। ये अलग बात है की जिस तरह से बनाए जाते हैं, जैसे आनान फानन में लागू किए जाते हैं। आइये कुछ को देखते हैं, हाल ही में बना क़ानून सार्वजनिक स्थानों पर सिगरेट नहीं पीने का, पेड़ों पर लाईट की सजावट नहीं करने का, गन्दगी नहीं फैलाने का, रेड लाईट पर तथा कई प्रतिबंधित जगहों पर तेज आवाज में हार्न न बजाने का कानून, और इसके अलावा नाबालिग़ बच्चों द्वारा किसी भी वाहन को नहीं चलाने का, ड्राइविंग करते समय फोन पर बात नहीं करने का क़ानून, aur भी इस जैसे न जाने कितने ही क़ानून बेचारे कागजी क़ानून बन कर रह गए हैं। यहाँ ये भी बताना चलूँ की धुम्रपान विषयक क़ानून जब जापान में लागू हुआ तो पहले ही महीने में धुम्रपान करने वालों में से अस्सी प्रतिशत लोगन को जुरमाना भरना पड़ा। आज वहां पर सभी सार्वजनिक स्थानों पर एक मोबाईल वन घूमती है जिमें बैठ कर लोग धुम्रपान करते हैं। इसी तरह भूटान में धुम्रपान पर प्रतिबन्ध लगाने से दो वर्ष पहले ही सरकार ने इस विषय में काम करना शुरू कर दिया था, शायद आज इसलिए वे पूरी तरह सफल हैं।
सवाल ये है की कब तक सरकार, प[रशाशन, अदालत ये बताती और समझाती रहेंगी की अमुक ढंग से जियो, अमुक ढंग से चलो, गन्दगी, कूदा न फैलाओ, नशा न करो और क्या सचमुच ही सरकार चाहती है की ये सब रुक जाए। सवाल दोनों तरफ़ के लिए है, और जिम्मेदारी भी, तो होता ये है की शायद इसलिए हमेशा ही दोनों एक दूसरे पर दोषारोपण कर के चल देते हैं। देखें ये दौर कब तक चलता है, वैसे नशे का और किसी भी क़ानून को तोड़ने का चलन इन दिनों ज्यादा बढ़ रहा है, आप देखें की आप कौन से फैशन में हैं या की दोनों में हैं।
मैं तो इंतज़ार कर रहा हूँ की किसी दिन क़ानून के ढेर से ये कुँआ तो जरूर भर जायेगा और तब छलक कर कुछ क़ानून जब बाहर आयेंगे, शायद तब इन्हें हम पालन होते हुए भी देख पाएं.
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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला