मंगलवार, 21 जनवरी 2014

मनाइए छब्बीस जनवरी और करिए जलसा परेड .........






आज सुबह सुबह जब फ़ेसबुक पर मैंने अपने राजनीतिक विचार और खासकर अपने मंतव्य को स्पष्ट किया तो शाम तक उस पर मित्रों की सूची में से ही कुछ मित्रों ने अपनी भडास निकालने के साथ साथ , जयचंद , राष्ट्रद्रोही के तमगों से नवाज़ने के बाद , और उखड कर हमें लात मार कर अपनी फ़्रैंड लिस्ट से भी बाहर का रास्ता दिखा दिया । अब हमें धेले भर का बुरा नहीं लगता , ज्यादा से ज्यादा और क्या , इससे पहले तो एक भाई साहब ने सिर्फ़ नमो नमो ही लिखने के लिए मुझे नरेंद्र मोदी से पेमेंट पाने वाला कहते हुए दिल्ली में उनके अनुसार सबसे अच्छा विकल्प आम आदमी पार्टी को अपना समर्थन नहीं देने के लिए खूब गरियाया था , उसी दिन गरिया के निकल गए आज होते तो हरिया गए होते । खैर , उस पोस्ट की प्रतिक्रिया स्वरूप इतना सारा लिख गया कि सोचा इसे भी ब्लॉग पर सहेज़ता चलूं , आगे जब बच्चे पढेंगे तो वे खुद अच्छा बुरा तय करेंगे , हमारे बारे में , इस समय के बारे में ............यही लिखा था



अब जरा खरी खरी
मुद्दा - पहले पुलिस कर्मियों का सस्पेंशन और बाद में तबादला । ओह इतनी बडी मांग । ऐसा तो आज तक इतिहास में कभी नहीं हुआ , सबने सुना ही पहली बार है कि कोई मुख्यमंत्री इस मांग के लिए पहले गृहमंत्री से मिले और फ़िर धरने पर बैठ जाए । उस पुलिस का तबादला जिसे विश्व की भ्रष्टतम पुलिस व्यवस्था में से एक के लिए गिना जाता है ।और किसके कहने पर , कांग्रेस का एक निगम पार्षद भी होता अजी वो छोडिए नेताओं के चमचों बेलचों तक के फ़ोन भर से क्या क्या होता है , हमें पता है और खूब पता है ।

कारण - पुलिस के अनुसार मंत्री ने बदतमीज़ी की और मंतरी के अनुसार पुलिस ने अपना काम नहीं किया । विदेशी महिला नागरिकों के साथ गलत व्यवहार हुआ अब तो मेडिकल रिपोर्ट भी यही कहती है और इस देश में ऐसी मेडिकल रिपोर्टों में आजतक कभी हेरफ़ेर नहीं हुई । फ़िर विदेशी महिलाओं के साथ हुए व्यवहार की जहां तक बात है तो आजतक कभी दिल्ली में खुलेआम "बिहारी" कह कर अपमानित करने वाला समाज , मुंबई में भैया कहकर पीट पीट कर भगाने वाला समाज आज इतना चिंतित , वाह समाज तो सचमुच बदल रहा है। और हां जिन्हें मादक पदार्थों की तस्करी और तस्करों का रिकार्ड देखना हो दिल्ली पुलिस से आरटीआई लगा कर जानने की कोशिश तो करें कि पिछले पांच वर्षों में दिल्ली में दर्ज़ इन अपराधों के आरोपियों में किन किन लोगों का नाम मिलता है ।

सही गलत - सडक पर नहीं बैठना चाहिए , दफ़्तर में बैठ कर सारी शासन व्यवस्था को संभालना बदलना चाहिए । बिल्कुल यही होना चाहिए क्योंकि साठ सालों से यही तो होता आया है और देखिए न शासन व्यवस्था कितनी चुस्त दुरूस्त है आखिर कोई मंत्री । सारा झमेला ही कमरों के बाहर निकल कर सडकों पर नीतियों और नियमों का बनना , उन्हें परखना और लागू करवाने के तरीके का है । संसद में बन रहे कानून , और वातानुकूलित कक्षों में बैठे इन्हें बनाने वाले कितने लोगों को खुद आज वे कानून याद हैं और उनमें से कितने ऐसे बचे हैं जो इन कानूनों के साथ खेले और उन्हें तोडा नहीं , वो खुद सोचिए समझिए ।

मीडिया - मीडिया हा हा हा हा , अभी एक समाचार चैनल दिखा रहा है कि एक थाली में बैठे चार लोग खिचडी खा रहे हैं और कुछ लोग चाय पी रहे हैं और इस कारण ये धरने पर बैठे मुख्यमंत्री का बहुत बडा झूठ अरे अपराध करार दिया जाना चाहिए । मीडिया जिसे शहादत और अय्याशी की खबर में फ़र्क करने की समझ नहीं बची है , जिसे मातम और जलसे को उसी सनसनी के साथ परोसने का शऊर है फ़िर उसकी खबरों पर बिलबिलाना ही क्यूं फ़िर मीडिया भी कहां स्थाई विरोध या पक्ष में खडा रहता है , कभी रहा ही नहीं

और चलते चलते ये भी .......बात सिर्फ़ इतनी सी है कि अदने पदने लोगों ने सनक कर चुनाव लड लिया , कुछ अपने जैसे सताए , दबाए , लोगों को सच बताने समझाने के लिए युवाओं की एक जमात को उतार दिया , मामला ऐसा पलटा दिया सबने मिलकर कि मरगिल्ली समझ कर खिल्ली उडाती पार्टी , ठीक बराबर में आकर खडी हो गई । उफ़्फ़ इतनी हिमाकत .........कुछ भी करना मंगता था "जयकांत शिकरों" का ईगो हर्ट नहीं करना मंगता था .........लेकिन क्या करें वो तो  हर्ट हो चुकी थी । तो क्या हुआ , बैठने दो पदों में नीचे अभी इतने सालों की सैटिंग आखिर कब काम आएगी , लपेट देंगे कहीं न कहीं और ऐसा करके छोड देंगे कि फ़िर ये तो क्या दूसरे भी बगावत , सगावत वाले सुर न पकडें । मैच सिर्फ़ दो टीमों में ही देखना चाहते हैं लोग , हमेशा से देखते रहे हैं , तीसरे की औकात ही क्या ??? बात सिर्फ़ औकात दिखाने की है , देखो दिखा रहे हैं न , बैठो धरने पे , मर जाओ लाठी खाखा के , अब तो पब्लिक भी तुम्हारे खिलाफ़ है और साथी भी , हमें तो ऐसा मौका चाहिए ही था ........................लेकिन , लेकिन , लेकिन , उफ़्फ़ उन लोगों का क्या करें जिन्होंने दिल्ली के इतने जगहों पर अपनी बागडोर इन झाडुओं के हवाले कर दी ...सब के सब पागल हैं , निरे बेवकूफ़ , भावुक कहीं के , नायक फ़िल्म की  ऑडिएंस .........और इन सबके अलावा जो भी लोग देश में बचे हैं सिर्फ़ वे , और सिर्फ़ वे ही देश को चलाने लायक हैं , वे ही सक्षम हैं , वे ही ठीक हैं ..जो भी हैं बस वे ही हैं ।

विकल्प - दिल्ली सरकार को फ़ौरन बर्खास्त करके छब्बीस जनवरी के भव्य जश्न की तैयारी शुरू की जाए , अब तो दिल्ली पुलिस की न बन पाने वाली कमिश्नर मैम ने भी हरी झंडी दे दी है।

छब्बीस जनवरी को दिल्ली पुलिस की एक विशेष शौर्य झांकी निकाली जाए और इन तमाम पुलिस वालों को मंत्रियों को सबक सिखा देने जैसे कारनामें के लिए वीरता पदक से सम्मानित किया जाए ।

दिल्ली सरकार के सभी मंत्रियों और विधायकों पर मुकदमा ठोंक के उन्हें अंदर कर दिया जाए , देश की व्यवस्था को बदलने का सपना दिखाने और फ़िर उसे पूरा करने के लिए खुद कूद पडने के लिए , मुख्यमंत्री को जनवरी की ठंडी कडकडाती रात में फ़ुटपाथ पर सोकर  ये तथाकथित "अराजकता" फ़ैलाने के लिए ।देश मज़े में है , और मज़े में ही रहेगा , उसे आने वाले महीनों में लोकतंत्र का "ट्वेंटी-ट्वेंटी" खेलना है वो भी सिर्फ़ दो टीमों में बंटकर , ठीक है न ।

पोस्ट लिखते लिखते तक समाचार चैनल बता रहे हैं कि मुख्यमंत्री धरना समाप्त कर सकते हैं क्योंकि दो आरोपी पुलिस अधिकारियों को छुट्टी पर भेजा जा रहा है , लो चित्त पट्ट सब बराबर :) अब मनाइए छब्बीस जनवरी , करिए जलसा परेड , देखिए आम आदमी को गरियाने का अगला मौका आपको कब मिलने वाला है ............

8 टिप्‍पणियां:

  1. २६ जनवरी मानना "आप" के राज मे "पाप" है क्या !!??

    जिस तल्ख लहजे मे आप ने ताना मारा है उस से तो ऐसा ही संदेश मिलता है ... :(

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    उत्तर
    1. हां अब कहिए , ताना और तंज़ , तल्ख लहज़ा , किस बात का जी और किसको ? आपको मारेंगे , छब्बीस जनवरी मनाते हैं हम आप , छुट्टी मनाते हैं जी छुट्टी , जरा गरीबी और गरीबों की एक झांकी निकालने दीजीए न एक बार , परेड इसके बिना अधूरी ही रहती आई है , और हां दिल्ली में तो कर्फ़्यू टाईप होता है जी सब कुछ की तालाबंदी ,स्कूल कालेज दफ़्तर तक , जबकि उस दिन तो सब खुले होने चाहिए और राजनीतिक जश्न मनना चाहिए ।मनते देखे हैं कभी ..........ई ताना नहीं लगता है आपको

      , हमने तो ये कहा कि देखिए सरकार ने फ़िर से जेनरल आदमी को उसकी औकात दिखा दी और दोनों पुलिस वालों को छुट्टी पर भेज दिया । अरे भई जब इत्ती अराजक , निर्रथक , फ़ालतू की सरकार और लोग हैं कि दिल्ली पुलिस तक आज मासूम नज़र आ रही है तो फ़िर काहे आगे मौका दिया जाए ई सब का , पुलिस वालों को सस्पेंड करने से अच्छा था कि सरकार को सस्पेंड करके दिल्ली की जनता को दो महान पार्टियों में से किसी एक के हवाले ही हस्तिनापुर को किया जाए , बागी लडकों को सडकों पर ही छोड दिया जाए , क्या कहते हैं

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  2. उत्तर
    1. जरूर देखिए हजूर मगर पीछे का मिटा के मत याद रखिएगा , पिछला सबक भी जरूरी होता है न ;) ;)

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  3. बहुत बहुत शुक्रिया हर्ष , पोस्ट को स्नेह देने के लिए

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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला

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