मंगलवार, 14 जनवरी 2014

मकर संक्रांति वाया लाय चुडलाय एंड खिचडी

..
सभी मित्रों को मकर संक्रांति की बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं








Photo: आप सभी को मकर संक्रांति की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं !


 मकर संक्रांति के दिन से जुडी बचपन की जो बहुत सारी यादें हैं उनमें से सबसे पहली है जनवरी की सर्द कोहरे भी सुबह में ठंडे ठंडे पानी से नहाना । और नहाना इसलिए भी कंपल्सरी था या कहें कि बिना किसी दबाव के इस कंपल्सरी रूल को मान लिया जाता था क्योंकि नहाने के तुरंत बाद ही तो लाय चुडलाय तिलबा ( मुढही , चिवडे और तिल को भून कर गुड की चाशनी में लपेट कर बनाए गए छोटे बडे लड्डू ) मिलना होता था ।


इस सुबह का इंतज़ार असल में तो साल के शुरू से ही रहता था लेकिन जब एक दिन पहले मां को चूडा , मुढही तिल गुड आदि सामग्री लाते और फ़िर उन्हें भूनते देखते थे और उसकी महक रसोई से निकल कर घर के सारे कमरों में चली जाती थी तो होमवर्क करते करते भी मन और जीभ दोनों ही रोमांचित हो जाती थी । ठंडे पानी से नहाने में कोई खास उर्ज़ नहीं होता था क्योंकि वैसे भी उन दिनों कौन सा गीज़र हीटर का जमाना था मगर हम थे तो आखिर बच्चे ही ।

मुझे याद है कि नहाने के बाद सबसे पहला काम होता था मां द्वारा एक रस्म का निभाया जाना जिसे हमारे मिथिला समाज में आज भी बदस्तूर निभाया जाता है । मां एक कटोरे में भीगे और फ़ूले हुए चावल , सफ़ेद तिल और गुड को मिला कर तैयार की हुई सामग्री हम सब बच्चों को बारी बारी से अपने हाथों से मुंह में खिलाते हुए पूछती थीं " तिल चाउड बहबैं " हम कहते थे "हं" । पूछने पर मां बताती थी कि मैंने ये खिलाते हुए पूछा है कि इसका मतलब वृद्धावस्था में तुम सब संतान हमारा बोझ वहन करोगे न , और हम कहा करते थे हां । जाने वो हम कितना कर पाए या नहीं , और सच कहूं तो मेरे मां बाबूजी ने तो हमें मौका ही नहीं दिया ।

इसके बाद बारी आती थी दिन के खाने की । पूरे बिहार में इस दिवस को खिचडी दिवस के रूप में भी मनाया जाता है , कारण यही कि उस दिन लगभग हर घर में दिन का खाना यही होता था , खिचडी और उसके चार दोस्त , अरे नहीं समझे , मां के शब्दों में

"खिचडी के चार यार
घी, पापड , दही अचार "



उस दिन के खिचडी का स्वाद ही अनोखा जान पडता था । मुझे तो याद है कि न सिर्फ़ अपने घर के खाने में बल्कि यदि कहीं न्यौता दावत भी खाने जाते थे तो भी खाने में यही खिचडी और उसके चार यार ही होते थे । गांव बदल गए , समाज बदल गया और बहुत कुछ हम भी बदल गए नहीं बदला तो ये मकर संक्रांति और नहीं बदला तो खिचडी खाने का रिवाज़ । कहते हैं कि इस पर्व के बाद शीत ऋतु का प्रकोप कम होना शुरू हो जाता है । अब बदलते पर्यावरण के प्रभाव में ये अब कितना सच झूठ हो पाता है ये तो ईश्वर ही जाने मगर मगर संक्रांति का पर्व अब भी बहुत ही उल्लास और हर्ष के साथ पूरे उत्तर भारत में मनाया जाता है । चलते चलते आप सबको पुन: बधाई और शुभकामनाएं ।


9 टिप्‍पणियां:

  1. आज मम्मी बिलकुल यही पूछी... मेरा जवाब था - "बह ही तो रहे हैं, और ज़िन्दगी भर बहेंगे.." मम्मी दूसरी बार पूछी ही नहीं.. :(

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. खुशकिस्मत हो बच्चा , बहो कि इसी में जीवन का सार छुपा है

      हटाएं
  2. मकर संक्रान्ति की शुभकामनायें और बधाईयाँ ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपको भी बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं अमित जी

      हटाएं
  3. मकर संक्रान्ति की शुभकामनायें :))

    जवाब देंहटाएं
  4. पूरी की पूरी थाली खाने का मन कर रहा है, शुभकामनायें।

    जवाब देंहटाएं

मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...