हमारा मस्तिष्क ,अपने आप में एक खूबसूरत एलबम की तरह होता है , एक ऐसा एलबम जिसमें हमारे चाहने न चाहने से कोई तस्वीर नहीं लगती , बल्कि यादों का ऐसा कोलाज़ बन जाता है जिन्हें टटोल कर कुछ लोग तो जिंदगी तक गुज़ार देते हैं । हमारे भी अंतर्मन में जाने ऐसी कितनी ही जिंदगियां गड्डमगड्ड पडी हुई हैं । समय असमय वो अपने आप ट्रेलर की तरह सामने से गुज़र जाती हैं । लेकिन मन के भीतर की यादों को चाहे जितना बखान किया जाए , बताया जाए , हर कोई उसे ठीक ठीक वैसा ही समझ ले या कि हम उसे वैसा ही बयां भी कर पाएं ये जरूरी तो नहीं । इसलिए ही शायद फ़ोटो खींचने का चलन शुरू हुआ होगा \ जिसने भी इसे शुरू किया उसका एहसान मानव को मानना ही चाहिए । चित्रों , तस्वीरों और फ़ोटो में जाने हमने कितनी ही जिंदगियों को सहेज़ कर रख छोडा है । जबसे मोबाइल आया है तबसे और भी आसान हो गया इन्हें सहेज़ना । देखिए न मैं खुद यही करता हूं अब ...मोबाइल से खींची गई कुछ तस्वीरों और हर फ़ोटो के साथ एक दास्तान एक फ़साना ...है न
मां अन्नपूर्णा मंदिर , जालंधर |
शहर की पथरीली मिट्टी , कुछ नकली काली परत वाली धूल से जब भी जी जाता है ऊब ,
आंखों को शीतल और मन को पावन करने को , नहीं मिलती है ये हरी हरी सी दूब
आंखों को शीतल और मन को पावन करने को , नहीं मिलती है ये हरी हरी सी दूब
दिल्ली से मधुबनी रेल यात्रा के दौरान |
ज़िंदगी को सफ़र समझ के चलते रहे दिन रात सही , मगर पटरियों पर जो पल गुज़रे ,
वहीं फ़साना बन बैठा , यादें कुछ और जुडीं , जहां कहीं भी रुक हम उतरे
वहीं फ़साना बन बैठा , यादें कुछ और जुडीं , जहां कहीं भी रुक हम उतरे
जीवन धार बनी युगों से तुम इस धरा पर , इठलाती इतराती , शीतल सर्प सरीखी बहती हो
निचोड निचोड पहाडों से अमृत लाती , हम रोज़ घोलते विष तुममें , फ़िर भी कुछ न कहती हो
शहर की आपाधापी में , हम इंसान से कब मशीन हुए , इसका गुमान कहां अब होता है ,
यूं फ़ुर्सत में बैठ पल दो पल ,यार संग बोल बतियाने को , अक्सर ये मन रोता है
सैंट्रल स्कूल दानापुर , जिसे बरसों बाद देखा था |
कैसे कह दें अब कुछ याद नहीं , कैसे कह दें कि सब भूल गए ,
एक एक चैप्टर एक एक पीरीयड याद आया , जब भी अपने स्कूल गए
हम जैसे कुछ बदकिस्मत , अक्सर जाने कई वज़हों से , इन शहरों में आ फ़ंसते हैं ,
जहां सब कुछ छोडा छूटा , जाकर देखो , कुछ लोग वहां अब भी बसते हैं
जहां सब कुछ छोडा छूटा , जाकर देखो , कुछ लोग वहां अब भी बसते हैं
कभी कभी मन करता है , मांग लें इस ईश्वर से , इक और भी जीवन दे दो उधार ,
कंकड पत्थर में बहुत जी लिए , अब प्रकृति की गोद में भी थोडे तो दें दिन गुज़ार
चलिए आज के लिए इतना ही ......