शनिवार, 12 जुलाई 2008

ब्लॉगजगत में महिलाओं की धाक


पिछले दिनों जब मैंने अपने एक पोस्ट में महिलाओं पर कुछ पंक्तियाँ लिखी थी तो जैसा मैंने सोचा था बहुत सी प्रतिक्रियां आयी थी और कई तो ऐसी थे की जिनको पढने के बाद मुझे लगा की यार ये सब तो मुझे औरतों का दुश्मन समझने लगे हैं। हालाँकि ऐसा नहीं है की उस बात को ठीक करने के लिए या किसी तरह की कोई सफाई देने के लिए मैं ये पोस्ट लिख रहा हूँ परन्तु इतना जरूर है की मैं चाहता था की बिल्कुल आराम से किसी दिन फुर्सत में ये पोस्ट लिखूंगा, क्योंकि यदि किसी का जिक्र छूट गया या कोई बात दिमाग में आने से रह गयी तो फ़िर बाद में अफ़सोस होगा , मगर पता नहीं किस भावना के वशीभूत होकर मैं ये लिखने बैठ गया हूँ।

ब्लॉगजगत पर जितने समय से मैं हूँ उसमें मैंने महसूस किया है की यहाँ महिलाओं के लेखन की , उनके ब्लोग्स की और शायद इससे बनी उनकी शक्शियत की एक अलग ही बात है , एक अलग ही प्रभाव है, जो किसी भी क्षेत्र से ज्यादा है, नहीं ऐसा नहीं है की ये एक अकेला ऐसा क्षेत्र है, या की मैं पुरुषों के लेखन या इस ब्लॉगजगत में प्रभाव और सक्रियता से कोई तुलना कर रहा हूँ । बस इतना समझ लीजिये की यहाँ महिलाओं को जबरदस्त स्थान और महत्त्व मिला हुआ है।

यदि मैं एक एक का नाम लिखवाऊं तो शायद अपनी आदत के अनुरूप किसी न किसी का नाम जरूर भोल जाउंगा फ़िर भी कोशिश करता हूँ , क्योंकि उनकी नाम की चर्चा के बगैर , ये चर्चा अधूरी सी हो जायेगी। उन नामो में , घुघूती बासूती, नीलिमा, प्रत्यक्षा, मीनाक्षी, रंजना, अनुराधा, लवली, स्वाति, सुजाता, पारुल, दीप्ति, रश्मि सुराना ,शानू, मुस्कान, महक, बेजी ,ममता ,और भी बहुत सी महिला ब्लोग्गेर्स जिन्हें में पढता या नहीं भी पढ़ पाता हूँ।

सबसे पहली बात तो ये की महिला ब्लोग्गेर्स (अधिकाँश महिला ब्लोग्गेर्स ) अपने ब्लॉग को उसी तरह सजाती और सवारती हैं जैसा वे अपने घर को , हमारे जैसे नहीं की बिना मुंह धोये पहुँच गए , जैसा अपना थोबडा वैसा ही ब्लॉग का भी दिखता है, मगर ऐसा नहीं है की इसमें सिर्फ़ महिलाओं को ही महारत हासिल है हमारे भाई लोग भी कमाल की मेहनत कर रहे हैं.मगर इतना तो मैं यकीनी तौर पर कह सकता हूँ की महिलाएं इस काम में ज्यादा ध्यान देती हैं । अब उनके लिखने के विषय पर जाएँ, इसमें कोई शक नहीं की हमारी महिला ब्लोग्गेर्स अपने क्षेत्र
और अपनी विशेषता के अनुरूप पूरी दक्षता और संजीदगी से यहाँ लिख रही हैं। चाहे वो पारुल जी का संगीत ज्ञान हो , या प्रत्यक्षा का साहित्य ज्ञान, चाहे वो बेजी की चिकित्सकीय स्पंदन हो या घुघूती जी का घुमक्कड़ साहित्य, या फ़िर शानू अनुराधा, रंजना की कवितायें हो या मिनाक्षी जी का अलग अलग अंदाज़ या फ़िर स्वाति की विशिस्थ शब्दावली, सब कुछ अपने आप में अनोखा है, और ममता जी के तो पता नहीं कितने टी वी चैनल हैं । हाँ मगर मुझे लगता है की यदि मैं औरतनामा, चोखेरबाली जैसे सामूहिक ब्लोगों की चर्चा नहीं भी करूँ तो भी सभी महिला का एक प्रिया विषय ख़ुद "औरत " ही है, उनका संघर्ष , उन पर होने वाले अत्याचार, उनका शोषण, उनमें आ रहे परिवर्तन, और अपनी आदत के अनुरूप वे पुरुषवादी मानसिकता वाले समाज को जरूर कटघरे में खडा करती है , जो शायद स्वाभाविक भी है। लेकिन कोई महिला ब्लॉगर या जो ब्लॉगर नहीं भी है कभी उन महिलाओं को अपने निशाने पर नहीं लेती जो ख़ुद ही औरतों की सबसे बड़ी दुश्मन बन जाती है।

एक और ख़ास बात लगती है महिलाओं की, वे बेहद भावुक पाठक और उतनी ही तत्पर टिप्प्न्नी करने वाली भी होती हैं, मगर सिर्फ़ उनके लिए जो उन्हें टिप्प्न्नी करते हैं, हा हां हां , मजाक कर रहा था , मगर यदि किसी ने महिलाओं के लिए कोई प्रतिकूल बात कह दी या जिसे हमारे बुजुर्गों ने बड़ी चालाकी से नाम दे दिया है कड़वा सच तो फ़िर तो बच्चू आपकी खैर नहीं , आपको ऐसी ऐसी , और ऐसे ऐसे लोगों से तिप्प्न्नियाँ मिलेंगी की फ़िर कभी आपको ये हसरत नहीं रहेगी की को आपको टिपियाता नहीं है।

चलिए आज इतना ही ज्यादा लिखा तो जरूर कोई न कोई मेरे कान पकड़ लेगा। चलते चलते सिर्फ़ इतना
की जिनका नाम भूलवश मैं यहाँ लेना भूल गया वो मुझे माफ़ कर दें , और अपने बोल्ग्गेर भाइयों से इतना केई बंडू नाराज़ ना होना की जो काम एक महिला को करना चाहिए था वो मैंने क्यों किया , आप लोगों के लिए भी जल्दी ही एक खुशखबरी दूंगा। वैसे अभी तो सिर्फ़ इतना ही की शायद अगली पोस्ट मेरा विभिन्न समाचार पत्रों में छापा हुआ आलेख होगा जो की पूरे ब्लॉगजगत पर लिखा गया है, प्रति आते ही यहाँ स्कैन करके लगाउंगा।

फिलहाल राम राम
आपका
अजय
9871205767

6 टिप्‍पणियां:

  1. aapka lekh achha laga. or ek bat ki sirf hum log hi nahi sare bhai log bhi bhut achha likhte hai. or mujhe aap sabhi bhaiyo ke lekh bhut achhe lagte hai. aap jari rhe.

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  2. अजय जी,जरा नीचे दी गई टिप्पणियों पर गौर फरमाइए। शायद फिर आपको अपनी खैरियत की इतनी चिन्ता न रह जाए।
    ये टिप्पणियाँ मेरे लेख बब्बन मियाँ का फोन http://ghughutibasuti.blogspot.com/2008/07/blog-post_07.html पर दी गईं हैं।
    बेनामी ने कहा…

    एक कवि ने लिखा है ...
    हाल ही में पढ़ा ...
    "कुछ लोग दुनिया में आते हैं ... हिनहीनाने के लिए ..."

    ये घुघुति अम्मा इस ही बात का सबूत है ....

    बालीपुत्र
    2:47 पूर्वाह्न
    Mired Mirage ने कहा…

    बालीपुत्र बेनामी जी,टिप्पणी के लिए धन्यवाद। आपने हिनहिनाना कहा रेंकना नहीं,सो तुलना घोड़े से की गधे से नहीं ! :) इसके लिए आभार।
    फिर अम्मा भी कहा सो एक बार और आभार।
    घुघूती बासूती

    घुघूती बासूती

    जवाब देंहटाएं
  3. आलोचना भी सामर्थ्यवान की होती है घुघूती जी

    जवाब देंहटाएं
  4. क्या महिलाएं हर क्षेत्र में पुरूषों से आगे नहीं रहती हैं ,आपको क्या लगता है ,सिर्फ ब्लागिंग में ही ऐसा है ?

    जवाब देंहटाएं

मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला

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