मंगलवार, 26 फ़रवरी 2008

छोडो रहने दो ( एक कविता )

तुम क्यों हो,
यूं परेशाँ,
मेरी खातिर,
चलो छोडो,
मेरे जज्बात,
मुझ ही तक,
रहने दो॥

जो अब भी ,
न समझे तुम,
मेरी नज़रों ,
की भाषा ,
ख़त्म करो,
ये बात ,
यहीं तक,
रहने दो॥

मैंने कब कहा,
की तुम,
मुझे अपना,
हमकदम बना लो,
जो रास्ते,
और भी हैं,
चले जाओ खुशी से,
ये साथ,
यहीं तक,
रहने दो॥

मैं जानता हूँ,
तुम चमकता,
चाँद हो,
मैं चमकती रेत,
मगर गर्दिशों की,
तुम रहो,
आसमान में मुस्कुराते,
जमीन तक,
रहने दो॥

मैंने कब,
कहा तुमसे,
की तुम,
रुस्वाइयां झेलो,
हमें टू ,
आदत है इसकी,
ये सौगात ,
हमीं तक,
रहने दो॥

चलो छोडो , रहने दो ...............

6 टिप्‍पणियां:

  1. मैंने कब कहा,
    की तुम,
    मुझे अपना,
    हमकदम बना लो,
    जो रास्ते,
    और भी हैं,
    चले जाओ खुशी से,
    ये साथ,
    यहीं तक,
    रहने दो॥
    bahut hi sundar shabd hai is kavita ke,nice.

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत भावपूर्ण सुन्दर रचना है।

    जो अब भी ,
    न समझे तुम,
    मेरी नज़रों ,
    की भाषा ,
    ख़त्म करो,
    ये बात ,
    यहीं तक,
    रहने दो॥

    जवाब देंहटाएं
  3. maine to kahaa thaa ki chhodo rehne do . aap logon ne to pakad liyaa . mere kehne par bhee chhodiyegaa mat. aap sabkaa dhanyavaad.

    जवाब देंहटाएं
  4. bahut hi sundar .bahut achhi lagi kavita

    जवाब देंहटाएं

मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला

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