शनिवार, 9 फ़रवरी 2008

सस्कृति के ठेकेदारों से एक अपील

ये अप्पेल हमारी धर्म, संस्कृति के उन स्वयम्भू ठेकेदारों से है जो पिछले कुछ वर्षों से हमें और हमारे परमपराओं को जीवित रखने का श्रेय लिए हुए हैं। हलिंकी अब उनसे अपील की जरूरत नहीं है क्योंकि वैलेंताईं डे के करेब आते ही वे अपने शाश्त्रों के साथ प्रेमी जोडों की तलाश में ठीक उसी तरह सतर्क हो जाते हैं जैसे सीमा पर हमारे जवान विदेशी घुसपैठियों की तलाश में सजग रहते है और गिफ्ट गलैरीयों पर तो ऐसे टूट पड़ते हैं जैसे दुश्मनों के बंकर हों. वैसे तो इस बार उनके headquarter में कुछ और भी जरूरी काम चल रहा है , जी हाँ हिन्दी भाषियों को मार पीट कर भगाने का काम।


मगर जी, ऐसी भी चिंता की क्या बात है । बडे ही श्रमशील लोग हैं। संत वलेंताईन ने ना जाने इनकी कौन सी जमीन हड़प ली कि उसका बदला ये अब तक ले रहे हैं। एक और बात मेरी समझ में नहीं आती कि इन सभ्यता के ठेकेदारों के अपने बच्चे क्या प्रे-प्यार नहीं करते। खैर, इस बार भी ये ठेकेदार मीडिया के सामने (एलोक्त्रोनिक मीडिया ऐसे मामलों में इनका सच्चा पार्टनर होता है सदा से ) कुछ कार्ड्स जलायेंगे, साथ घूमने वाले बच्चों को पकरेंगे , और पश्चिमी जगत को गालियाँ देंगे और फिर अगले साल तक इसी दिन का इंतज़ार करेंगे ।
आख़िर सच्चे प्रहरी जो ठहरे हमारे संस्कृति के ..

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...