आते ही किसी ने लपक के पूछा कि ....अरे कहां थे भई .इतने दिनों तक .. न कोई खोज न खबर ..न ही कोई हलचल ........आखिर माजरा क्या है .......? इससे पहले कि वे अपनी नौन स्टौप प्रश्न श्रंखला को आगे बढाते हमने उन्हें ईशारा किया चुप होने का और फ़िर खुद शुरू हो गए ॥
कुछ खास नहीं जी ...हम संन्यास मोड में चले गए थे ,.....अरे वो परमानेंट वाला नहीं यार .....वो तो कोमाटिकल संन्यास होता है ...हम तो मौडर्न वाले ......वो होता है न बाबा बूबा बनने वाला .....हां उस टाईप के सन्यास को निकल लिए थे ....हां हां ....वहीं हिमालय की गोद में ॥ नहीं नहीं यार कोई खास वजह नहीं थी ....देखो तुम्हें तो पता ही होगा कि आजकल में अपने समाज के एक बाबा जी की स्थिति काफ़ी नाजुक होने के कारण उनके फ़्यूचर ......और उससे ज्यादा उनके ...सक्सेसर को लेकर बाजार में तरह तरह की अटकलें तेज हो गई थीं ......फ़िर हो भी क्यों न आखिर हमारा समाज अब "बाडिक्ट "(वो जिस तरह से एडिक्ट होता है न तो उसी तरह समाज को बाबाओं की जो आदत लगी है ..उसे बाडिक्ट कहते हैं ) जो हो गया है ....तो हमारा भी एक ब्लोग्गर होने के नाते फ़र्ज है कि हम भी इस समाज के लिए बाबा ट्रेनिंग को निकल पडते । सो हमने भी वही किया ॥
हम भी हिमालय की गोद की ओर अग्रसर हो गए थे । दरअसल और कोई चारा भी नहीं था ....श्रीमती जी के ...मौसेरे भाई जी की लुटिया डूबने जा रही थी (यानि उनका जुलूस निकलना था ...वैसे भी मेरा तो हमेशा से यही मानना रहा है कि बारात तो दुल्हन की निकलती है दुल्हे का तो जुलूस निकलता है ) सो हम भी उस लुटिया डूब का सुंदर चित्रण देखने को पहुंच गए ॥ रास्ते में ही सोच लिया था कि जाते ही विश्राम करेंगे और सारी थकान दूर करेंगे ...सो जाते ही ...सारी खुदाई एक तरफ़ .......से पूछा ...बच्चे सुना था तुम्हारे पास भी कोई यंत्र हमारे समान ही है ..मगर उससे तुम पढाई लिखाई जैसा कोई फ़ालतू के प्रयोजन हेतु उपयोग में लाते हो ...लाओ बच्चा उसे हमारे हवाले कर दो ..॥ अगले कुछ दिनों तक हम उस पर ठीक उसी प्रकार से जमने वाले हैं जैसे तथागत ...पीपल के नीचे जमे थे ...॥ उसने भी शायद इस चाह में हमें अपना कंप्यूटर थमा दिया कि कल को उसके यंत्र को भी हमारे दिव्य ज्ञान की प्राप्ति के बाद पीपल वाला नेम फ़ेम मिल जाए ॥ मगर हाय री हमारी किस्मत ,,,,,,वो यंत्र तो यंत्र , खुद का हमारा डेढ पाव का संचार यंत्र भी मरणासन्ना हो गया ॥ पता चला कि सरकार की कुछ नीति ही ऐसी है ॥
सत्यानाशी सरकार यहां भी पीछा न छोडा । हम कहां मानने वाले थी .....बाबा समीरानंद, बाबा ताउआनंद के बाद .......बाबा झाउआनंद बनने की फ़ुल तैयारी हो ली थी ......। रही सही कसर वहां पड रही ठंड ने पूरी कर दी ...मरी ने ऐसा जकडा कि हम ....भीष्म शैय्या पर लंबलेट हो लिए .....। मौन मोड और कमोड ( बुखार के बीच में जिसे लूज मोशन कहते हैं न वो भी हमसे लिपट बैठा था ) के बीच हमें बहुत से दिव्य ज्ञान प्राप्त हुए ..जिनका खुलासा हम तुम्हें धीरे धीरे बताएंगे वत्स ।
मित्र बडे धैर्यपूर्वक सुन रहे थे .......कहने लगे कैसे मानें ...आपने कोई बोध कथा तो सुनाई नहीं .....
लो तो ये कौन बडी बात है सुनो ,
"एक बाग में एक गुलाब का पौधा था । उसके रूप को देख , उसके फ़ूलों के सुंगध , आदि से सारा बाग महका और चहका रहता था । गुलाब का पौधा भी अपने फ़ूल के सुर्ख चटख रंग से सबको मोहित करने पर मन ही मन बडा खुश रहता था ..एक दम मौन मौज में सबकी खुशी में ही अपनी खुशी ढूंढता और बांटता था ॥ पूरी बगिया भी अपने पौधे को बहुत स्नेह और मान देती थी ॥ एक दिन अचानक पौधे के मन में जाने क्या आया कि उसने सोचा कि अब तक तो मैंने फ़ूलों से ही काम लिया है मगर मेरे पास तो कांटे भी हैं उनका तो अभी तक मैंने कोई उपयोग ही नहीं किया ।अगले दिन से उसने अपने फ़ूलों के साथ साथ कभी कभी कांटों का प्रयोग करना भी शुरू किया । बगिया के अन्य पौधे जानते थे कि पौधा मनमौजी है मगर दिल का साफ़ है शायद जानबूझ कर ऐसा नहीं किया होगा ..सो थोडी बहुत चुभन को वे झेल जाते । मगर पौधे को फ़ूल और कांटे को मिला कर पैदा की गई मौज में अब मजा आने लगा था । उसने धीरे धीरे फ़ूलों की खुशबू कम की और कांटो और धारदार बना के नुकीला करना शुरू किया । सबसे पहले उस पौधे के अन्य गुलाबों को भी छिलन सी महसूस हुई , उन्होंने उसे समझाया कि कांटों का उपयोग शत्रुओं के लिए किया जाना चाहिए मित्रों के लिए नहीं । मगर अब वो भला कहां मानने वाला था ।......................
फ़िर आगे क्या हुआ मित्र ने पूछा ...........
चुप बे ......अभी आगे क्या हुआ से क्या मतलब ..ये बोध कथा है ....जैसे जैसे बोध होता जाएगा कथा आगे बढती जाएगी समझा ...अभी तो इतना ही बोध हुआ है ..............
तो बाबा अभी अंडर ट्रेनिंग हैं ....वहां तो कोर्स कंप्लीट हुआ नहीं ..वैसे भी सारी थ्योरी की क्लासें तो यहां लगनी थीं ...सो हम अपना कमंडल उठा के चले आए हैं ......आगे की पढाई पूरी करने के लिए ॥
आगे का हम पूरा कर देते है;
जवाब देंहटाएंकाँटों संग जीने की आदत पड़ गई ............ !!
संग पले काँटे सुमन लेकिन अलग स्वभाव।
जवाब देंहटाएंट्रेनिंग पूरा जल्द हो तब तो और प्रभाव।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
हबीबों से रक़ीब अच्छे जो जल कर नाम लेते हैं
जवाब देंहटाएंगुलों से ख़ार अच्छे जो दामन थाम लेते हैं
बाबा बनकर कहीं जाने की आवश्यकता नहीं .. ब्लॉग जगत में प्रतिदिन बाबाओं का अवतरण हो रहा है !!
जवाब देंहटाएंजय बाबा झाऊआनंद की!
जवाब देंहटाएंबा बा blogging :)
जवाब देंहटाएंआगे की पढ़ाई के लिए शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंBlogjagat me babaoooo ki list din-ba-din badti jaa rahi hai.............
जवाब देंहटाएंहमारी भी शुभकामनायें आगे की पढ़ाई के लिये ।
जवाब देंहटाएंसंन्यास मोड .... "बाडिक्ट " .... बाबा ट्रेनिंग .... मौन मोड और कमोड .... बाबा अंडर ट्रेनिंग इन नए शब्दों के दिव्य ज्ञान प्राप्त हुए और रचना अच्छी लगी ।
जवाब देंहटाएंbaba ji ki jai ho
जवाब देंहटाएंaap sab ko babajio banaa kar hi
chhodoge....ha ha ha
आप जल्द ही ट्रेंनिंग पूरी कर लें हमारी शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंचलिए जैसे जैसे बोध होता जाए बाकी की कथा भी सुनाते रहिएगा :)
जवाब देंहटाएंसे जैसे बोध होता जाएगा कथा आगे बढती जाएगी समझा ...
जवाब देंहटाएं-बाबा समीरानन्द के यहाँ टूसन क्लास में चले आओ!! :)
आप आये पतझड़ गयी !
जवाब देंहटाएंजय हो बाबा की.
जवाब देंहटाएंरामराम.
यानी लौट के बुद्धू घर को आए।
जवाब देंहटाएंबढिया है, अपने घर जैसा सुख और कहां?
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छोटी सी गल्ती, जो बड़े-बड़े ब्लॉगर करते हैं।
धरती का हर बाशिंदा महफ़ूज़ रहे, खुशहाल रहे।
आप न काहु काम के डार पात फ़ल फ़ूल, औरन को रोकत फ़िरे रहिमन पेड़ बबूल ई संसार है कभी-कभी क्षणिक श्मशान बैराग भी हो जाता है। ई कांटा फ़ूल का दोस्ती ही अईसा है भैया। आभार
जवाब देंहटाएं"मौन मोड और कमोड ( बुखार के बीच में जिसे लूज मोशन कहते हैं न वो भी हमसे लिपट बैठा था ) के बीच हमें बहुत से दिव्य ज्ञान प्राप्त हुए ."
जवाब देंहटाएंयही वो जगह है जहां ज्ञान चक्षु पूरी तरह खुल जात हैं :)