गुरुवार, 2 अप्रैल 2009

उफ़ , प्रकृति तुम कभी कुछ कहती भी तो नहीं



तुम्हारा साथ

तुम्हारा नाम,

तुम्हारी सोच,

तुम्हारे सपने,

तुम्हारी कल्पना,

तुम्हारा यथार्थ,

तुम्हारी छवि,

तुम्हारा एहसास,

मन को हमेशा सुकून पहुंचाते हैं,

मगर जाने क्यूँ हम किस जूनून में पड़ कर,

तुम्हारा वजूद,

तुम्हारी कोमलता,

तुम्हारी मौलिकता,

तुम्हारी नश्वरता,

तुम्हारी निश्छलता,

तुम्हारा स्वरुप।

तुम्हारा सब कुछ,

मिटाने पर तुले हैं, उफ़ प्रकृति तुम कभी कुछ कहती भी तो नहीं.

11 टिप्‍पणियां:

  1. कहने की जरूरत नही है उसे ..वह करेगी जब करेगी तब कोई कुछ न कह सकेगा

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  2. उसके संकेतो को हम समझ नहीं पा रहे ... बडे दुष्‍परिणाम की प्रतीक्षा कर रहे हैं ... वही होगा।

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  3. कहेगी नहीं..एक दिन बता देगी...वो दिन दूर नहीं..तब पछतावा बस रह जायेगा हमारे पास-अभी तो हम उसकी सहनशक्ति का माखौल उड़ाने में लगे हैं..कल जबाब न होगा!!

    -सुन्दर भाव!!

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  4. बहुत सुन्दर अजय जी.इस खिलवाड का नतीजा हमें नज़र भी तो आने लगा है.उसके मौन संकेत ही बडे खतरनाक हैं.बधाई.

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  5. अदभूत है आपका प्रकृति चित्रण

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  6. bahut sundar.
    filhal aapki 5-6 post hi padh saka hoon, par sab nayaab. badhai aur shubhkamnayen ki aapki kalam ki nok aur zyada nukeeli ho.
    nacheez ko saraahne ka shukriya.

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  7. अजय जी,आप किस्सा-कहानी पर आये, कहानी पढी और हौसला भी बढाया कितना धन्यवाद दूं??

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  8. अजय जी
    प्रकृति बोलती है, बताती है, पर हमने अपनी आँखें और कान बंद कर रखे हैं, समझ भी बेच खाई है.

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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला

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