क्या होली अब भी मनाते हो ?
या की वो अब सिर्फ़,
बन गया है छुट्टी का एक दिन॥
संदोक से पुराने कपड़े,
निकाल कर उन्हें गंदा,
करने को , और फटने को भी,
तैयार करते हो क्या,
या की अब सिर्फ़ देखते हो टी वे पर,
चाँद पिक्चरें और,
सुनते हो होली के कुछ गीत॥
रंगों की बाल्टी , पिचकारी की धार,
भांग की ठंडाई से सराबोर,
होता है क्या अब भी आँगन,
या की चाँद दोस्तों के साथ,
बैठ कर खुलती हैं बोतलें,
जिनमें डूब जाते हैं ,
होली के सारे रंग॥
बुरा न मानो होली है, कह कर,
किसी राह चलते को रंग से पोत देते हो,
या की जान पहचान वालों को भी,
गुलाल न लगाने का मलाल रहता है ,
क्योंकि वे भी तो होली नहीं खेलते ?
खैर फ़िर भी आपको और सबको होली की बहुत बहुत शुभकामनायें.
बुरा न मानो होली है....
जवाब देंहटाएंकुश मुझे आप पर प्यार आता है
बहुत-बहुत सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंहम तो मनाते हैं भाई पूरे जलसे के साथ::
जवाब देंहटाएंहोली की बहुत बधाई एवं शुभकामनाऐं.
होली तो तब मनाएँ जब पानी हो । रायचंद कहते हैं कि सूखी होली खेलो , तिलक होली खेलो । भई ये भी कोई होली हुई ? आखिर सूखॆ रंग छुड़ाने के लिए भी तो पानी ही चाहिए । इस लिए अब कोई नया त्योहार ढूँढना पड़ेगा ,जैसे टमाटरों की विदेशी होली ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कहा... होली की ढेरो शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंaap sabkaa bahut bahut dhanyavaad. aur samast blogger banddhuon ko holee kee haardik shubhkaamnayein.
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