सोमवार, 29 दिसंबर 2008

विकास बनाम विध्वंस - तय ख़ुद हमें करना है

आज विश्व समाज जिस दो raahe पर खड़ा है उसमें दो ही खेमे स्पष्ट दिख रहे हैं। पहला वो जो किसी भी कारण से किसी ना किसी विध्वंसकारी घटना, प्रतिचातना, संघर्ष, आदि में लिप्त है । दूसरा वो जो विश्व के सभी अच्छे बुरे घटनाक्रमों , उतार चढाव , राजनितिक, सामाजिक और आर्थिक परिवर्तनों के साथ अपने विकास के रास्ते पर अपनी गति से बढ़ रहा है। आप ख़ुद ही देख सकते हैं कि , एक तरफ़, अमेरिका, इंग्लैंड, जापान। यूरोप, चीन, भारत, फ्रांस और कई छोटे बड़े देश अपनी अपनी शक्ति और संसाधनों तथा एक दूसरे के सहयोग से ख़ुद का और पूरे विश्व का भला और विकास करने में लगे हुए हैं। वहीँ एक दूसरा संसार जिसमें पाकिस्तान, इरान, अफगानिस्तान, कई अरब और अफ्रीकी देश, आदि जैसे देश हैं जो किसी न किसी रूप में अपने पड़ोसियों और एक हद तक पूरे विश्व के लिए अनेक तरह की परेशानियाओं का सबब बने हुए हैं। या कहें तो उनका मुख्या उद्देश्य ही अब ये बन गया है कि अपने नकारात्मक दृष्टिकोण और क्रियाकलापों से पूरे विश्व का ध्यान अपनी उर लगाये रखें ।

ये जरूर है कि जो देश बिना किसी अदावत के अपने विकास और निर्माण में लगे हैं , वे ही आज दूसरे विश्व जो कि विध्वंसकारी रुख अपनाए हुए हैं, उनके निशाने पर हैं, कभी आतंकवादी हमलों, तो कभी अंदरूनी कलह के कारण से उनके पड़ोसी यही चाहते हैं कि किसी न किसी रूप में वे भी भटकाव का रास्ता पकड़ लें। लेकिन ये तो अब ख़ुद उस समाज को ही तय करना होगा कि उसे किस रास्ते पर चलना है, वर्तमान में जबकि भारत और पकिस्तान के बीच बेहद ख़राब रिश्तों की, या कहें कि युद्ध की स्थिति की बातें चल रही हैं तो ऐसे में तो ये प्रश् और भी महत्वपूर्ण हो जाता है । क्योंकि इतना तो तय है कि आप एक साथ चाँद पर कदम रखने और दुश्मनों के साथ युद्ध में उलझने का काम नहीं कर सकते, खासकर तब तो जरूर ही, जब आपके सामने अमेरिका का उदाहरण हो। जिस अमेरिका ने ११ सितम्बर के हमले की प्रतिक्रयास्वरूप पहले इराक़ और फ़िर अफगानिस्तान का बेडा गर्क किया उसे देर से ही सही, आज भारी आर्थिक मंदी का सामना करना पर रहा है।

आज विश्व सभ्यता जिस जगह पर पहुँच चुकी है उसमें तो अब निर्णय का वक्त ही चुका है कि आप निर्माण चाहते हैं या विनाश, और ये भी तय है कि जिसका पलडा भारी होगा, आगे वही शक्ति विश्व संचालक शक्ति होगी इन सारे घटनाक्रमों में एक बात तो बहुत ही अच्छी और सकारात्मक है कि आतंक और विध्वंस के पक्षधर चाहे कितनी ही कोशिशें कर लें मगर एक आम आदमी को अपने पक्ष में अपनी सोच के साथ वे निश्चित ही नहीं मिला पायेंगे। और यही इंसानियत की जीत होगी। अगले युग के लिए शुभकामनायें......

4 टिप्‍पणियां:

  1. इधर परिवारिक कारणों से व्यस्त रहा, अतः ब्लॉगजगत से दूरी रही..क्षमाप्रार्थी हूँ.

    अब धीरे धीरे पुनः वापसी का प्रयास है.

    नियमित लिखें. आपको शुभकामनाऐं.

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  2. ये दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। विकसित देश इन आतंकवादी देशों को अस्त्र देते हैं, वित्तिय सहायता देते है कि लडो, मरो पर हमें सम्पन्न भि करो। अब जब ये आतंकवादी देश उन्हीं आकाओं पर हमला करते हैं तो हडबडा गये हैं। दोष किसका है, कौन मासूम जानों का हत्यारा है, इसके लिए तो गहनता से विचार करना पडेगा। पिछडा देश पाकिस्तान किस प्रकार ऐसे हथियार जमा कर सका, वह जगज़ाहिर है ही।

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  3. aap teeno kaa bahut bahut dhanyavaad, padhne aur usse adhik vichaaron se sahmati ke liye bhee.

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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला

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