पप्पू कांट फाइट साला :-
जी अब तो चारों तरफ़ यही चर्चा जोरों से चल रही है , देश विदेश , स्वदेश , परदेश, दिल्ली लन्दन तक में हमारे पप्पुपने की और पप्पू के फाइट नहीं कर पाने की ही बातें चल रही हैं। सुना तो ये भी है की इस साल के अंत में जो , लोगों ने पार्टी वैगेढ़ के लिए प्लानिंग कर राखी है तो वे सोच रहे हैं की सरकार से कहें की थोड़ी देर के लिए अपने बोफोर्स तोप और सुखोई जहाज भाड़े पर ही दे दें ताकि कम से कम उससे कुछ काम तो लिया जा सके।
अजी दूसरों की क्या कहें, ख़ुद अपने लोग ही कई तरह के जुमले , फिकरे कसने लगे हैं। कल ही कुछ ब्लू लाइन बसों ( यहाँ दिल्ली से बाहर के पाठकों को बता दूँ की दिल्ली परिवहन व्यवस्था में ब्लू लाइन बसें बिल्कुल लाईफ लाइन, अरे नहीं डेड लाइन की तरह हैं ) के चालाक आपस में बातें कर रहे थे, बताओ यार पता नहीं लदी से क्यों डर रहे हैं, जबकि आधे पाकिस्तान को तो हम ही कुचल कर मार सकते हैं, हमने अब तक अपने लोगों का शिकार किया है तो क्या दुश्मनों का नहीं कर सकते ? सुना है की कुछ किन्नरों को भी इस बात का गुस्सा है की जब पूरे देश का चरित्र किन्नर जैसा ही है तो फ़िर आज tअक उनकी उपेक्षा क्यों की गयी, वैसे उन्होंने भी कहा है की हमें ही बॉर्डर पर भेज दो ताली मार मार कर सबको भगा देंगे। और तो और सब कह रहे हैं की हाल फिलहाल में प्रर्दशित हुई पिक्चर गजनी में अपने परफेक्ट खान की बोदी देख कर दो बातें बिल्कुल स्पष्ट हैं पहली ये की कम से कम एक आध पाकिस्तानी पलटन को तो वे १५ मिनट वाली याददाश्त में निपटा ही देंगे, और दूसरी ये की जिस तरह से हमारे लोग कुछ ही दिनों में चार, छ, और आठ पैक वाली बोडी तैयार कर रहे हैं उसे देख कर पाकिस्तान को अक्ल आ ही जानी चाहिए।
इस मुद्दे से ही सम्बंधित एक और बात सुनने में आ रही है एक मशहूर सेना के सेनापति ने राज खोलते हुए बताया की , जी हमें तो इस लड़ाई वैगेरेह के पचडे में नहीं पढ़ना, हमारी सेना तो सिर्फ़ देश वासियों को उनकी भाषा और जगह के हिसाब से ठिकाने लगाती है, महाराष्ट्र की नाम से तो हम मार काट कर सकते हैं मगर राष्ट्र के नाम से नहीं।
खैर फिलहाल तो स्थिति यही है की हम पप्पू बने हुए हैं, वैसे जहाँ तक मेरा अपना विचार है की वर्तमान में जो भी परिस्थियां हैं उसमें भारत जैसे देश को जो निरंतर विकास की राह पर बढ़ रहा है उसे युद्ध से यथासंभव बचना ही चाहिए, मगर सर बचना, डरना नहीं। आज दोनों देश परमाणु संपन्न हैं, और फ़िर जो लोग भारत को अमरीका बनने की सलाह दे रहे हैं, वो शायद भूल रहे हैं की अफगानिस्तान और इराक़ का मामला अमरीका को कहाँ और कितना भारी पड़ रहा है, राजनितिक, सामजिक और आर्थिक रूप से भी। मुझे तो लगता है की पाकिस्तान जैसा देश कभी नहीं चाहेगा की भारत जैसा उसका पड़ोसी धीरे धीरे विकसित होकर विश्व शक्ति बन जाए। मगर इस सारे घटनाक्रम में जो बात मुझे कतई पसंद नहीं आ रही है वो है चीन , अमेरिका और लन्दन आदि के सामने अपने दुखडा रोने वाली बात। एक अन्तिम सच ये की युद्ध से कोई मसला हल नहीं होता, मगर उससे बड़ा सच ये की यदि कायरता और लड़ाई में से किसी एक चुनना है तो फ़िर बन्दूक जिंदाबाद.
जब कोई देश अपने लिए लडता है तो वह अपनी अस्मिता के लिए पूरा ज़ोर लगाता है पर जब वह किसी और की लडाई लड रहा है तो वह अपनी जान की अमान चाहता है। यही अंतर दिखाई देता है जब अमरीका अपनी धरती की लडाई लडा और दूसरे के देश की लडाई। यही असर भारत की सेना में दिखाई दिया जब वह भारत माता की लडाई के लिए खडा हुआ और जब वह श्रीलंका की लडाई के लिए गयआ था।
जवाब देंहटाएंumda vicharaniy post. dhanyawad.
जवाब देंहटाएंaap dono kaa bahut bahut dhanyvaad, padhne aur saraahne ke liye.
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