आज लगभग डेढ़ महीने बाद ब्लॉग पर लौटा हूँ, पिछले दिनों के लिए सिर्फ़ इतना की वे मेरी जिंदगी के कुछ बेहद कठिन दिनों में से कुछ दिन रहे, मन में कुछ भी नहीं हैं न ही मस्तिष्क में इसलिए कुछ हलकी फुलकी पंक्तियाँ आपको पढ़वाता हूँ जो मैंने कहीं बहुत पहले पढी थी, यदि मेरी याददाश्त ठीक है तो लेखिका का नाम था , सुश्री रीता यादव।:-
बदले हैं अब दस्तूर ज़माने के इस कदर,
अपना कोई बनना ही गंवारा नहीं करता॥
पागल भी नहीं लोग की न माने नसीहत,
जो मान ले गलती वो दोबारा नहीं करता॥
अपने लिए तो जीते हैं , मरते हैं सभी लोग,
औरों के जख्म कोई दुलारा नहीं करता॥
जाते हैं बिखर आज, गुलिश्ते बहार के,
जिनको कोई माली भी संवारा नहीं करता॥
ऐसे तो मुकद्दर को कोई न बदल सका,
फ़िर भी सिकंदर है , जो हारा नहीं करता॥
तूफानों से लड़ के जिन्हें मिल जाए किनारा,
वो ही कभी औरों को पुकारा नहीं करता॥
तारे भी तोड़ लाने का जो रखता है जिगर,
वो शख्स फटेहाल, गुजारा नहीं करता॥
rita ji ke sath sath aapko bhi dhero badhai sundar gazal padhane ke liye
जवाब देंहटाएंarsh
आप के जीवन का कठिन दौर खत्म हो यही कामना है और आप लगातार ब्लाग जगत पर योगदान देते रहें यही शुभेच्छा है ।
जवाब देंहटाएंaap dono ka blog par aane, padhne aur saraahne ke liye dhanyavaad.
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