शनिवार, 29 दिसंबर 2007

टैलेंट शोव्स : प्रतिभाओं को निखार रहे हैं या कुंठित कर रहे हैं?

पिछले कुछ सालों से टेलीवीजन पर बहुत सारे टैलेंट शोव्स कि मनो एक बाढ़ सी आ गयी है। कभी इंडियन आइडल से शुरू हुआ ये सिलसिला ऐसा चल निकला है कि ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है। इन टैलेंट शोव्स ने जहाँ एक तरफ मनोरंजन के क्षेत्र में एक विविधता सी भर दी है वहीं दुसरी तरफ गीत संगीत अभिनय के क्षेत्र में युवाओं का झुकाव और जबरदस्त संभावनाओं को पैदा कर दिया है । इससे अलग एक और बात जो अब पुरी तरह साबित हो गयी है वो ये कि इस देश में प्रतिभाओं की भरमार है बस यदि कमी है तो उन्हें तलाशने और तराशने की।





इन टैलेंट शोव्स की सफलता और बढ़ती लोकप्रियता तथा सार्थकता के साथ ही एक और सवाल जो इन दिनों चर्चा में है वो है इनके चुनाव कि प्रक्रिया और उनका परिणाम। अब तो जैसे ये भी एक प्रथा से बन गयी है कि कोई भी प्रतियोगिता बिना विवाद , बिना आलोंचना के पूरा ही नहीं होता। हालांकि इसके पीछे दो मुख्य कारण तो हैं ही एक तो जान बूझ कर किसी भी विवाद को पैदा करना ताकि उसको लोकप्रिया और चर्चित बनाया जा सके दूसरा है व्यापारिक दबाव में मोबाईल द्वारा वोटों से किसी का चुनाव। इस वोटिंग प्रणाली की हकीकत क्या है ये तो इश्वर ही जाने मगर इतना सच है की इससे कभी भी किसी प्रतियोगिता का भला होते हुए मैंने नहीं देखा। उलटा जो प्रबल प्रतिद्वंदी होता है जो वाकई जी का हक़दार लगता है वो बेचारा जरूर बाहर हो जाता है । दुःख और चिंता कि बात ये है कि अब ये टैलेंट शोव्स बच्चों के लिए भी आयोजित किये जाने लगे हैं और अपनी आदत के अनुरूप वहाँ भी यही सब कुछ चल रहा है ।



इसलिए अब तो ये सोचना पडेगा कि ये टैलेंट शोव्स वाके बच्चों का भला कर रहे हैं उन्हें प्रोत्साहित करने में मददगार साबित होंगे या फिर ये उनमें असफलता कि एक ऐसी कुंठा को जन्म दे देंगे जो ता उम्र उन्हें बेहद दुःख देती रहेगी।

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