शनिवार, 15 दिसंबर 2007

में aur meri ईमानदारी

में ऊस जगह पर काम करता हूँ जहाँ के लिए कहा जाता है कि वहाँ की तो दीवारें भी पैसे मांगती हैं, जी हाँ सही समझे आप -अदालत। आसपास पाटा हूँ देखता हूँ जिससे भी पूछता हूँ तो वही कहता है सच तो है अदालत में कोई काम बिना पैसे के होता है। में पिछले दस वर्षों से वहीं तो काम कर रहा हूँ। और यकीन मानिए मेरा अनुभव तो कुछ और ही कहता है ।

मेरी ईमानदारी पैसे ना लेने की तो सभी को पसंद है ,उससे किसी को कोई दिक्कत भी नहीं है ,हाँ जहाँ ये ईमानदारी किसी के लिए गलत काम करने से मना करती है वहीं से लोगों को परेशानी शुरू हो जाती है। लोग गुस्स्से में कभी मुझे nakchada ,जिद्दी ,अखाद्द, तो कोई दूसरा गाँधी कहता है। लोगों की खीज सिर्फ इस बात को लेकर रहती है कि में उनके गलत काम को करने से मना क्यों कर देता हूँ विशेषकर तब जब सभी ये मज़े से कर रहे हैं।

लेकिन सबसे जरूरी बात तो ये है कि ईमानदारी के जज्बे से दिल के अन्दर जो उर्जा होती है, आत्मा के भीतर जो प्रकाश होता haiहै, वो आपको खुद पर फक्र करने का एहसास दिलाता है। यदि आप सब जैसे हैं तो सभी में शामिल हैं यानी सब में से एक हैं किन्तु यदि आप सिर्फ खुद जैसे हैं और खुद्दार भी तो यकीन जानिए सबको लगता है कि आप कुछ खास हैं। मेरे दोस्तों,साथ काम करने वालों, मेरे अधिकारियों और मेरे मातहतों को भी पता है मेरे प्रकृति। तिस पर यदि कोई अपना काम भी विशेषज्ञता से पूर्ण करे तो सोने पे सुहागा है। में तो अपनी ईमानदारी से खुश हूँ।

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