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मंगलवार, 20 अप्रैल 2021

खुद को प्रकृति के करीब रखने की कोशिश होती है -बागवानी

 

पिछले दो वर्षों ने इंसान को मिले सबक में से एक सबसे बड़ा सबक ये भी रहा कि इस दुनिया में जो कुछ भी जैसा भी है वो असल में , वास्तव में बेहद खूबसूरत और पवित्र है।  कहीं कोई दोष या खोट नहीं।  और जिस जिस में ज़रा सी भी जो भी परेशानी , कठनाई , अच्छे बुरे बदलाव आए हैं उसका एक बड़ा कारण खुद इंसान ही रहा है।  

ग्राम से शहरों की और पलायनकारी नीति ने जहाँ गाँवों को अकाल मरने के लिए छोड़ा तो वहीँ पूरी आबादी शहरों में चीटीयों की बिल की तरह शहर और नगर बना कर रहने लगे।  प्रवृत्ति , लालच , उपभोग , सुविधा ने धीरे धीरे शहरों को इंसानों के रहने लायक जगह बना और बता दी।  मगर जब नींव की कृत्रिम हो तो आगे का कहना ही क्या ??

आज शहर  , गाँव से ही नहीं , मिट्टी , पौधे , पानी , हवा , वनस्पति , नदियाँ , पोखर , जंगल सबसे निरंतर दूर होते चले गए , लेकिन हाय रे इंसान।  पैसे दिल्ली और मुंबई में कमाता है करोड़ों मगर उसे खर्च करने के लिए बार बार भागता है पहाड़ों , नदियों , जंगलों के बीच और यही सबसे बड़ा सत्य है।  






शहरों में अब धीरे धीरे इन पेड़ पत्तों के प्रति लोगों का बढ़ता मोह अच्छा लगता है।  असल में जिस तरह से आज शहरों की दिनचर्या में बड़े से लेकर छोटे बच्चे तक पर मानसिक दबाव की काली छाया पड़ी हुई है उसे दूर करने में बागवानी जैसी आदत एक करिश्मा साबित होती है।  पौधे फूल फल सब दोस्त की तरह हो जाते हैं जिनके पास जाते है उनके एहसास मात्र से सुकून और सुख सा एहसास होता है।  कहते हैं पौधों की सेवा यानि बागवानी इंसान के तनाव को दूर करने का सबसे बेहतर ज़रिया होता है।  









एक बात और , सेना के जवानों में मृदुलता और संवेदनाओं को संजोए रखने के लिए और खूंखार अपराधियों तक का हृदयपरिवर्तन के लिए -बागवानी  को ही सर्वोत्तम कार्य के रूप में विश्व भर में मान्यता मिली हुई है।  सच ही है कि फूल पत्तों के रंग और खुशबू किसका मन नहीं बदल सकते।  


आप भी बागवानी शुरू करें और देखें की कितने खूबसूरत बदलाव आप अपने अंदर ही महसूर कर सकेंगे ?? तब तक मेरी छत पर बनी छोटी सी बगिया में खिलते मिलते नन्हें मेहमानों से मिलिए 








शुक्रवार, 10 सितंबर 2010

ब्लॉग्गिंग से कुछ दिनों की चाही अनचाही दूरी ......नया कम्प्यूटर ......नेट की बेवफाई ...पंजाब का भ्रमण ......और चंद बातें |

ट्रेन में बैठे गोलू और बुलबुल



पिछले दिनों की लिखी हुई पोस्टों में ये जिक्र किया था कि ...जाने अनजाने लेखन और पठन से कुछ दूरियां सी बन गयी थी , इसका कारण तो ठीक ठीक मैं भी नहीं जानता , मगर शायद कुछ तो बात थी ही रही सही कसर, लैपटौप के बीमार होने ने पूरी कर दी .....काफी तीमारदारी के बाद भी ..जब कंप्यूटर के डॉक्टर भी उसे ठीक नहीं कर सके तो फिर नए बक्से के आने की योजना बनने लगी और इस बीच जो कुछ हुआ या पिछले दिनों तक होता रहा ..........उसने कुल मिला कर कुछ इस तरह की स्थिथि पैदा कर दी कि , बस ये दूरी निरंतर बढ़ती ही चली गयी यहाँ बताते चलूँ कि , इन पिछले पंद्रह दिनों में , कमोबेश , कुल पांच बार पंजाब का दौरा करना पड़ा कार से , रेल से , और बस से भी दास्ताँ लम्बी है , और फिर पिछले दिनों की कसर भी तो पूरी करनी है इसलिए , फ़िलहाल तो आप आने वाली पोस्टों का ये फोटो शूट ही देखिये , विस्तार से बहुत ही जल्दी .........किस्तों में हम आप तक पूरी दास्ताँ पंहुचाते हैं ....


जालंधर के अड्डा होशियारपुर चौक की रसमलाई


जालंधर का माता अन्नपूर्ण मंदिर



ट्रेन में मिले , करतब दिखाते चिंटू जी



ट्रेन से लिए गए पंजाब के कुछ चित्र


मन को मोहते हरे भरे खेत

तो आपने , चित्रों को देख कर अपनी तबियत हरी तो कर ही ली होगी , बस अब कल से हम दोबारा अपनी ड्यूटी पर लग जाते हैं ..........आखिर एक ब्लॉगर को इससे ज्यादा छुट्टी नहीं लेनी चाहिए .......क्यों है न ????





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