मंगलवार, 3 जनवरी 2023

उठ मुसाफिर , देख जग सारा

 उठ मुसाफिर , देख जग सारा 



इन दिनों जब देख रहा हूँ कि दुनिया घूमने और घुमाने की एक गजब की जिजीविषा , एक उत्कट इच्छा , पग पग दुनिया नापने की , देखने की , जंगलों , नदियों पेड़ों को छूने महसूसने की ललक सी उठी हुई है अपने चारों तरफ , हर उम्र , हर क्षेत्र से और पारिवारिक व्यक्ति भी जीवन के सबसे असल यथार्थ को पाने का प्रयास कर रहा है तो लगता है कि चलो देर से ही सही लोग बाग़ इंसान का इस दुनिया में आने का या उसे लाए जाने का उद्देश्य समझ पा रहे हैं।  



असल में ईश्वर ने जब अपनी सारी कारीगरी और उसमें भी मास्टरी करते हुए ये धरती रच दी , और इसमें जाने कैसे कैसे करिश्मे भर दिए , ऊँचे पहाड़ , लम्बे रेगिस्तान , गहरे समुन्दर और खूबसूरत नदियाँ जंगल फिर आखिर में इंसान बनाया और कहा जा प्यारे देख जब  भगवान् गढ़ते हैं तो कैसे गढ़ते हैं।  


घूमना तो यूं भी इंसान की नियति है और इंसान ही क्यों हर चेतन , और जल पवन तक के जीवन में घूमना ही लिखा होता है।  इंसान बेचारा मजबूर , रहने को , छिपने को छिपाने , कमाने धमाने , और फिर इसके बाद कुछ समय बचे तो किसी न किसी बहाने से किसी अवसर से घूमने को भी।  घूमने के साथ एक और बात जो बहुत जरूरी है वो है इन यादों को संजोते जाना , हमारे बाप दादा इन यात्राओं को रोचक किस्से कहानियों में ज़िंदा रखते थे , हमारा समय याशिका कैमरा और एल्बम बीतते हुए अब तो मोबाइल और वैबकैम के बाद ड्रोन और जाने कैसे कैसे कहर बरपाने वाले हसीन इंतज़ाम किए जा रहे हैं।  

पचास साल की उम्र तक पहुंच चुका हूँ , पिताजी फौजी थे उससे पहले किसान सो ये दोनों पैदाइशी गुणों के अलावा रही सही कसर खेलों के प्रति मेरे झुकाव ने पूरी कर दी , ग्राम्य जीवन भरपूर जीये होने के कारण पेड़ पर चढ़ कर नदी में कूद मार तैरते हुए पार करने से लेकर , सायकल से रोज़ तीस किलोमीटर आते जाते हंसी खेल में कालेज की पढ़ाई , के अलावा कुश्ती कबड्डी से लेकर वॉलीबॉल बैडमिंटन और क्रिकेट तक में जबर खिलाड़ी रहे , जबर बोले तो जबर ,पसीना छुड़वाने वाले।  कुल मिला कर लब्बो लुआब ये कि , धरती से लेकर पानी तक पर खूब चलाई , दौड़ाई और तैराई के कारण अब बुढ़ैती में भी मन और हाड मांस कतई मानने को तैयार नहीं होते कि हाफ सेंचुरी हो ली , ऊपर से आठ घंटे की दफ्तरी वाली नौकरी।  




अब कार्यक्रम कुछ ऐसा बन रहा है कि पुत्तर लाल को घुमक्क्ड़ी की आदत लगाते लगाते ऎसी लगाई है कि अब छोटे झाजी ताबतोड़ नित नए सफर पर चलने को तैयार है।  अभी अभी हमारे साथ कूदते फांदते हनुमान बने कटरा  से भवन और भैरव बाबा तक उतराई कुल ३२ किलोमीटर की चढ़ाई उतराई ( बिना रुके बैठे पहुँच गए और वापसी में भी चले तो नीचे आकर ही रुके ) 9 घंटे में पूरी करवा दी। जय माता दी।  अब इस खूबसूरत से शुरू हुए इस किस्से को जल्दी ही अगले अफ़सानो तक ले जाने के ख़्वाब भी बुने जाने लगे हैं।  

अगले कुछ दिनों में राजस्थान , पंजाब और बिहार में  मिलेंगे और मिलवाएंगे आपको आपके अपने ही शहरों , गलियों , बाज़ारों को एक  घुमक्कड़ की नज़र से।  ज़रिया सड़क रेल और हवाई मार्ग तीनों ही रहेगा।  फोटो शोटो का शौक है शऊर नहीं सो ऊट पटांग से लेकर बहुत खराब तक फोटो खींचने में पारंगत हैं  लेकिन अच्छी भी आ जाती है और इनमे से कुछ हमारी भी होती है।  




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