बुधवार, 30 सितंबर 2009

एक ऐसी चिट्ठी भी कभी लिखो न यार...



जब से इस नेट से नाता जुडा तब से तो जैसे लिखना बंद ही सा हो गया है...अजी मेरा मतलब हाथों से कागज़ों पर उकेरना सब कुछ...पहले कुछ शब्द से लिख कर थोडा खाका सा खींच देना...फ़िर उन्हें दोबारा सिलसिलेवार समेट कर सहेज़ कर अंतिम रूप देकर मसौदा तैयार करना...छोडिये जी सब पुरानी बातें हो गयी हैं.....अब तो दिमाग में कुछ आया नहीं कि उंगलियां भागने लगती हैं...खटाखट की आवाज के साथ सब कुछ आपके सामने होता है...मगर न जाने क्यूं और कैसे ...किन अनजानी भावनाओं के बीच मैं पिछले दिनों ...दोबारा से न जाने कितने समय बाद चिट्ठी लिखने बैठ गया...शायद इसलिये भी कि ..ये बहुत दिनों से टला आ रहा था ...तो देखिये आप खुद ही मैंने किसको क्या लिखा...................

सेवा में,

माननीय हेड मास्टर साहब,
प्राथमिक विद्यालय,
ग्राम......
पोस्ट.......
जिला..........


आदरणीय मा साहब...

सादर चरण स्पर्श ।अपने पिछले प्रवास में मैनें ग्राम विद्यालय की जो स्थिति देखी ,....मुझे खुशी है कि ...शायद अपने जीवन में ये पहली बार था कि.....मुझे सुखद अनुभव हुआ.....भवन का जीर्णोधार हो रहा था.....विद्यार्थियों की संख्या भी बढ रही थी.....और सबसे अच्छी बात जो लगी ....वो ये कि...अध्यापकों की जो कमी महसूस हो रही थी....उसे आपने अपने किसी निजि अनुदान से ...कुछ नवयुवकों को पढाने का जिम्मा देकर पूरा करने का जो प्रयास किया...वो तो अपने आप में अनुकरणीय है।

मैंने अपना पूरा बचपन और उससे आगे की शिक्षा ....अपने इस गांव से बाहर ही की....मगर जो समय मैंने गांव में बिताया.....और जो हालत इस विद्यालय और शिक्षा की देखी उसने मेरा मन दुखी कर दिया था....मगर ये सकारात्मक परिवर्तन तो दिल को छू गया। आपसे मैं पिछली बार मिल नहीं पाया था। माता जी के असमय देहावसान ने किसी अन्य बात की तरफ़ ध्यान ही नहीं जाने दिया ।अब कुछ समय बाद ही पुन: गांव आने का समय हो रहा है तो सोचा कि इस बार पहले ही मन की बात आपको बता कर रखूं। कि मैं नहीं जानता कि अब जबकि ये तय सा हो गया है कि ....अब शायद ही गांव में बसना रहना हो पाये.....तो मैं आपसे एक वादा करना चाहता हूं....कि इस वर्ष से ही ....अपने इस विद्यालय के दो बच्चों को ......एक बालक और् एक बालिका ...प्रति वर्ष एक एक हज़ार की नकद धनराशि...प्रोत्साहन स्वरूप दूंगा। आगे यदि इश्वर ने चाहा तो ...यथाशक्ति इस राशि को बढाता रहूंगा।

आपसे मेरा आग्रह ये है कि....मेरे आने तक इस योजना को मूर्त रूप देने के लिये सभी नियम-कायदे, समिति, और अन्य औपचारिकताओं पर विद्यालय समिति और आप अध्यापक गणों से सलाह मशविरा करके रखें । शेष मिलने पर।यदि तुरंत में कोई जिज्ञासा या शंका हो तो अवश्य संपर्क करें।
आपका अपना...

अजय कुमार झा...

पत्र को पोस्ट करने के बाद मन में एक सुकून सा है.....और खुशी भी......

21 टिप्‍पणियां:

  1. भाई, दिल बाग बाग हो गया। जान कर कि आप के मन में गांव के लिए जज्बा ही नहीं है उसे कारगर रूप भी दे देने जा रहे हैं। यह छोटा सा प्रोत्साहन कम से कम दो बच्चों को जीवन में आगे बढ़ने का उत्साह तो दे सकेगा।

    जवाब देंहटाएं
  2. मन गार्डन गार्डन कर दिया
    रोज वाला रोजाना वाला

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सराहनीय एवं अनुकरणीय कदम. नेट पर लिख लिख कर हर चार शब्द के बाद ......( आठ बिन्दी) लगाने की आदत कागज पर लिखने में उजागर हो रही है.

    बढ़िया कार्य है, शुभकामनाएँ.

    जवाब देंहटाएं
  4. अजय भाई , यह पत्र लिखने की परम्परा तो हमे जीवित रखनी ही होगी कागज़ पर स्याही से लिखे अक्षर हमे उस व्यक्ति से जितना जोड़ते है उतना कोई नही जोड़ता , मै तो अभी भी चिठ्ठियाँ लिख्ता हूँ । कई मित्र तो ऐसे है जो फोन करके पूछते हैं " चिठ्ठी मिली ? मै कहता हूँ " हाँ " तो वे कहते है : अच्छा जवाब देना " और फोन रख देते है । लेकिन यह पत्र तो अद्भुत है। इसके लिये मेरे पास शब्द नही है । हम मे से बहुत से लोग ऐसा सोचते है लेकिन कर नही पाते । आपने यह कर दिखाया है .. मेरा मन यह सोचकर ही भर आया है । शुभकामनायें ।

    जवाब देंहटाएं
  5. अजय भाई, अगर ऐसी ही चिट्ठी हर कोई लिखना शुरू कर दे तो देश की तस्वीर ही न बदल जाए...राशि कितनी भी छोटी क्यों न हो लेकिन भावना बहुत बड़ी है...कितने ही बच्चे इससे अच्छा करने के लिेए प्रेरित होंगे...

    झा जी की चिट्ठी का कमाल
    बन गई हम सबके लिए मिसाल

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुंदर,आप का पत्र बहुत सुंदर लगा, काश हम सब एक एक बच्चे का भार भी समभाल ले तो एक दिन भारत मै कोई अनपढ ना मिले.
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत ही सराहनीय काम किया आपने । अनुकरणीय है यह ।

    जवाब देंहटाएं
  8. आपने एक अच्छे काम की शुरुआत की है....आपको बधाई व शुभ कामनाएं!

    जवाब देंहटाएं
  9. आपने एक अच्छे काम की शुरुआत की है....आपको बधाई व शुभ कामनाएं!

    जवाब देंहटाएं
  10. आज गाँवों की चिन्ता किसे है?

    अत्यन्त सराहनीय!!!

    जवाब देंहटाएं
  11. वाह भाई झा जी मस्त लिखा है आपने

    जवाब देंहटाएं
  12. ab to ye haal hai ki khud apna likha bhi nahi padh paata hoon...


    ...lekin aadta aisi ki ab bhi jab badhiy 'font' dekhtaa hoon to muh se sehsa hi nikal padta hai 'badhiya lekhni bhai'

    haha

    जवाब देंहटाएं
  13. अब तो कागज़-कलम अऔर चिट्ठी-चपाती के दिन बीत गए। शहर आए तो गांब भूल गय....गांव के वो मास्टर, पीपल और इमली के बन भूल गए, कुआं -खेत भूल गए..........एक ही चिट्ठी में आपने सब याद दिला दिया:) आभार॥

    जवाब देंहटाएं
  14. ऐसी चिट्ठी तो जिस भी स्कूल में मिलेगी , वह अपने आप को धन्य समझेगा ....हम भी अपने बच्चों से यही कहते हैं , कभी कुछ बन जाओगे तो अपने स्कूल को मत भूलना ....

    जवाब देंहटाएं
  15. बहुत सराहनीय कार्य झा जी,
    जिस गाँव में पढ़े बड़े हुए उस गाँव की प्राथमिक शिक्षा को बढ़ावा देने का आपका यह योजना मुझे बहुत अच्छा लगा..
    हमें सब को इससे प्रेरणा मिलती है. ..धन्यवाद झा जी

    जवाब देंहटाएं
  16. एक अच्छे काम की शुरुआत की है....आपको बधाई !!!

    जवाब देंहटाएं

मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...