रविवार, 7 जून 2009

बढ़ते दायरे : सकुचाते सम्बन्ध

बहुत पहले से मन में एक बात आ रही थी की जब से यहाँ दिल्ली में नौकरी में आया दायरा कितना बढ़ गया...नौकरी के सहकर्मी...तकरीबन हर साल बदलते मोहल्लों में आसपास रहने वाले परिवार ...उसके बाद जबसे इस इन्टरनेट की दुनिया में आया तो लगा की दुनिया ही छोटी हो गयी है.....पहले ब्लॉग्गिंग में....फिर किसी ने ऑरकुट ..किसी ने फेसबुक...किसी ने और कोई रास्ता दिखया...इस नयी दुनिया में एक से एक रिश्ता कायम हो गया....लगा की कितना अपनापन मिल रहा है ....कुछ अनजान दोस्तों के बीच...जिन्हें मैं शायद मैं अच्छे तरह क्या बिलकुल भी नहीं जानता , और वे ही कौन सा मुझे जानते हैं.....मगर लगता कहाँ है ऐसा....रोज तो उन्हें पढने और उनके बारे में कुछ लिखने की आदत सी हो गयी है...और तब एहसास ..और भी बढ़ गया की हाँ जो भी दायरा तो बढ़ ही गया है.....और कहूँ की बढ़ता ही जा रहा है .

मगर इससे अलग मुझे कभी कभी ये भी लगता है की क्या ये दायरे उन संबंधों को पाट सकेंगे .....जिन्हें मैं समय के गर्त में छोड़ आया .......कुछ तो समय के साथ साथ अपने आप छोट्टे चले गए.....मसलन स्कूल और कॉलेज के साथी बंधू...दोस्त ...जो धीरे धीरे मेरी तरह ही अपने जिन्दगी का मकसद और मुकाम तलाशते हुए कहीं दूर निकल कर ...कुछ दिनों बाद खो गए......कुछ सम्बन्ध मैं शायद इस दर के कारण जान बूझ कर छोड़ आया.....अरे नौकरी लग गई है....क्या पता किस दिन कोई काम निकलवा लें.....हलाँकि काम तो उनसे मेरा भी पड़. सकता था ...............मगर छोडो तब की तब सोची जायेगी.....पिछले बार ही जब गाँव गया था तो कितने काका दादा लोगों ने घेर लिए था ...अपने पोतों ..अपने भतीजों के लिए कुछ जुगाड़ करने को......मगर मैं कहाँ कर पाया था अब तक किसी के लिए भी कुछ....फिर ये सब मुझ जैसे लोगों से संभव भी तो नहीं था .......थोड़े ही दिनों में उन्हें समझ आ गया की मैं काम का आदमी नहीं हूँ ......सो वे भी किनारा कर गए.....मगर वे,hतो सम्बन्ध को हर हाल में निभाये रखना चाहते थे.....हुंह ...उनसे क्या सम्बन्ध रखता ...दकियानूसी कहीं के....हम अब कहाँ से कहाँ पहुँच चुके थे.....वे लगे थे अभी भी उन्ही देसी परम्पराओं को ढोने में .......

अब तो सब यही अपने हैं....देखा नहीं.....कितनी आत्मीयता से मिलते हैं....खुशी..गम...हसने..रोने ..सब में वैसे ही ...कोई बदलाव नहीं...ये भी डर नहीं की कुछ मांग लेंगे....ज्यादा से ज्यादा कभी आलोचना कर दी...मगर है तो सब के सब भले लोग......सोचता हूँ की दायरा बढ़ता ही जा रहा है ....मगर सम्बन्ध सारे सकुचा कर रह गए हैं...कुछ निचुड़ गए हैं....कुछ सूख कर टूट गए हैं.....

काश की इन बढ़ते दायरों के बीच संबंधों को सीचने के लिए भी थोड़ी सी जगह और जमीन बच्चा पाता.....चलो कोशिश करके देखता हूँ......

12 टिप्‍पणियां:

  1. दुनिया तो पहले से ही बहुत छोटी है। बस हमने ही दूरियां बढ़ा रखी हैं। संचार को भी दूरसंचार कहते हैं। दर्शन को भी दूरदर्शन। सब जगह दूर दूर लगा रखा है। मन में तो झांकते नहीं हैं। किसी को अपने से अधिक आंकते नहीं हैं।

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  2. bhai waah waah!
    anand aaya..................badhaiyan...............

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  3. हम सभी गलतफहमी में जी रहें हैं भाई ,मेरे ख्याल में वही सम्बन्ध टिकाऊ हैं जो की आस-पास हैं .दूर -संचार नें केवल गलतफहमी पैदा किया है और संबंधो को नयी परिभाषा दी है ,हकीकत ये है की यह संचार हमेशा दूर से ही अच्छा लगेगा .एक पुरानी कहावत है जो पास है-वही ख़ास है . ,अच्छी पोस्ट .

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  4. कभी कभी ये सम्बन्ध दूर के ढोल साबित होते है . बढ़िया अभिव्यक्ति उम्दा भावपूर्ण लेख एक गहरी सोच के साथ.

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  5. हां भाई संबंधो को सींचने के लिये अवश्य कुछ बचाकर रखना. असल मे ईंटरनेट के संबंध इसलिये भी सहज लगते हैं कि यहां कमिटमैंट नाम मात्र का ही है.:)

    रामराम.

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  6. सींचते रहो-बस बढ़िया फल आयेंगे तब मिल बांट कर खायेंगे. वैसे कह तो अक्षरशः सही रहे हो.

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  7. आगे बढ़ना ही जिन्दगी है ,सम्बन्ध वह नहीं होते जो सदा साथ रहे ,जो सम्बन्ध हमें प्रेरणा दे मार्गदर्शन करे तथा वक़्त पर काम आये वही प्रगाढ़ सम्बन्ध हैं ,संसार में एक दुसरे के काम आना ही जीवन जीना है ,अगर हम किसी की मदद कर सकें तो समझो की प्रभू ने हमसे सद्कार्य कराया और हमने जीवन जिया ,अपनी सोच संकुचित मत करिए ,जिस भावः से मिलेंगे वही भाव सामने आयेगें जैसे दुनिया छोटी है वैसे ही जीवन भी छोटा है इसको एसे जियो की यह दूसरों को आनंद दे और आपको सद्प्रेरणा
    सद्भावना सहित |

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  8. sahi keh rahe hai aap...kuchh rishte aaj ke lifestyle me peechhe chhootne lagte hai aur aksar hum inka mahatv samajhte nahi hai...par net par bante rishte bhi aksar bahut mazboot ho sakte hai..mera anubhav yehi kehta hai ki net par logo se dosti karne se parhez mat karo...har 2-3 koshish me ek insaan achha dost saabit ho jaata hai.. :)

    www.pyasasajal.blogspot.com

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  9. Dr.Manoj ji ki baat ka samarthan kartey hue meri bhi yahi raay hai- जो पास है-वही ख़ास है.

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  10. aapne boht sahi kaha hai...hmare dayre badte ja rahe hai..kuchh naya milta hai kuchh purana chhut jata hai...zindgee yuhi chalti jati hai...

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  11. सचमुच...अब तो रिश्ते केवल नाम और तस्वीरों तक ही रह गये हैं.न पहले सा अपनापन ना पहले से रिश्ते...न पहले सा मेलजोल..आना-जाना भी अब लोगों को सुहाता नहीं..

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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला

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