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आज अचानक देखा तो पाया कि डैशबोर्ड पर कुछ भी कभी भी कि छ: सौ पोस्टों का आंकडा दिखा रहा था ,हालांकि अभी तो जाने कितनी ही ड्राफ़्ट का चादर ओढे दुबकी बैठी हैं । यूं तो मुझे इन आंकडों ने कभी न तो आकर्षित ही किया न ही मेरा ध्यान बंटा पाए हैं , मगर आज अचानक डैशबोर्ड पर एक साथ ...ठेले पर पडे एक दर्जन केले के गुच्छे की तरह अपने ब्लॉग्स भी दिख गए । आम तौर पर मैं सीधे नीचे पहुंच कर नई पोस्टों की जानकारी लेता हूं , उन्हें देखता पढता हूं ..पहले ही बता चुका हूं कि लगभग छ: सौ ब्लॉग्स को फ़ौलो करने के कारण एक छोटा मोटा एग्रीगेटर तो मेरा डैशबोर्ड ही है । तो देखा तो ये पाया जो आपको ऊपर शीर्षक में बताया है ।
मैं जब किसी से मिलता हूं , और अब तो ये न सिर्फ़ ब्लॉग मित्रों के साथ मुलाकात पर बल्कि तो अब मीडिया मित्र और साथ के सहकर्मी तक मेरी बातों के होने के कारण सभी कहने लगे हैं कि ..यार झाजी आप तो लगता है कि हिंदी ब्लॉग्गिंग के दीवाने हो । और एक बेसाख्ता मुस्कुराहट मेरे अंदर जन्म लेती है और दिल सोचता है ..क्या बात है झाजी ..घर से बाहर भी वही बात ...तो हैं तो हैं ..। जी हां ब्लॉग्गिंग के दीवाने हैं हम तो । और इसके बाद पूछने का मन करता है ..वही उसी स्टाईल में ..कोई शक ..??
अपने पिछले तीन सालों के ब्लॉग सफ़र को देखता हूं तो लगता है कि अब तो इतने दिलचस्प किस्से रोज बनते बिगडते से दिख रहे हैं कि बहुत जल्दी ही मुझे शायद "blogobiography " न शुरू करनी पड जाए ......हा हा हा ये तो गोया एक और ब्लॉग की तैयारी कर ली झाजी ने ..आप यही सोचेंगे न ..। इस आभासी दुनिया में लाने का श्रेय भी आभासी ही रहा ...जी हां कादम्बिनी के एक अंक संभवत : सितंबर २००७ का था , ने ही हमें हिंदी ब्लॉगिंग से हमारा परिचय करवाया । और क्या दिन थे वे भी चिट्ठाजगत पर कुल चिट्ठों की संख्या पांच सौ भी नहीं थी , और वो कैफ़े में बैठ कर ब्लॉगिंग करना ,, सिर्फ़ लिखना भर ही आता था और कुछ भी नहीं । खैर अब तो ये सफ़र दिनों दिन हजारों लाखों किलोमीटर स्नेह और ज्ञान के माईलस्टोन को छू लेता है । अब तो लगता है कि उफ़्फ़ दिन में चौबीस ही घंटे होते हैं उसमें भी नहाने , खाने , और इन जैसे कई गैरजरूरी कार्यों को करते हुए एक नुकसान ये है कि आप ब्लॉगिंग नहीं कर पाते । पहले छुट्टियों का इंतज़ार उतनी शिद्दत से कहां रहता था , जितना कि अब रहने लगा है । पहले लिखना पढना उतना दिलचस्प कहां होता था लगता था जितना अब लगने लगा है ।
और सच कहूं तो पहले वो शहर अनजाने से लगते थे जिनका नाम सुनते ही अब जो पहली बात जेहन में आती है वो ये होती है कि , ओह यहां तो वो रहते हैं न ब्लॉगर , जिनका ब्लॉग है .......। है न कमाल ब्लॉग्गिंग का । ब्लॉगिंग को लेकर जब कोई सवाल पूछता है या ये जानने की कोशिश करता है कि , ब्लॉग्गिंग को लेकर मेरे मन में क्या चल रहा है तो मैं उससे यही कहना चाहता हूं कि , मैं चाहता हूं बल्कि कहूं कि जानता हूं कि आने वाले समय में सबके ब्लॉग्स पर टिप्पणी आएगी ..मैं फ़लाना राज्य का मुख्यमंत्रा लिख रहा हूं आपने बहुत सुंदर लिखा है मेरे प्रांत के विषय में बहुत अच्छा लिखा है ...या कि सलमान शाहरूख और अमिताभ बच्चन की टिप्पणी आती है ..आप हमारी फ़लाना पोस्ट भी पढें और आने वाली पिक्चर भी देखिए न । हां मानता हूं कि अभी ये दूर की कौडी है , मगर दिल तो चाहता है कि और मानता भी है कि ये होगा तो जरूर बेशक हमारे जाने के बाद ही हो । एफ़ एम रेडियो पर जिक्र होगा कि आज फ़लाना ब्लॉग पर ये लिखा गया और जिस पर ये दिलचस्प टिप्पणी की गई ...ब्लॉग का पता है .......फ़लाना फ़लाना । वाह वाह क्या ख्यालात है ..क्या सपना है ..।
अब जहां तक मेरी अपनी बात है तो अपना क्या कहूं ...सुना है , देखा है और जाने कितने ही सर्वेक्षणों में भी देखा है कि ब्लॉग्गिंग आपकी कायापलट कर सकता है ..हां कर तो सकता है ..देखिए अब हमारी खुद ही काया कैसे पलटती जा रही है ..सच कहें तो ब्लॉगिंग तो खुद के साथ साथ हमें भी जवान किए जा रही है भाई ...