लेकिन लगता है कि ये ब्लोग्गिंग का ..अब तो हिंदी ब्लोग्गिंग का कहना भी तर्क संगत नहीं लगता..सो इस तरह कह लेते हैं कि देवनागिरी में लिखने वाले ब लोग्गर्स के लिये संक्रमण काल सा हो गया है। विवाद -प्रतिवाद, निजी आक्षेप, बेवजह तूल देने वाले मुद्दे, उसे आगे बढाने वाली पोस्टें, धर्म, लिंग, भाषा, की लडाई....वाह वाह एक साथ इतने जीवाणु/कीटाणु, हैं कि ...एक से निबटो तो दूसरे का हमला..दूसरे से ...तो तीसरे का..ताबडतोड...और तो और जो थोडी बहुत रोकने की कोशिश भी हो रही थी ...वो पोस्टें ही अपने आप में एक वायरस बन रही थीं। और ऊपर से तुर्रा ये कि ..गोया ये काफ़िला चला ही नहीं था अकेला.....तो सिलसिला इतना लंबा हो गया कि ..बदस्तूर जारी है।
इसी बीच इन्हीं हालातों के मद्देनज़र पिछले दिनों एक पोस्ट पढी ..शीर्षक था ...क्या ब्लोग्गर्स के पास लिखने के लिये विषयों का अभाव है...पोस्ट ने और उस पर टीप के रूप में दर्ज़ एक रहस्योघाटन ने ..बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया। उसी वक्त लग गया था कि...ठीक ही है..अब शायद वो वक्त आ गया है कि सबको ..इन सबसे इतर जाकर..इन सबसे उपर उठकर और इन सबसे किनारा करके..कुछ संजीदा, कुछ गंभीर ,कुछ सार्थक लिखा जाये...विचार बना कि जो ब्लोग्स पहले से हैं उनपे ही ..मगर सबने सलाह दी कि उन पर उनके मिजाज के अनुरूप ही लिखा जाये ..सो एक नया ब्लोग ले कर आ रहा हूं आपके बीच। उम्मीद है कि खुद को और आपको गंभीर लेखन से रूबरू करा सकूंगा..
और मेरी आप सबसे भी यही गुजारिश है कि अपना सर्वस्व और सर्वश्रेष्ठ देने का प्रयास करें..
नए ब्लोग की हार्दिक बधाई. भ्रमण कर आया हूँ.
जवाब देंहटाएंसमाज में बेवजह धार्मिक अतिवाद मौजूद है, लिंग भेद भी है,और जातिवाद भी। आर्थिक विषमता भी है, भ्रष्टाचार भी है और बाजारवाद के माध्यम से जनता की जेब की खुली लूट भी है। बेरोजगारी भी है और लोग 16 से 18 घंटे काम भी कर रहे हैं। यह सब समस्याएँ तो ब्लागिंग में आएंगी, उन्हें कैसे रोका जा सकता है। हाँ ब्लागर एक नीति बनाएँ कि किसी को अपमानित न करेंगे। बहस को भदेसपन में न ले जाएँगे। और विचारविमर्श को व्यक्तिगत आग्रह-दुराग्रह से मुक्त रखते हुए ईमानदारी से मनुष्य जाति के लिए किसी मुक्ति मार्ग की तलाश में रहेंगे तो सब चलेगा। मतभेद हल होते रहेंगे। जो लोग इस से इतर चलेंगे तो उन्हें कभी न कभी ब्लागिंग के इस मार्ग से अलग होना ही पड़ेगा। पाठक उन्हें अकेला छोड़ देगा।
जवाब देंहटाएंब्लागिंग का भविष्य उज्जवल है।
बन्धु, राजनैतिक लेखन और मुद्दों सम्बन्धी कड़ी आलोचना से जिनको मिर्ची लग जाती है, उनका क्या करेंगे भाई? मुद्दे तो ढेर हैं, लेकिन उन्हीं में विवाद भी तो समाया हुआ है, विवादों से बच नहीं सकते, उनके साथ जीना सीखना ही होगा… :)
जवाब देंहटाएंसही कह रहे है अजय जी आप
जवाब देंहटाएंझा जी, अभी तो कुछ समय तक शायद ऐसा ही चलेगा पर बाद में जब हिन्दी से कमाई होने लगेगी तो सभी लोग आपसी झगड़ा भूल जायेंगे और व्यावसायिक लेखन में लग जायेंगे।
जवाब देंहटाएंझा साहब यह सब युही चलता रहेगा, कभी कम तो कभी ज्यादा.... इस का कोई इलाज नही.... अगर है तो कोई बताये???
जवाब देंहटाएंबस एक ही इलाज है कि जिसे इस से बचना है वो कीचड की तरफ़ जाये ही ना, कबीरा बाबा की बात माने...
कबीरा तेरा बंगला, टांग खिचंन के पास,
खिचेंगा सो खायेगा, तु क्यो होत उदास
आपकी चिंता वाजिब है. पर हर रात के बाद एक शानदार सुबह होती है.
जवाब देंहटाएंरामराम.
झा जी, पोस्ट तो आपने बहुत बढिया लिखी है...इस विषय में आपके विचारों से हम भी पूर्णत:सहमत हैं कि इस प्रकार विवादों में उलझने की अपेक्षा कुछ सार्थक किया जाए तो ही हम कह सकते हैं कि वास्तव में हिन्दी ब्लागिंग का भविष्य सुरक्षित है ।
जवाब देंहटाएंकिन्तु आपने जो "शुक्राणु" शब्द का प्रयोग किया है, वो हमें समझ में नहीं आया । कीटाणु या जीवाणु लिखते तो सही होता ।
अगर हम गम्भीर साहित्य की सर्जना कर रहे हैं तो निश्चित ही ब्लॉग जगत में उसकी छवि दिखाई देगी । मनोरंजन के लिये तो अन्य बहुत से माध्यम हैं । जिस दौर से हमारा समाज गुजर रहा है उसकी छाया भी यहाँ दिखाई देगी । अंतत: अभिव्यक्ति के खतरे तो उठाने ही होंगे ( मुक्तिबोध) बेहतर यह होगा कि इस दिशा में सोचने वाले गम्भीर लेखकों को हम यहाँ जोड़ने का प्रयास करें । जिसे जो राह चुननी है चुन लेगा ,पाठक भी और लेखक भी ।
जवाब देंहटाएंशुक्राणुओं का हमला - फ़्रॉडियन स्लिप?! LOL!!
जवाब देंहटाएंहा...हा..हा..आखिर आपने पकड ही लिया..दरअसल मैं प्रयोग तो जीवाणु या कीटाणु ही करना चाहता था ..मगर फ़िर सोचा कि ये सब तो वो वायरस हैं जिनका तोड देर सवेर निकल ही आता है..मगर ये मुद्दे तो शुक्राणु ही साबित हो रहे हैं....जिनसे जाने क्या क्या पनप रहा है..और ये शुक्राणु इस कारण भी हैं क्योंकि पल में ही द्विगुणित होते जाते हैं..और कुछ मकसद नहीं था ...उम्मीद है उद्देश्य को समझा जायेगा..
जवाब देंहटाएंकुछ लोग हैं जो ब्लॉगर्स जगत में हलचल पैदा कर रहे है परंतु हमे उनके इस प्रयास को असफल करना है
जवाब देंहटाएंझा जी आपने शुक्राणु कहिन-पंडित वत्स ने टोका ,ई स्वामी ने चुटकी ली ! महराज उसे बदल कर विषाणु कर दीजिये जो आप सचमुच कहना चाहते थे ! नो आर्गूमेंट्स प्लीज़ !
जवाब देंहटाएंझा जी,
जवाब देंहटाएंबाकी दिया गला छडो, बस दिल साफ होना चाइदा...नए ब्लॉग
के लिए बहुत-बहुत शुभकामनाएं...
जय हिंद...
नए ब्लाग के लिए शुभकामनाएं .. उम्मीद करती हूं .. वहां अच्छे मुद्दों पर कुछ न कुछ पढते रहने को मिलता रहेगा .. मेरी मजबूरी है कि हम पाठकों को वही पढा रहे हैं .. जो पाठक पढना नहीं चाहते!!
जवाब देंहटाएंआप लोगों की आपत्ति या कहूं कि मार्गदर्शन के लिये शुक्रिया...मैंने शब्द को बदल कर वही कर दिया है....यही उचित है शायद..आप लोगों का आभार..
जवाब देंहटाएंजय हो। बधाई हो नये ब्लाग की। वैसे मेरी समझ में एक ब्लाग ही रहना चाहिये एक व्यक्ति का।
जवाब देंहटाएंओह अईसन है क्या..शुकुल जी आप तो हमको धर्म संकट में डाल दिये ..हमही को काहे पता नहीं कतना लोगन को ...चलिये एतने का कम है कि फ़ोटो एक दम सेम टू सेम है...लोग बाग पहचान जायेंगे..फ़िर आपके चर्चा के लिये भी तो दू चार ठो ब्लोग रहना न ..चाहिये हमारा ..एक गो तो पकड्बे किजीयेगा..अब तो बन गया..अब झेलना ही पडेगा...
जवाब देंहटाएंअवधिया से सहमत कुछ समय तक शायद ऐसा ही चलेगा पर बाद में जब हिन्दी से कमाई होने लगेगी तो सभी लोग आपसी झगड़ा भूल जायेंगे और व्यावसायिक लेखन में लग जायेंगे।
जवाब देंहटाएंवाह बहुत बढ़िया लगा आपका ये पोस्ट! नए ब्लॉग की हार्दिक बधाइयाँ !
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