बुधवार, 23 सितंबर 2009

रामलीला के वो रोल... जो मेरे सिवा और कोई नहीं कर पाया

हालांकि अब रामलीला में वो बात कहां.....जो हमारे जमाने में हुआ करती थी...अजी पूरे साल..बस त्योहारों पर ही नज़र हुआ करती थी....होली, दिवाली, दुर्गा पूजा, दशहरा....और पूरे साल उसकी तैयारी भी...क्या दिन थे वे भी..और खास कर दुर्गा पूजा के वो दस दिन...जब घूम घूम कर पूजा , पंडाल, उनकी सजावट ...देखने में पगलाये रहते थे...यदि किसी में अपनी भागीदारी भी करनी हो तो समझिये कि बस....इत्ती घनघोर तैयारी चलती थी...कि उन दिनो में भी हमारी गंभीरता को देखते हुए...हमसे जबरिया अपना होमवर्क करने को कोइ कह नहीं पाता था....फ़िर उसके बाद राम लीला से हमारा मोह....वो तो सारा मामला खराब कर दिया...रामानंद सागर जी..जिन्होंने ऐसी कालजयी रामायण दिखा दी पब्लिक को ..कि रामलीला की तो सारी लीला ही खत्म सी हो गयी...वैसे दिल्ली में अभी भी रामलीला तो मनाई ही जाती है....जिनमें नेताओं के स्वागत और कुछ अन्य इसी तरह के मनोरंजक कार्याक्रमों के साथ साथ बीच बीच में ऐड की तरह आप रामलीला भी देख सकते हैं.....खैर छोडिये....आज तो बस आप ये जानिये कि रामलीला के वे किरदार .....जो हम निभा गये और जिस तरह से निभा गये...अजी कोइ माई का लाल आज तक उसे वैसा नहीं निभा पाया...अब तक तो नहीं ही....क्या कहा आप नहीं मानते.....हिंदी ब्लोग्गर हैं न..ऐसे थोडी मानेंगे...तो लिजीये जबरिया पढिये.....


जब हम सबसे पहली बार राम लीला में अपना रोल पाने पहुंचे तो ...मन ही मन ये तय कर लिया था कि....राम से कम किसी रोल पर तो कोई कंप्रोमाईज़ नहीं करेंगे....एक यही तो वो रल है ...जिसके बहाने हम ..पूरे दस दिन अपने ..होमवर्क से दूर रह सकते थे...दूसरे किसी रोल में ये सेफ़्टी गारंटी नहीं थी.......सो सीधा ही दावा ठोंक दिया.....वैसे भी उन दिनो वैसे ही ठोंका जाता था....तब कौन सा ऐस ऐम ऐस की टेंशन थी....कि हफ़्ते भर इंतज़ार के बाद पता चलता....यही कि हमें भी हमारे दावे के अनुरूप उन्होंने ठोंका...नहीं ..बाहर फ़ेंका.....कारण भी एक दम वाजिब था ......जवाब मिला.....राम का रोल....झपटू चाचा का बेटा....लुटकुनमा करेगा...क्योंकि ..रामलीला में सबके कपडे सिलाने के अलावा......राम लीला के दौरान सबको चाय और समोसे की स्पोंसरशिप भी उसकी तरफ़ से ही थी......हमने भी मन मार के हां में हां मिला दी.....और इस तरह से ही अपने योगदान के हिसाब से सबको रोल मिल गये......हाय रे कैटल क्लास....बताईये जो बात थरूर को अभी पता चली है...हमें तो तभी जता दिया था सबने......मगर ये क्या बात हुई जी...हमारा तो व्यक्तित्व ही राजकुमारों सा है...सो न करना मंजूर है...मगर राजकुमार तो बनेंगे ही.....चलो ठीक है....राम, लक्षमण, और भरत की तो बुकिंग हो चुकी है...बस एक शत्रुघ्न का रोल रह गया है.....आप कर लो...बहुत ही सेफ़ रोल है......हमने भी झट से हामी भर दी.....हमारे डायलोग भी तो बताओ.....और ये भी कि हमारे अपोजिट कौन है..मतलब..नायिका.....अरे कहा न सेफ़ रोल है...शत्रुघ्न ने कब डायलोग बोल दिया जो तुम बोलोगे....और अपोजिट..तुम्हारे हमेशा ही..भरत रहेंगे.....बताओ यार क्या रोल मिला .....मगर राजकुमार तो बन ही गये....और यकीन मानिये....शत्रुघ्न वाला वो रोल आज तक कोई वैसा नहीं कर पाया..


अगली बार तय कर लिया था कि ...इस बार तो कैटल क्लास की हालत...तो फ़ैटल क्लास टाईप हो गयी है.....और फ़िर राजकुमारों वाला दमदार रोल तो कर के देख ही लिया था....कलाकार आदमी कब एक तरह की भूमिका चाहता है.....उसे तो वैरायटी चाहिये....सो हमें भी चाहिये थी....हमने फ़ट से अपनी ये इच्छा ...डायरेक्टर लुट्कुन जी को भी बताई...(.जी सच सुना आपने....इस बार लुट्कुन जी ने समोसे के साथ साथ...रामलीला के बाद पूरी नाटक मंडली को ...सनीमा दिखाने का वादा भी कर लिया था...सो इस टैलेंट से वे फ़टाक से डायरेक्टर बन गये....मुझे तो यकीन है कि यदि वे बौलीवुड में भी अपने इसी टैलेंट का उपयोग करते..तो आज मधुर भंडारकर तो तगडा कमपटीशन मिलता....)..उन्होंने..हमें चारों तरफ़ से जांचा परखा....और कहा...चलो ..फ़ैसला हो गया....या जटायु का रोल कर लो.....या जामवंत का......और ये दोनों रोल के मिलने का एक महान कारण भी हमें बताया गया.....देखो इन दोनों रोल के कौस्ट्यूम काफ़ी अलग हैं......कोई भी पहन रहा है तो उसे खुजली हो रही है....तुम्हारा क्या है...तुम्हें तो वैसे भी खुजली रहती ही है....तो आखिरकार ये तय हो गया कि ..दोनों ही रोल हमने ही करने हैं.....और क्या खूब किया जी....कोई भी आज तक नहीं कर पाया.....
इसके बाद तो हमने तय कर लिया कि जाओ जी हमें तो अपने पुरुष पात्रों ने कोई बहुत बडा ब्रेक नहीं दिलाया सो अबके तो चाहे जो हो जाये......हम कोई ऐतिहासिक..महिला किरदार ही करेंगे...और देखिये.....हमने इतिहास रच दिया....लुटकुनमा जी ने कहा...देखो भैया...तुम अभीये जो एक बार नाक कटा लोगे न.....तो फ़िर जिंदगी भर इसका टेंशन नहीं रहेगा.....और धीरे धीरे तो आपको इसकी आदत ही पड जायेगी....और आगे जाकर आप खूब नाक कटाओगे...चाहे रामलीला करोगे ......या ब्लोग्गिंग....जहां भी नाक घुसेडोगे...कौनो न कौनो...फ़ट से आपकी नाक काट लेगा...कमाल का यादगार रोल रहा ये भी......


चलिये आप लोग मौज करिये...और अपने बच्चों को खूब रामलीला दिखाईये.....

(नोट:- यार अब इसे पढ कर ये मत कहने लगना कि...हमने इन पात्रों का मजाक उडाया है....फ़लाना ढिमकाना...हमने तो अपनी दास्तान सुनाई है ...आप तो बस मुस्कुरा लो जी.....)ई जो उपरका पैरा ..अंडर लाईन हो गया है....हमको नहीं पता...कैसे हो गया है....हट भी नहीं रहा...झेलिये आज ऐसे ही...

16 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब लिखा झा जी,आपने बचपन की सारी याद दिला दी रामलीला के लिए कितनी तैयारी होती थी की आज चलना है आसपास के सभी दोस्तों को इकठ्ठा करना और फिर रात को निकल पड़ना रामलीला देखनेअब तो सब कुछ ख़त्म सा होने लगा है कहाँ वो जुनून और वो भाव दिखाई पड़ती है लोग इतने उत्साह से रामलीला देखने जाए.रही बात पात्रों के मज़ाक की अरे हम कुछ कहाँ कहने वाले हमें तो खुद ही बड़ा मज़ा आता था बड़े ही अलग तरह से बयाँ किए जाते थे पूरा एक नाटक जैसा होता था अब कही कुछ झोल झाल हो जाए तो मज़ा तो आता ही है ....बहुत सुंदर प्रस्तुति किया आपने अपने संस्मरण के माध्यम से बहुत बहुत बधाई!!!

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  2. पढ़कर लग रहा है की अपने इतने सारे रोल किये .... ,बहुत बढ़िया अजय भाई संस्मरण है . ..... ब्लागर किसी पात्र से कम नहीं होता है .... वेस्पा और लेम्बरेटा के जमाने की राम लीला की बात ही निराली थी .....अब तो सारा काम हाईटेक हो गया है .

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  3. पढ़कर लग रहा है की अपने इतने सारे रोल किये .... ,बहुत बढ़िया अजय भाई संस्मरण है . ..... ब्लागर किसी पात्र से कम नहीं होता है .... वेस्पा और लेम्बरेटा के जमाने की राम लीला की बात ही निराली थी .....अब तो सारा काम हाईटेक हो गया है .

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  4. अंडरलाइन इसलिए हुई कि आपको कोई अंडर एस्टीमेट ना करे ....आपने इत्ते बड़े - बड़े पात्र निभाए जो हैं .....इसीलिए गूगल बाबा की मेहरबानी हुई है आप पर ....

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  5. शेफाली जी की बात से पूर्णत्या सहमत

    संस्मरण मज़ेदार है

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  6. अंडरलाईन मतलब वेरी इम्पोरटेन्ट. बड़े ध्यान से पढ़े. बाकी का सरिया दिये बस. तुम्हारा क्या है...तुम्हें तो वैसे भी खुजली रहती ही है...मजा आ गया. शीघ्र स्वास्थ लाभ की कामना कि कुछ सालों में ठीक हो ही जाये.

    नाक की तो अब टेंशन रही नहीं, क्या करना है कोई अंडारलाईन को जो माने सो माने. :)

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  7. बहुत ही सुन्दर चर्चा है...
    पढ़कर लगा जैसे रामलीला सामने ही चल रही है...

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  8. लुटकनजी को बालीवुड भेजने से पहले कोच-वोच के बारे में भी बता देना- वो क्या है कि हिरोइन को सेलेक्ट करने का लफ़डा रहेगा ना:)

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  9. चलिए आप ने रामलीला में रोल तो किया। वैसे ये रोल कमजोर तो नहीं थे।

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  10. जब ये सारे रोल किये तो एक बार अंगद के पांव का रोल भी कर लेते -- जम गये तो हिलाने वाला नही मिलता. वैसे लगता है आजकल वही रोल कर रहे है.

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  11. अजय भाई मस्त है आपका ये प्रसंग

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  12. इत्ते रोल बचपन में ही!?

    इससे आगे की लीला में कौन कौन से रोल किए, ज़रूर बताइएगा :-)

    अंडरलाईन पर भी टिप्पणियाँ आ गई हैं तो अब उसे हटाने के बारे में क्यों बताया जाए

    बी एस पाबला

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  13. कमाल का लिखा है झा जी................बचपन की याद दिला दी रामलीला के लिए क्या क्या नहीं करते हम लोग .......रात रात भर बस घुमते रहना अलग अलग राम्लेलाओं में .......पर अब वो मज़ा ख़त्म हो गया है .........बहुत सुंदरता से प्रस्तुति किया आपने अपने संस्मरण को .........बहुत बहुत बधाई...........

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  14. बहुत खूब. बचपन के दिन ताज़ा हो गये. हम भी खूब रामलीला देखने जाते थे और भीड में जगह रोकने के चक्कर में गज़ब की डांट भी खाते थे.

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  15. भाई बचपन की रामलीला तो बस समझ लो कि परमानंद होती थी.

    इष्ट मित्रों एवम कुटुंब जनों सहित आपको दशहरे की घणी रामराम.

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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला

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