जब से देश में किफ़ायत की हवा चली..तब कहीं जाकर इस मुंए स्वाईन फ़्लू की चर्चा थोडी कम हुई...खैर जब ये हवा चली तो देश के नागरिक होने के नाते मेरा फ़र्ज़ बनता था कि जब स्वाईन फ़्लू से मैं डरने में मैने पूरी सहभागिता निभाई तो फ़िर इस कटौती में क्यों नहीं...सो तय कर लिया कि अब चाहे जो हो हम भी किफ़ायत करेंगे...मगर हम जानते हैं कि ..इन राजनितिक निर्णयों मे हमसे वरिष्ठ मित्र लपटन जी ही हमारी मदद कर सकते हैं...सुना है जसवंत जी की भी उन्हीं ने मदद की थी ...सारा प्लोट ही उन्हीं ने लिखा था....किताब तो बाद में लिखी जसवंत जी ने...खैर..
लपटन भाई...यार अब तो मन नहीं मान रहा ..अब तो जैसे करके भी हमारे किफ़ायत का भी कुछ इंतज़ाम करो...हम भी चाहते हैं कि हमारा भी सहयोग हो ..ताकि देश जो इस मंदी के भारी भरकम दौर को झेल गया है...कल को उसे बचाने मे ..किसी का हाथ होने का नाम आये तो एक नाम इस नाचीज़ का भी तो हो..सोचो कितने फ़क्र की बात है ...अपने हिंदी ब्लोग्गर्स के लिये...
हांय...हमें तो पहले ही पता था कि देर सवेर बेटा तुम पर ये असर होने वाला ही है...अबे तुम ब्लोग्गर्स किसी चलती फ़िरती बात को न पकडो..ऐसा तो हो ही नहीं सकता..और सुना है अब तो बिग बी भी हिंदी में कुछ लिखने वाले हैं...चलो छोडो...बेकार की बात....ये किफ़ायत शिफ़ायत ..तुम लोगों के लिये नहीं है....
क्यों भाई...हम क्या सिर्फ़ ..सूअर फ़्लू के काम के लिये ही हैं...अरे नहीं नहीं यार मैं सीरीयस हूं...मुझे जरा भी बुरा नहीं लगेगा ..अगर कोइ मुझे इकोनोमी क्लास में..जाने को कहेगा......इसी बहाने हवाई जहाज़ में बैठने का मौका तो मिलेगा....
बस मुझे पता था....तुम कैटल क्लास लोगों की सोच यहीं तक सिमित रहती है....अबे ये कटौती या किफ़ायत तो वही कर सकते हैं न जो जहाज़ में उडते हैं...तुम तो बेटा पहले ही कटौती में..मतलब सायकल में सफ़र करने वाले हो...तुम्हारे सायकल के पैडल से मंदी की तेजी और मंदी क्या...
हम निराश हो गये...ऐसी तो आशा ही नहीं थी...यानि इतने काम भी न आ सके देश के...मगर अगले ही पल ठन गया कुछ मन को ..अच्छा लपटन भाई...यार हवाई जहाज़ में न सही..किसी और बात में...मसलन खाने पीने में किफ़ायत कर लें तो कैसा रहेगा...
अच्छा ..खाने पीने में....चलो ठीक है....दाल खाते हो.....यदि हां तो....किफ़ायत के रूप में ....मुर्गा ...और यदि उससे भी ज्यादा करनी हो तो अंडे खाना शुरू कर दो...पीने के नाम पर तुम बस पानी ही पीते हो..सो इसमें क्या कटौती कर सकते हो...खुद ही कर लेना....
मगर लपटन जी .....दाल को तो खाये जमाना हो गया....अब तो बच्चों की प्रोजेक्ट कौपी में भी दाल की जगह..कुछ उसके जैसे दिखने वाले कंकड चिपका देते हैं....बच्चों का क्या है..कल को जब बडे होंगे..तो कौन सा ये दाल उनको देखने खाने को मिलेगी...बांकि की दोनों ...हम पाल पोस तो सकते हैं...बस उससे ज्यादा हमारे बस का नहीं..
हाय यानि कि हम कोइ किफ़ायत नहीं कर पायेंगे इस देश के लिये....धत इतने भी काम न आ सके देश के...
जब से लपटन जी मिल के आये हैं उदास बैठे हैं...इसलिये इत्ती गम्भीर गंभीर बातें लिखनी पडी आज..आपके पास है कोइ आईडिया ..किफ़ायत का तो बताईये न....
ताज़ातरीन विष्य पे लिखा गया सटीक व्यंग्य...
जवाब देंहटाएंबधाई...
वैसे जो सुरती चबाने हैँ..उनके लिए एक किफायती आईडिया तो ये है कि वो 'सुरती' को रिसाईकिल कर के चबाया करें...पूरी जानकारी के लिए हँसते रहो पर मेरी कहानी "दू बून्द ज़िन्दगी की" पढ लें
किफायत की रवायत
जवाब देंहटाएंपसंद आती है
सबको भाती है
परन्तु सिर्फ जब
दूसरे पर लादी जाती है
जब खुद पर बीतती है
तो सच मानिएगा
नानी मर जाती है।
- नेता उवाच
आज तो हम भी उदास हैं
जवाब देंहटाएंएक मानव दिख गया, सुबह सुबह हमारा नाम लेते!
पहले तो खुशी हुई थी कि हमें हवाई जहाज के लायक तो समझा गया :-)
बी एस पाबला
अबे ये कटौती या किफ़ायत तो वही कर सकते हैं न जो जहाज़ में उडते हैं...तुम तो बेटा पहले ही कटौती में..मतलब सायकल में सफ़र करने वाले हो...तुम्हारे सायकल के पैडल से मंदी की तेजी और मंदी क्या...
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा लेखन!
बहुत खुब अजय जी, लाजवाब व्यंग। बहुत-बहुत बधाई.........
जवाब देंहटाएंhmm......
जवाब देंहटाएंमामला गंभीर है......भय्या.....
हमें भी कुछ गर्भ से मिला होता तो हम भी जरूर बचत करतें.....
अब तो दाल की जगह कुछ और ही खा सकतें हैं......
सुन्दर व्यंग भय्या ...
इकोनोमी क्लास में बेठे ने वाले तो भेड बकरी ( जानवर? हुये, अब इन सज्जन से कॊइ पुछे कि बसो मे बेठने वाले, तांगो ओए रिकक्षा मै बेठने वाले क्या हुये, जिन की वोट ले कर ओर जिन का खुन पी कर यह बेशर्म अकडाये फ़िरते है, अपना चुनाव जीतते है,शर्म आती है ऎसे नेता हे हमारे देश के जो अपनी ओकात भुले बेठे है.
जवाब देंहटाएंअब इमे नया बात तो कौनो है नहीं..आप तो बचपने से किफायति है हमारी तरह. हम तो पढ़ाई भी बड़े किफायत से किये हैं. एक नम्बर फालपू नहीं. ३३ में पास होयेंगे तो ३४ मिल जाये, हमसे बर्दाश्त न हो पाता ये १ नम्बर का वेस्टेज तो ३३ ही लाते थे. :)
जवाब देंहटाएंसबसे बढ़िया किफायत पैदल चलें आखिर ज़मीन से तो जुडे रहेंगे
जवाब देंहटाएंवाह अजय जी बहुत बढ़िया लगा! लाजवाब और शानदार रूप से व्यंग्य किया है आपने ! सुंदर प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंsharad kokaas je se sahmat.....
जवाब देंहटाएंसामान्य जरूरतों की चीज के महंगे होने से पूरी दुनिया तो मजबूर है खर्च करने के लिए .. किफायत जो कर रहे हैं , उन्हें करने दें .. हमलोगों के पास किफायत का कोई स्कोप नहीं !!
जवाब देंहटाएंवाह! एक सटीक किफ़ायती व्यंग्य!
जवाब देंहटाएंअब हम भी किफ़ायती टिपणी ही करेंगे.:)
जवाब देंहटाएंरामराम.
ये किफायत तो किसी को बहुत महँगी पड़ने वाली है.
जवाब देंहटाएं"कल को उसे बचाने मे ..किसी का हाथ होने का नाम आये तो एक नाम इस नाचीज़ का भी तो हो.."
जवाब देंहटाएंसही है, क्य पता कल को स्वतंत्रता सेनानी की तरह किफ़ायती पेचिन की घोषणा हो तो अपना नाम कहीं न कहीं तो होना ही चाहिए....आखिर इस किफ़ाइत की पेन्चिन तो मिलना ही है ना:)
विचारों की गति तेज
जवाब देंहटाएंउड़ान करिश्माई
और किफायती
धेला भी नहीं लगता।
ब्लॉगिंग के जीवन
चलाने के लिए
खर्च की गई ऊर्जा से
विचारों का जीवन
इंटरनेट से पलता।
तो उड़ें सिर्फ विचारों में
बचें सिर्फ कुविचारों से।