कुछ भी लिखने से पहले स्पष्ट कर दूँ कि, यहाँ इस पोस्ट को लिखने के पीछे मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है कि मैं मीडिया और ब्लॉगजगत को आमने-सामने कर रहा हूँ या कि कोई तुलना करने बैठा हूँ। मैं पिछले काफी समय से किसी न किसी रूप में या कहूं कि कई रूपों में जुदा हुआ हूँ और पिछले कुछ समय से यहाँ इस ब्लॉगजगत पर भी इतना समय टू बिता हे चुका हूँ कि दोनों अनुभव को साथ साथ देख सकूं। यकायक दिमाग में ख्याल आया कि देखें दोनों के बारे में यदि एक साथ सोचा जाए तो क्या कुछ बाहर निकलता है।
प्रसार - प्रसार के मामले में ब्लॉगजगत अभी मीडिया के किसी भी माध्यम से कोसों पीछे है , वहाँ पाठकों, श्रोताओं, या दर्शकों की संख्या ब्लॉगजगत से बहुत ज्यादा है। ये बात शत प्रतिशत ठीक है। मगर, हाँ मगर, एक बात तो ऐसी है जिस पर ब्लॉगजगत इतरा सकता है, वो ये कि सुदूर कसबे में बैठ कर अपने मन की लिखने वाले पाठक को अगले ही पल विश्व के बहुत से कोनो में पढा जाने लगता है।
सामग्री - दोनों में काफी फर्क है। ब्लॉगजगत पर तो श्रव्य, दृश्य, पाठ्य, और न नान कौन -कौन सी, कैसी-कैसी सामग्री एक साथ उपलब्ध है वो भी चिरकाल तक, सुंदर आकर्षक रूप में। मीडिया की सामग्री कुछ वर्गों को छोड़कर स्तरहीन हो गयी है। इलेक्ट्रोनिक मीडिया की तो बात करने भी औचित्याहीन है।
महिलाओं की सक्रियता - ब्लॉगजगत पर थोड़ी देर तक रहने के बाद ही किसी को भी ये एहसास हो जाता है कि महिलाएं कितनी संजीदगी से ब्लॉगजगत पर अपनी सक्रियता से ब्लॉगजगत की सार्थकता को बढ़ा रही हैं। और अब तो इसकी चर्चा भी होने लगी है। दूसरी तरफ मीडिया के किसी भी माध्यम में महिलाओं का उतना ही शोषण किया जा रहा है जितना किसी भी अन्य संस्थान या व्यवसाय या क्षेत्र में, ये हो सकता है कि ऐसा सबके साथ न हो पर अधिकांश के साथ तो हो ही रहा है।
भविष्य - एक यही वो जगह है जहाँ आकर मुझे लगा कि दोनों ही लगभग एक जगह पर हैं, मीडिया का इतना प्रसार होने के बावजूद आज भी इसका फैलाव जारी है और जहाँ तक ब्लॉगजगत की बात है तो उसकी तो अभी शुरूआत है और अग आगे देखिये कि कितना धमाल मचने वाला है।
यानि कुल मिला कर देखूं तो यही लगता है कि देर सवेर हिन्दी ब्लॉगजगत अपनी धमक का एहसास कराने वाला है हालांकि अभी दिल्ली दूर नहीं बल्कि बहुत दूर है.
आप की बात से सहमत हैं
जवाब देंहटाएंanita jee,
जवाब देंहटाएंdhanyavaad, padhne ke liye bhee aur sahmati ke liye bhee.