फ़िर नहीं फिर लिखा करें, कविता बहुत अच्छी है!जब बांटता हूँ,दर्द किसी का,रुस्वाइयां बन जाती हैं॥वाह!
अजय जी,अच्छी कविता है।बधाई।
chalte rahiyiega hazoor.....
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कविता तो अच्छी है।आशा और निराशा दिखती है आपकी कविता मे। ।
sundar rachna
aashaa aur niraashaa kavita mein hee hai mujhe apne mein to kuchh bhee nahin dikhtaa hai shaayad dabba hoon bilkul
बहुत खूब। इसी का नाम जीवन है, और इन्हीं तमाम अनुभवों से ही जिन्दगी बनती है। इस सरल एवं सफल अभिव्यक्ति के लिए बधाई।
मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला
फ़िर नहीं फिर लिखा करें, कविता बहुत अच्छी है!
जवाब देंहटाएंजब बांटता हूँ,
दर्द किसी का,
रुस्वाइयां बन जाती हैं॥
वाह!
अजय जी,अच्छी कविता है।बधाई।
जवाब देंहटाएंchalte rahiyiega hazoor.....
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जवाब देंहटाएंकविता तो अच्छी है।
जवाब देंहटाएंआशा और निराशा दिखती है आपकी कविता मे। ।
sundar rachna
जवाब देंहटाएंaashaa aur niraashaa kavita mein hee hai mujhe apne mein to kuchh bhee nahin dikhtaa hai shaayad dabba hoon bilkul
जवाब देंहटाएंबहुत खूब। इसी का नाम जीवन है, और इन्हीं तमाम अनुभवों से ही जिन्दगी बनती है। इस सरल एवं सफल अभिव्यक्ति के लिए बधाई।
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