कुछ भी लिखने से पहले मैं यहाँ कुछ बातें स्पष्ट कर देना चाहता हूँ। मेरा पूरा परिवार फौजी रहा है। आज भी बहुत से भाई ,भतीजे , चाह्चा मामा और भी अन्य लोग फौज और परा मिलिटरी फोर्सेस में कार्यरत हैं। उनका अनुभव उनकी जिन्दगी और उनकी उपलब्धी पर मैं कोई प्रश्न चिन्ह नहीं लगाऊंगा, हालांकि उन्होने भी एक बात तो स्पष्ट कर ही दी थी कि फौज भी जैसी दिखती या कि जैसी खुद को दिखाती है वैसी अब नहीं रही। मगर ये बात तो आज हर किसी विभाग के लिए कही जा सकती है और फिर थोडी बहुत कठिनाई तो सब जगह पर है ही।
मैं इनसे अलग उन लोगों की बात कर रहा हूँ जो मंत्रियों,राजनीतिज्ञों आदि कि सुरक्षा में बरसों से लगे हुए हैं ना सिर्फ लगे हुए हैं बल्कि अक्सर जब भी उन नेताओं की जान पर कोई मुसीबत आती है वो हमेशा ही उसे अपनी जान देकर ताल देते हैं। और बात जब भारत के संसद पर हमले की थी तो फिर भला वे कैसे चुप रह सकते थे। इसका परिणाम सबके सामने था । उन जवानों ने बिना अपनी जान की परवाह किये आतंकवादियों की एक एक गोली के आगे अपनी छाती लगा दी और संसद के अन्दर चूहे कि तरह छुपे हमारे कर्णधार राम राम जपते रहे। खैर ये तो सदियों से होता आया है और जो इसके बाद हुआ है वो भी।
हाल ही में संसद पर हमले की बरसी पर सरकार और उसके कुछ मंत्रियों ने हमेशा की तरह औपचारिकता पूरी करने के लिए एक सभा का आयोजन किया था, ताकि वे वही पुराना राग फिर से थोडा सा सुर बदल कर गा सकें । मगर उस वक़्त वे सब सकते में पड़ गए जब एक बूढी माँ ने उठकर वहाँ सरकार को उसका असली चेहरा दिखाते हुए खूब खरी खरी सुनाई । उन्होने बताया कि सरकार उन्हें पेंशन और पेट्रोल पम्प तो दूर आज तक कोई उनकी खैर खबर भी नहीं लेने आया। और ना ही उन्हें अब किसी सम्मान या सहायता की जरूरत है वे तो बस ये चाहती हैं कि इस काण्ड के मुलजिम अफ़ज़ल को अविलम्ब फांसी पर चढाया जाये । मगर ना जाने सरकार के पास वो कौन सी मजबूरी है कि आज भी अफ़ज़ल एक अजगर की भांति जेल में खा खा कर मोटा हो रहा है।
तो क्या अच्छा नहीं होता यदि उस दिन किसे नेता को मरने दिया जाता या फिर कि कम से कम संसद की या उन महान नेताओं की जान सिर्फ तब तक बचानी चाहिए थी जब तक उनकी अपनी जान सुरक्षित रहती। तो क्यो नहीं आज के बच्चे यही समझेंगे की इस देश में शाही होना कम से कम इम्न्न राजनीतिज्ञों के लिए तो सरासर बेवकूफी है। यदि मेरे इन विचारों से किसी को कोई तकलीफ होती है तो अग्रिम क्षमा चाहूँगा मगर मुझे लगता है कि अन्तिम सत्य यही है.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला