आलू प्याज और टमाटर,
खरीद खरीद कर,
जेब हुई है खाली रे,
ऊपर से बच्चे चिल्लाएं ,
लो आयी दिवाली रे,
शेयर मार्केट भी हुई बेवफा,
कौन समझे ये फलसफा,
कोई पीटे माथा अपना,
कोई बजाये ताली रे,
लो आयी दिवाली रे,
डी ऐ बढेगा बोनस बढेगा,
पे कमीशन में खूब मिलेगा,
ये होगा जब होगा, तब तक,
पकाओ पुलाव ख्याली रे,
लो आयी दिवाली रे,
एक खरीदो, दो लो फ्री,
कहीं सेल तो कहीं लॉटरी,
हर हाल में लुटोगे तुम्हीं,
है न बात निराली रे,
लो आयी दिवाली रे,
सब चलता है, चलने दो,
अबकी बार भी मनने दो,
खूब फोडो बम पटाखे,
खूब छलकाओ प्याली रे,
लो आयी दिवाली रे,
हम तो साधू हैं, संत किस्म के,
थोडे में तृप्ति हो जाती है,
बस इतनी ख़ुशी ही काफी है कि,
इस बार दिवाली पर बधाई देने
घर आयेगी साली रे,
लो आयी दिवाली रे,
दिवाली कि मुबारकबाद।
झोल्तानमा
शुक्र मनाइए कि दिवाली ही आई है, दिवाला नहीं :)
जवाब देंहटाएंआलोक
i like this poem.Thanks to write this type of poem
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