सोमवार, 29 अक्तूबर 2007

मेहेंगाई का राग व्यंग्य दोहे

हो जाने दो सब्जी मेहेंगी,लग जाने दो दालों में आग;
गमलों में उगाओ भाजी, छोडो मेहेंगाई का राग॥

भाड़ में जाये परमाणु मुद्दा, चूल्हे में जाये तकरार,
वाम हो, आम हो, कांग्रेस का काम हो, कुर्सी का चक्कर है यार॥

शेयर मार्केट उछले कूदे, क्या फर्क पर जायेगा,
ज्यादे बने तो हर्षद मेहता, अम्बानी ना बन पायेगा॥

फिल्मों में कॉमेडी का दौर,टीवी पर तलेंट हंट,
ना कोई मुद्दा,ना कोई मकसद, बस देखो अंट शंट॥

कोई उडाये दावत पे दावत, कोई भूखा रह है जाग,
अमीरी का अजगर मोटा है, पर दस्ता है गरीबी का नाग॥

प्रेम प्यार के चक्कर में,पडे हैं अब तो बच्चे भी,
क्लिपिंग और केबल देख कर, हो गए गंदे अच्छे भी॥

नेता हों या अभिनेता दोनो, साथ जा रहे हैं जेल,
जेलें भी फेमस हो गयी, जबसे बढ़ी ये रेलेम पेल॥

बड़ा अजूबा बन गया , क्रिकेट का ये खेल,
कभी सुपेरफास्त तो कभी पटरी से ही उतर जाती है रेल॥

दिवाली के मौसम में , लगी हुई है सेल,
दाम बढ़ा कर दिस्कौंत देने का, बड़ा पुराना खेल॥

बस बहुत हो गया, अब तो , हम और नहीं लिखेंगे आगे ,
कसम उसे है जो पढ़के, कुछ लिखे बिना ही भागे॥

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