बुधवार, 31 अक्तूबर 2007

आरक्षण की लूट

आरक्षण की लूट मची है,
लपक लो अपना स्थान '
कहीं तो फिट हो ही जाओ,
यूं ना खडे रहो नादाँ।

पिछले पचास सालों से यही,
हो रहा है चमत्कार,
जितनी दो माँग बढ़ती जाये,
और कितना चाहिए यार॥

कुर्सी और वोटों के चक्कर में,
बेचारी बेबस है सरकार,
माँग विरोध में पब्लिक अब तो ,
फुकें है बस कार॥

कोई मांगे धर्म के नाम पर ,
किसी का है आधार जात,
जो इनमे है कहीं नहीं,
उसकी धेले की औकात॥

नौकरी ,शिक्षा , और प्रमोशन,
सबमें चल रहा आरक्षण,
मगर कहाँ कुछ बदला है,
गरीब आज भी है निर्धन॥

गरीब ,मजदूर,और पिछडों को,
पता है अपनी जात का,
उनके नाम पे दूकान लगी है,
उन्हे नहीं पता इस बात का।




झोल टन माँ

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