आरक्षण की लूट मची है,
लपक लो अपना स्थान '
कहीं तो फिट हो ही जाओ,
यूं ना खडे रहो नादाँ।
पिछले पचास सालों से यही,
हो रहा है चमत्कार,
जितनी दो माँग बढ़ती जाये,
और कितना चाहिए यार॥
कुर्सी और वोटों के चक्कर में,
बेचारी बेबस है सरकार,
माँग विरोध में पब्लिक अब तो ,
फुकें है बस कार॥
कोई मांगे धर्म के नाम पर ,
किसी का है आधार जात,
जो इनमे है कहीं नहीं,
उसकी धेले की औकात॥
नौकरी ,शिक्षा , और प्रमोशन,
सबमें चल रहा आरक्षण,
मगर कहाँ कुछ बदला है,
गरीब आज भी है निर्धन॥
गरीब ,मजदूर,और पिछडों को,
पता है अपनी जात का,
उनके नाम पे दूकान लगी है,
उन्हे नहीं पता इस बात का।
झोल टन माँ
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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला