पिछले एक सप्ताह के एकांतवास में ,छत पर अपनी बगिया में सत्तर अस्सी पौधे लगा चुका हूँ | फूल पत्तों के अलावा फिलहाल तोरी ,भिंडी ,घीया ,पालक ,धनिया ,नीम्बू मिर्च सब उगाई लगाई जा रही है |
दिन का अधिक समय छत पर बनी इस बगिया नुमा आँगन में ही बीत रहा है | सुबह शाम झाड़ू लगा कर पत्तों ,फूलों की पंखुड़ियों को समेटना , नथुने भीनी भीनी गमक से भर जाते हैं | लगता है जैसे गाँव पहुँच गया हूँ |
फुर्सत ही फुर्सत है सो ढेर सारी किताबें ,डायरी ,कोरे कागज़ और चाय या कॉफ़ी से भरा हुआ मग ,छत पर बनी हुई इस पत्थर की मेज़ पर विराजमान मिलेंगे अक्सर | पास वाली पत्त्थर की बेंच पर बुलबुल अपने तमाम खिलौने और कॉमिक्स की फ़ौज के साथ पूरे दिन अपने स्कूल और मैडम की कमाल की बातें बताती रहती है |
आसपास पूरी शान्ति है सो छत पर चिड़िया ,गिलहरी ,मैना , तितली ,भौरें और जाने कितने प्राणी अपना अपना एकांतवास हमारे साथ मानने आ रहे हैं | सब मानो यही कह रहे हैं , क्यों भाई ,आ गए न बुद्धू ,लौट के अपने घर
आसपास पूरी शान्ति है सो छत पर चिड़िया ,गिलहरी ,मैना , तितली ,भौरें और जाने कितने प्राणी अपना अपना एकांतवास हमारे साथ मानने आ रहे हैं | सब मानो यही कह रहे हैं , क्यों भाई ,आ गए न बुद्धू ,लौट के अपने घर
यहाँ भी यही हाल है। ऊँ शांति टाईप। शुभकामनाएं नवसम्वत्सर की।
जवाब देंहटाएंजी सर और अभी तो ये आगे भी रहने वाला है। टिप्पणी के लिए आभार सर
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