शनिवार, 24 अगस्त 2019

दिल्ली से जयपुर ,उदयपुर ,माउंटआबू ....वाया रोड (तृतीय भाग )





इस यात्रा के किस्से आप यहां और यहां पढ़ सकते हैं

  जीपीएस होने के बावजूद भी हम थोड़ी देर के लिए अजमेर से आगे जाने के रास्ते में अपना अनियमित मार्ग भूलकर दूसरे रास्ते की ओर बढ़ गए मगर जल्दी ही हमें एहसास हो गया कि शायद हम एक गलत टर्न ले चुके हैं ऐसे में बेहतर यह होता है कि आप रास्ते में पड़ने वाले हैं हर छोटी दुकान कोई बीच में पढ़ने वाला कस्बा हो वहां किसी से भी पूछताछ करते चलें और हां सिर्फ एक  व्यक्ति  या इंसान या इंसान से पूछ कर ही ना निश्चिंत न  हो जाएं आपको आगे और भी व्यक्तियों से पूछते हुए आगे जाना चाहिए ताकि क्रॉस चेकिंग भी हो जाए और आप ठीक-ठाक रास्ते पर चलते रहें |

 इस दौरान बच्चों को भूख लगने लगी थी और प्यास भी | साथ रखा पानी भी अब खत्म हो रहा था | हम धीरे-धीरे उदयपुर की और बढ़ते  जा रहे थे मगर कोई कायदे  का ढाबा या छोटा दुकान देखने में नहीं आ रहा था ऐसे में यह सोचा गया कि किसी भी छोटे कस्बे से जो भी फल खीरा ककड़ी आदि मिलेगा उसे ले लिया जाए और कार में ही खाते हुए  चला जाए और हमने  किया भी यही | अब हमें धीरे धीरे उदयपुर से नजदीकी का एहसास होने लगा था | उदयपुर से बहुत पहले से ही आपको संगमरमर ,ग्रेनाइट आदि पत्थरों टाइलों की दुकानें गोदाम और कारखाने दिखाई देने लगते हैं |

इस बीच मेरे फेसबुक स्टेटस से मेरी छोटी बहन जो वहां उदयपुर में सपरिवार पिछले कई वर्षों से रह रही थी  उसे अंदाजा लग गया था कि हम जयपुर के रास्ते उदयपुर पहुंच रहे हैं और उसने हमारे वहां पहुंचने से पहले ही मुझसे यह वादा ले लिया कि मैं वहां पहुंचते ही सीधा उसके घर चला लूंगा |  किंतु क्योंकि मेरा कार्यक्रम पहले से तय था और अन्य सहकर्मियों के साथ मेरी बुकिंग भी वहां के स्थानीय होटल ट्रीबो  पार्क क्लासिक में हो चुकी थी इसलिए हमने पहले वहां रुकने का निर्णय किया हम आसानी से होटल में पहुंच गए |



यहां एक बात मैं बताता चलूं कि राजस्थान मैं अपने बहुत सारे सफर के दौरान जो बात एक ख़ास बात मैंने गौर की वो ये  कि यहां राजस्थान की स्थानीय गाड़ियों के अलावा जो वाहन सबसे अधिक संख्या में देखे पाए जा रहे थे वो  गुजरात नंबर वाले थे जाहिर था कि पड़ोसी राज्य होने के कारण हुआ गुजरात के जैन समाज व हिंदू धर्मावलंबियों से संबंधित बहुत सारे स्थानों के उदयपुर व  माउंट आबू में उपलब्ध होने के कारण ही यह होता है |

शाम होते होते हम  होटल पहुंच गए , हाथ मुंह धोकर तरोताजा हो ही रहे थे कि इतने में बहनोई साहब व बहन भी आ पहुंचे  |  हम सब सीधा छोटी बहन के यहां पहुंच गए वहीं  चाय पीते हुए हमने अपने आगे के कार्यक्रम के बारे में बताया तो ये  तय हुआ कि अगले दिन सुबह हम उदयपुर घूमेंगे (उस वक्त मुझे नहीं पता था की ये उदयपुर में हमारे पदार्पण  जैसा होगा और ये शहर इस तरह से दिल के करीब बैठ जाएगा कि एक वर्ष में ही चार बार आना जाना होगा और आखिरकार वहाँ पर स्थाई निवास बनाने के लिए भी मन उद्धत हो जाएगा )  और एक सिर्फ एक दिन उदयपुर घूमने के बाद हम उससे अगले दिन माउंट आबू के लिए निकल जाएंगे|

 2 दिन माउंट आबू में बिताने  के बाद जो  आखरी के दो दिन होंगे वह फिर दोबारा बहन के परिवार के साथ गुजारा जाएगा |  शाम ढल चुकी थी और उदयपुर की बहुत सारी खासियत में से एक यह  भी है कि वहां देर रात तक जागने या बाजारों में दुकानें खुली रखने भीड़भाड़ का कोई चलन नहीं है  9 9:30 बजे तक शांति फैलने लगती थी हम पूरे दिन के सफर के बाद थके हुए थे सो होटल में लेटते ही गहरी नींद के आगोश में चले गए ।


 अगली सुबह जब तक हम नहा धोकर घूमने की तैयारी कर रहे थे तब तक बहन और बहनोई भी हमें हमारे होटल में ही ज्वाइन करने आ चुके थे बच्चे सब स्कूल चले गए थे इसलिए वह हमारे साथ नहीं आ पाए जिसकी भरपाई हमने वापस आने पर की | 

 पहला पड़ाव उदयपुर का सिटी पैलेस था जो वहां के सबसे मुख्य आकर्षण स्थलों व कहा जाए कि उदयपुर की दूरी माना जाता था राजा उदय सिंह द्वारा निर्मित यह महल जिसे  सिटी पैलेस के नाम से जाना जाता है | मुख्य रूप से इसे एक संग्रहालय का रूप दे दिया गया है | उस वक्त की जिंदगी को देखने समझने के लिए उस वक्त के संसाधनों व उनके उपयोग को जानने के लिए गौरवशाली इतिहास से परिचित होने वह अपने बच्चों को बनाने के लिए संग्रहालय सबसे खूबसूरत और सबसे सटीक होते हैं जयपुर की तरह ही उदयपुर में भी हमारे साथ हजारों देसी विदेशी पर्यटक घूम रहे थे कुछ कॉलेज स्कूल के छात्र-छात्राओं का समूह में हमारे साथ ही स्थिति में था यहां में एक चीज और बता दूं कि सिटी पैलेस में यदि आप अपनी गाड़ी के साथ जा रहे हैं या खुद भी पैदल जा रहे हैं तो अन्य पर्यटक स्थलों की अपेक्षा उदयपुर के इस पयर्टन स्थल का दर्शन और भ्रमण शुल्क बहुत लोगों को थोड़ा ज्यादा लग सकता है | किन्तु अंदर पहुंचने पर ये पैसा वसूल हो जाने जैसा है | 




सिटी पैलेस उदयपुर 

ये हरियाली पूरे उदयपुर क्षेत्र की पहचान है 

राजस्थान के फूल आपके मन पर बरसों तक छपे रहते हैं 







यहाँ बोटिंग का आनंद भी लिया जा सकता है 

ये उस समय की तोप 







सिटी पैलेस की नक्काशीदार खिड़की अद्भुत शिल्प का नमूना है 



महल की खिड़की से दिखता उदयपुर 









उस समय भंडारण के लिए बने बड़े बर्तन 



बहन एवं बहनोई जी के साथ ,फोटो पुत्र आयुष ले रहे हैं 


इसके बाद हम वहीं से नज़दीक करनी माता मंदिर के लिए निकले जहां पैदल और रोपवे द्वारा पहुंचा जा सकता है , हमने रोपवे का अनुभव कभी भी नहीं किया था इसलिए बच्चों का मन देखते हुए यही निर्णय किया गया कि रोपवे से ही चला जाए | 




मंदिर के प्रांगण से लिया हुआ चित्र 

ऊपर से पूरा शहर झील सब दिखाई देता है 


करनी माता 

इसके बाद वहीं साथ ही एक छोटे से पार्क में बहन व परिवार के साथ ,बहन द्वारा घर से बना कर लाए गए भोजन को दरी बिछाकर पिकनिक वाले अंदाज़ में निपटाया गया | बच्चे थोड़ी देर तक झूलों और हम उतनी देर तक फूलों के साथ आनंद लेते रहे |


 और इसके बाद हम चल पड़े महाराणा प्रताप स्मारक स्थल व पार्क | शहर की दूसरी छोर पर बना हुआ यह मनोरम स्थल बहुत शांत और चारों तरफ बहुत ही सुन्दर फूलों से सजा हुआ है | जैसे कि यहाँ के अधिकाँश पहाड़ी स्थल हैं





हमारा सफर अब आबू रोड की तरफ बढ़ चला था जहां हमने दो दिनों तक आबू की गजब चमत्कारिक धरती को जाना समझा।



 जारी है। ..........

4 टिप्‍पणियां:

  1. ब्लॉग बुलेटिन टीम की ओर से आप सब को कृष्णाजन्माष्टमी के पावन अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं!!


    ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 24/08/2019 की बुलेटिन, " कृष्णाजन्माष्टमी के पावन अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. बहुत सुंदर यात्रा संस्मरण साथ ही बेहतरीन चित्र सज्जा।

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    उत्तर
    1. पढ़ने और प्रतिक्रिया देने के लिए आपका आभार मित्र स्नेह बनाये रखियेगा

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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला

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