हिंदी अंतर्जाल का चेहरा , अपने पैदा होने से अब तक लगातार इतना तेज़ी से बदलता रहा है कि , कभी तो उसको साहित्य अपने निशाने पर लेता है ,ये कह कर कि इस पर जो कुछ भी उपलब्ध कराया जाता है वो स्तरहीन है , जबकि उन्हें भलीभांति मालूम होता है कि अब तो अंतर्जाल पर पूरा साहित्य इतिहास समग्र उपलब्धता की ओर अग्रसर है । कभी मीडिया , इसे अपने आपको न्यू मीडिया कहने कहलाने पर आडे हाथों लेता है । और सबसे कमाल की बात ये है कि इसके बावजूद भी सबको सबकी खबर रहती है और गाहे बेगाहे एक दूसरे की लाइन क्रॉस भी करते रहते हैं । इस बार मामला कुछ ज्यादा अलग इसलिए है क्योंकि इस बार तो एक नज़र सरकार ने भी अपनी टिका दी है और टेढी नज़र टिकाई है । लो जी जुम्मा जुम्मा अभी तो दस बरस भी नहीं हुए । अपने इतने से घंटों दिनों के सफ़र में हिंदी अंतर्जाल ने न सिर्फ़ माध्यम और मंच बदले बल्कि , अपना नज़रिया शैली और दिशा भी बदली ।
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बीच बीच में सेवा प्रदाता कंपनियों के परिवर्तन या ऐसे ही किसी कारणों के लोचा में फ़ंसकर झटके खाते इन मंचों के लिए विपदा पे आफ़त भी कुछ इस तरह की आई कि ,एक एक करके अलग अलग कई कारणों से एग्रीगेटर सेवा साइटें बंद हो गई या रुक गईं । दुनिया देश , फ़टाफ़ट जिंदगी की आदत को अपना रहा था , क्रिकेट भी टेस्ट मैच से लेकर ट्वेंटी ट्वेंटी मोड में पहुंच चुकी थी ऐसे में लोगों को त्वरित से भी तेज़ संवाद और संप्रेषण का हर नया उपाय ज्यादा लुभा रहा था । जिस ब्लॉगर ने अपनी मुफ़्त और अदभुत सेवा यानि ब्लॉग के माध्यम से विश्व अंतर्जाल पर धूम मचा दी और कभी बीबीसी समाचार सेवा की प्रमुख समाचार सूत्र के रूप में विख्यात हुई , उस सेवा को , ट्विट्टर , फ़ेसबुक और यू ट्यूब के बडे विस्तारित जाल ने कडी टक्कर दी ।
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इन सब कारणों ने हिंदी ब्लॉगिंग में कोल्ड ब्लॉगिंग का दौर चला दिया ।
कोल्ड क्या इसे तो चिल्ड ब्लॉगिंग कहिए , वर्तमान में लोकप्रिय एक एग्रीगेटर " हमारीवाणी " के पहले पन्ने की पोस्टें शाम तक भी एक पन्ने तक ही सीमित सी हो कर रह गई हों जैसे । सबके पास नियमित ब्लॉग नहीं लिखने , नहीं लिख पाने और यहां तक कि , नहीं पढ पाने और नहीं टिप्पणी करने या कर पाने के बहाने या कारण थे । लेकिन ट्विट्टर , फ़ेसबुक , प्लस ,और इन जैसे वैकल्पिक मंचों पर गहमागहमी चलती रही । इन सबके बावजूद एक कमाल की बात ये रही कि हिंदी ब्लॉगिंग में मज़हबी कटटरपंथ से जुडी पोस्टों ने गजब रफ़्तार पकड ली । अन्य भाषाओं का तो पता नहीं किंतु मेरा पिछले पांच वर्ष का अनुभव यही बताता है कि किसी भी विवाद के होते ही हिदी ब्लॉगिंग सक्रियता के अपने चरम मोड पर होती है । पिछ्ले दिनों सुना कि ऐसी ही एक पोस्ट से हिंदी ब्लॉगिग ने कोल्ड ब्लॉगिंग से बोल्ड ब्लॉगिंग की इमेज बना ली या बनी हुई घोषित कर करवा दी गई । अब ये तो इत्तेफ़ाक रहा कि एक संयोग भर कौन जाने लेकिन , बोल्ड ब्लॉगिंग ने आपनी अगली पारी के लिए आज के भारत "इंडिया टुडे " के मुख पृष्ठ को ही मुद्दा बना दिया । लेकिन इन सबका प्रभाव ये रहा कि बहुत दिनों बाद बहुत सी पोस्टों पर बहस और विमर्श की एक ऐसी महफ़िल जम गई कि समां बंध गया ।
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अब रही बात ब्लॉगर मित्रों दोस्तों की तो , सब कहीं न कहीं लगे तो रहे , कोई प्रकाशन , तो कोई प्रकाशक से उलझे रहे , कई अपनी जिम्मेदारियों और पारिवारिक दायित्वों को संपन्न करने में लगे रहे , तो कई फ़ेसबुक और ट्विट्टर को धुनने में लगे रहे ,कईयों ने तो हार, प्रहार , लुहार तक पर पीएचडी कर डाली इस बीच , हम भी इन्हीं में से एक रहे । कहते हैं कि हिंदी ब्लॉगजगत में हमेशा ही गुटबाजी और समीकरणों की बात होती है , और कमाल ये है कि ये बदलते रहते हैं , खूब बदलते हैं । नाम ले ले के पोस्टें लिखने , एक दूसरे की टांग खींचने और और सभी भाषाई मर्यादाओं को तोड कर दंड पेलने की कवायद तो पहले से भी होती रही है , अलबत्ता इसकी रफ़्तार कम ज्यादा होती रही है । आने वाले दिनों में अंतर्जाल के बहुत सी बंदिशों और पाबंदियों के दायरे में आने की पूरी संभावना है ऐसे में यदि हिंदी अंतर्जाल पर लिखने पढने वाले किसी भी वजह से उदासीन होते हैं या अपनी उपस्थिति अपने विचारों से प्रशासन को कोई मौका देते हैं तो ये आत्मघाती कदम साबित होगा । सबसे जरूरी ये समझना है कि यहां विचारों का आना और बिल्कुल सीधे सीधे आना एक ताकत भी है और कमज़ोरी भी ।
ब्लॉगिंग से फेसबुक की ओर प्रस्थान के कारणों पर अच्छा प्रकाश डाला है ।
जवाब देंहटाएंहालाँकि ब्लॉगिंग में होने वाली बहस का असर ज्यादा देर तक दिखाई देता है , जबकि फेसबुक पर मिनटों में पोस्ट बदलती हैं और सैकड़ों , हजारों फ्रेंड्स के रहते पोस्ट जल्दी ही गुमनाम हो जाती है ।
फेसबुक हो या ब्लॉग - लेखकों को अपनी जिम्मेदारी का अहसास तो होना ही चाहिए । सरकार भी इसी ओर ही सोच रही है जो ज़ायज़ है ।
जिस तरह ब्लॉग्स पर अक्सर घमशान मच जाता है और बेहूदा बातें होने लगती हैं , उसी तरह फेसबुक पर भी अक्सर वाहियात बातें देखने / पढने को मिलती हैं । लेकिन मैं समझता हूँ कि ब्लॉगर्स को ज्यादा जिम्मेदार होना चाहिए ।
ईमानदार विश्लेषण है।
जवाब देंहटाएंबिलकुल सहिये कहें हैं झाजी !
जवाब देंहटाएंब्लॉगिंग और फेसबुक एक-दूसरे के पूरक हैं,खाने वाले नहीं.
जिम्मेदारी से और गंभीर-लेखन से ही इस महासागर में बने और बचे रहा जा सकता है !
Good analysis. Very soon I'll write more on this topic.
जवाब देंहटाएंसमय सबसे बड़ा समीक्षक और संपादक साबित होता है, यहां भी होगा.
जवाब देंहटाएंलेखक तो ब्लागिंग पर ही जीवित रहेगा।
जवाब देंहटाएंअजय जी बहुत सही विश्लेषण है.. बिना संपादक के छपने और प्रकाशित होने का आभास ब्लोगर को गैरजिम्मेदार बना रहा है.. यदि कोई नकेल सरकार तैयार कर रही है तो हम ही जिम्मेदार होंगे.. गत दिनों कुछ गह्त्नाएं बहुत दुर्भाग्यपूर्ण रही हैं... यदि अवसर है आभासी मिडिया में तो जिम्मेदारी भी यह मांग करती है...
जवाब देंहटाएंअभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ ही विश्वसनीयता भी बनी रहे इसके लिए ज़रूरी है..... सटीक स्पष्ट विश्लेषण
जवाब देंहटाएंसटीक विश्लेषण ।
जवाब देंहटाएंयह विश्लेषण बहुत कुछ सोचने को विवश करता।
जवाब देंहटाएंये तो सही हैं कि ...फेसबुक ...बहुत हद तक ब्लोग्स को इफेक्ट कर रहा हैं ....ब्लोग्स पर आने वाले ब्लोगेर्स की संख्या में कमी आई हैं ...फेसबुक बार हर बहस का मुद्दा छिड़ जाने से ...पाठकों का यहाँ आना कम हुआ हैं
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