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चित्र पर क्लिक करके आप Right to recall ..फ़ेसबुक समूह मंच पर पहुंच सकते हैं |
अभी देश जिस परिवर्तनशील दौर से गुजर रहा है वो न सिर्फ़ देश के राजनीतिक सामाजिक वर्तमान और भविष्य के लिए संवेदनशील और महत्वपूर्ण है बल्कि पूरे विश्व में फ़ैले हुए भारतीय समाज के उन तमाम लोगो के लिए भी जिन्हें वहां दूर बैठे अब भी इस देश की चिंता खाए जाती है , जो समुंदर पार होते हुए भी हिंदी समाचार चैनल देख रहे होते हैं , सिर्फ़ अपनों की खबर के लिए , पिछले कुछ दिन और काल इस लिहाज़ से बहुत ही महत्वपूर्ण रहे हैं ।
ऐसा नहीं है कि सिर्फ़ इस सरकार ने घोटालों और घपलों का जयमाल अपने गले में वरण किया है बल्कि इससे पहले भी आम भारतीय को ऐसी ही नायाब सरकार और अनमोल मंत्रीगण मिलते रहे हैं । खुद इसी राजनीतिक पार्टी की एक सरकार जो मौनी बाबा नामक एक प्राणी चलाया करते थे , ने उस समय घपलों और घोटालों का एक नया राष्ट्रीय(अंतरराष्ट्रीय भी हो सकता है ) रिकॉर्ड अपने नाम किया था । किंतु अब परिस्थितियां बहुत बदल चुकी हैं और बहुत तेजी से बदलती जा रही हैं । चाहे दो रोटी की तलाश में गाव से निकल कर शहरों आ पहुंचे लोगों को रोटी मिली न मिली ये तो पता नहीं किंतु अक्ल जरूर मिल गई , इतनी तो जरूर ही कि वो हजारों लाखों के न सही करोडों अरबों के घोटाले की खबरों को समझ सके । रही सही कसर , टीवी , रेडियो और इंटरनेट ने पूरी कर दी है । अब तो कई बातें लोगों को सरकार से पहले ही पता चल जाती हैं , और अक्सर सरकार से ज्यादा पता लग जाती है । और यही बात सरकार को सबसे ज्यादा नागवार गुजरती है कि आम जनता को किसी भी सूरत में सरकार से ज्यादा पता नहीं लगना चाहिए । अब देखिए सरकार के अलावा पब्लिक को कॉमनवेल्थ खेलों के खेल के बारे में पता चल गया तो हो ही गई न गडबड । अब बेशक इस खेल को भारतीय खिलाडियों की सफ़लता के लिए याद किया जाए या न किया जाए , कलमाडी के कुकर्मों के लिए जरूर याद किया जाएगा । खैर , तो कहने का मतलब ये कि अब सरकार चतुर है तो पब्ल्कि भी चालाक न सही कम से कम होशियार तो हो ही चुकी है ।
अब जनता ये बात बहुत ही अच्छी तरह से समझ चुकी है कि सर्प सिर्फ़ अलग अलग रंगों की केंचुली धारण किए रहता है किंतु भीतर से तो वो सर्प ही रहता है और सांप के चरित्र के अनुरूप ही व्यवहार करता है । इसलिए उन्हें काबू में लाने के लिए अब कुछ कुशल सपेरों ने बागडोर थाम ली है । न सिर्फ़ थाम ली है बल्कि अब उन्होंने अपने अपने फ़ंदों में सत्ता और सरकार को फ़ंसाना भी शुरू कर दिया है । जनता तो पहले से ही परिवर्तन की बाट जोह रही थी , उसे तो ये मौका मानो मुंह मांगी मुराद की तरह मिल गया है । आज आम आदमी को इससे कोई फ़र्क नहीं पड रहा है कि वो जिनके पीछे चल कर सरकार के सामने सीना तानने जा रहा है , उसकी अपनी क्या व्याख्या है , वो तो बस उस जनाक्रोश का एक हिस्सा बन जाने को आतुर है ताकि कल को कोई ये न कहे कि जब क्रांति बुनी जा रही थी तो तुमने भी देखा तो था न यकीनन । सिविल सोसायटी , योग गुरू , स्वनिर्मित जनसगठनो का चेहरा लिए हुए आम जनता ने सरकार और सत्ता के सामने उन प्रश्नों को न सिर्फ़ रखना शुरू किया जिनका उत्तर वे बरसों से चाह रही थीं । पहले सूचना के अधिकार के लिए कानून की लडाई में मिली जीत और उससे आए बदलाव ने इस लडाई में एक उत्प्रेरक का काम किया । इसके बाद जनलोकपाल बिल के लिए टीम अन्ना द्वारा छेडा गया आंदोलन जल्दी ही पूरे देश भर का समर बन गया । इसके साथ ही योग गुरू रामदेव ने भी एक मुद्दा विदेशों मे काले धन की वापसी के लिए कठोर कानून बनाए जाने की मांग को लेकर एक नया आंदोलन छेड दिया ।
सबसे अहम बात जो सामने निकल कर आई वो ये कि इन और इन जैसे तमाम प्रयासों के साथ जिस तरह का सलूक सरकार और उसके मंत्रियों ने किया या अब भी कर रहे हैं और उससे भी बडी बात कि जिस तरह का घोर उपेक्षित रवैय्या , प्रधानमंत्री , यूपीए अध्यक्षा , और तेज़ तर्रार महासचिव और युवा लोगों में खासे लोकप्रिय माने जाने वाले युवा नेता ने अपना रखा है उससे तो स्थिति और स्पष्ट हो गई है आम जनता के सामने । जनलोकपाल बिल और विदेशों में छिपे काले धन के बिल को लाए जाने के दबाव को बेशक सरकार कुछ दिनों के लिए टला हुआ मान रही हो , लेकिन ऐसा है नहीं वास्तव में । बल्कि अब तो ये साफ़ हो गया है कि सरकार को अपना वजूद और सत्ता को बचाए रखने के लिए दो में से एक रास्ता चुनना होगा । भ्रष्टाचार के पाले में खुद को रखें या फ़िर कि जनता द्वारा मांगे जा रहे कानूनी अधिकारों को बना कर उनके साथ रहें । सरकार को ये ध्यान में रखना चाहिए कि , जनलोकपाल बिल , विदेशों मे छिपे काले धन को वापस लाने के लिए कानून और राईट टू रिकॉल यानि प्रतिनिधि वापस बुलाओ कानून , जैसे नियम और अधिकार जनता ने अपने किसी फ़ायदे के लिए नहीं मांगे हैं , ये उसी लोकतंत्र को जीवित रखने के लिए बहुत जरूरी है जिसकी रक्षा करने का दावा , इनका पुरज़ोर विरोध करने वाले राजनेता दशकों से करते आए हैं । अब वक्त आ गया है कि जनता सरकार की आंखों में आंखें डाल के पूछे कि बताओ , ये कानून क्यों नहीं बन सकता , और कब कैसे बनेगा ?
इस मुहिम को एक और अस्त्र देते हुए हमने एक नई लडाई की योजना बनाई है - Right to recall - यानि जनप्रतिनिधि वापस बुलाओ कानून । सीधे सरल शब्दों में समझा जाए तो राजनेताओं सेीक बार चुनाव जीत कर ,उन कुर्सियों पर बैठे रहने का अधिकार छीन लेना जिन्हें पाते ही वे सत्ता के मद में न सिर्फ़ चूर हो जाते हैं बल्कि देश , समाज और कानून से भी बहुत दूर हो जाते हैं । आज राजनेताओं के लिए राजनीति समाज सेवा नहीं बल्कि विशुद्ध मुनाफ़े वाला कारोबार मात्र बन कर रह गया है । अब आकलन विश्लेषण किया जाता है कि यदि छोटे स्तर पर चुनाव जीतने में पैसा लगाया जाए तो कितना मुनाफ़ा होगा और बडे स्तर पर कितना , कारण एक सिर्फ़ एक , एक बार कुर्सी मिल जाए बस । तो क्यों न उनके सरों पर एक अनिश्चितता की ऐसी तलवार टांगी जाए कि जिसकी धार उसे अपने कर्तव्य को न भूलने के लिए विवश कर सके । इसी उद्देश्य के साथ फ़ेसबुक पर एक समूह का गठन किया गया है ...Right to recall ।यहां ये जानना समीचीन होगा कि इस कानून को अमेरिका के अठारह राज्यों में मान्यता मिली हुई है अब तक दो राज्यों की सरकार इस अधिकार के उपयोग से जनता ने गिरा दी । भारत में भी कई स्तरों पर मध्यप्रदेश , और छत्तीसगढ जैसे राज्यों में इसे सफ़लतापूर्वक आजमाया जा चुका है ।
सभी मित्रों के स्नेह और साथ का ज़ज़्बा इतना शानदार रहा है कि बनने के मात्र चौबीस घंटों के भीतर ही इसकी सदस्य संख्या छ: सौ के पार जा पहुंची है । फ़िलहाल तो इसकी सारी रुपरेखा तय करनी बांकी है , लेकिन हम बहुत जल्दी ही सरकार को ये संदेश देने जा रहे हैं कि अभी उसकी मुसीबतें खत्म नहीं होने जा रही हैं । इस समूह मंच पर हम प्रति सप्ताह एक बहस का आयोजन करेंगे , जो बाद में ब्लॉग्पोस्ट के जरिए ब्लॉगिंग की दुनिया से रूबरू होगा और उसके बाद उसका सार , अन्य माध्यमों ,पत्र पत्रिकाओं के रास्ते आम आदमी तक । जल्दी ही समूह कानूनविदों की राह और सलाह से इसकी आगे की तैयारी के बारे में योजना बनाएगा । तो आप भी जुडिए न इस मुहिम में हमारे साथ कि आइए बता दें इस सरकार को , इस व्यवस्था को कि ,,,,,सुन रहे हो सत्तावालों , एक और जनांदोलन जन्म लेने को है .
मैं भी शामिल हो रहा हूँ, आपने ये अच्छा बताया, आपका आभार रहेगा।
जवाब देंहटाएंयह भी आवश्यक हो जायेगा एक दिन।
जवाब देंहटाएंवैसे नैतिकता के नाते किसी भी भ्रष्ट जनप्रतिनिधियों को वापस बुलाने का अधिकार है इस देश की जनता को,लेकिन ये हरामखोर भ्रष्ट जन प्रतिनिधि इतने बेशर्म हो चुके हैं की संसदीय लोकतंत्र की दुहाई लेकर इस देश व समाज का खून चूसने का काम कर रहें हैं अब इनको कानून बनाकर मंत्री या सांसद जैसे सम्माननीय पद से उतारकर जूते मारने की भी जरूरत है अगर संसदीय लोकतंत्र की मर्यादा को बचाना है तो ...इसके लिए हर प्रयास चाहे वो वेब मिडिया पर हो या जमीनी स्तर पर किया जाना जरूर चाहिए...
जवाब देंहटाएंNice post.
जवाब देंहटाएं'करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान' के तहत बाबा के पास अनुभव भी आ ही जाएगा । अस्ल बात मुददे और माददे की है।
मुददा उनका ठीक है और माददा भी उचित खान पान के ज़रिए उनमें बढ़ ही जाएगा।
अब जब कि बाबा ने खाना पीना शुरू कर ही दिया है और एक क्षत्रिय की तरह उन्होंने अंतिम साँस तक लड़ने का ऐलान भी कर दिया है तो हालात का तक़ाज़ा है कि या तो वे पी. टी. ऊषा को अपना कोच बना लें या फिर क्षत्रियों की तरह वीरोचित भोजन ग्रहण करना शुरू कर दें ।
क्या आदमी को बुज़दिल बना देता है लौकी का जूस ?
आप तो सारी व्यवस्था एक साथ ही ठीक करने के समर्थक हैं। गलत बात है।
जवाब देंहटाएंयह अधिकार तो बहुत पहले ही मिल जाना चाहिए था।
जवाब देंहटाएंसार्थक पहल...जुटे रहिये, डटे रहिये.
जवाब देंहटाएंjanm to le chika hai janandolan
जवाब देंहटाएं5 JUNE रामलीला मैदान :एक छिपा हुआ सत्य एक प्रत्यक्षदर्शी के शब्दों में
" समज देने वाली पोस्ट ...इसी पोस्ट की आवश्कता थी सर ..सुक्रिया "
जवाब देंहटाएंस्वामी रामदेव के आन्दोलन से यह तो ज्ञात हो ही गया हैं कि भारत देश में भ्रस्टाचार बिलकुल नहीं हैं. क्योंकि अगर भारत में भ्रस्टाचार होता तो जनता स्वामी रामदेव के साथ होती. दिल्ली पुलिस के डंडे के डर ने जनता के दिमाग से भ्रस्टाचार नामक कीटाणु को दूर कर दिया.
जवाब देंहटाएंलेकिन एक बात समझ में नहीं आती, कि समय -समय पर मीडिया भ्रस्टाचार के मुद्दों को प्रमुख खबर क्यों बना देती हैं. बहुत ज्यादे तो नहीं मगर जितना मुझे याद हैं कि लालू प्रसाद यादव , कुछ दिनों जेल में रहने के बाद आज इज्जत पूर्वक चैन कि रोटी खा रहे हैं , मीडिया और सरकार ने बेवजह उन्हें चारा घोटाला , और ना जाने कौन -कौन से घोटाले में बदनाम कर दिया.
राजीव गाँधी का बोफोर्स घोटाला, नरसिंह राव का घोटाला, बूटा सिंह का मामला, जार्ज फर्ना डीज का ताबूत घोटाला, जयललिता के घर से एक हज़ार जोड़ी जुती बरामद करना, मायावती के उपर फर्जी आरोप लगाना कि (यमुना एक्सप्रेसवे और ताज एक्सप्रेसवे ) . आदर्श सोसाइटी घोटाला. दिल्ली में कलमाड़ी , राजा, कनिमोझी को बेवजह तिहाड़ जेल में रखना. और भी ना जाने क्या-क्या .
ek achhi pahal ham sath hain
जवाब देंहटाएंतारकेश्वर भाई ,
जवाब देंहटाएंभ्रष्टाचार के मुद्दे को सिर्फ़ रामदेव के आंदोलन से ही न जोड के देखें । ये बहुत ही बडी समस्या है इसके लिए तो अभी जाने कितने बाबा और कितने अन्ना को सामने लाना आना होगा । और यकीन जानिए कि वो आएंगे भी ।
आपने जिन तमाम राजनीतिज्ञों का उदाहरण सामने रखा , वो सब कानूनी खामियों और प्रशासनिक गठजोड के चलते बच निकले हैं , लेकिन अब जिस तरह की परिस्थितियां बन रही हैं उसमें किसी के लिए भी बच निकलना आसान नहीं होगा । राजनेता न सिर्फ़ बेशर्म बल्कि ढीठ भी हो चुके हैं इसलिए जनता को भी अब नए सिरे से और नए तरीकों से इनसे निपटना होगा और वो निपट भी रही है ..याद रखना चाहिए कि जनता अब जूतों को सिर्फ़ पहन ही नहीं रहे है , वे अब पहना भी रहे हैं
बहुत नेक विचार है। वर्तमान में तो मंत्रीगण राजाशाही की वाणी बोलने लगे हैं कि हम सांसद है और यह हमारा अधिकार है। जनता कौन होती है? यदि जनता को कुछ करना है तो पहले सांसद बनकर दिखाए आदि आदि। अब कोई मुझे बताए कि ये जो चिल्ला रहे हैं अपने संवैधानिक अधिकारों के लिए तो प्रधानमंत्री तो चुनकर नहीं आए हैं। वे तो सीधे ही राज्यसभा से आए हैं! उनमें और जनता में क्या अन्तर है जिसे आज सिविल सोसायटी कहा जा रहा है। याने हम सब सिविलीयन है और वे सब राजा?
जवाब देंहटाएंअच्छी सोच है। पर मुझे लगता है कि इसके लिए अभी हमें लम्बी पारी खेलनी पडेगी।
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हॉट मॉडल केली ब्रुक...
नदी : एक चिंतन यात्रा।
लीगल सैल से मिले वकील की मैंने अपनी शिकायत उच्चस्तर के अधिकारीयों के पास भेज तो दी हैं. अब बस देखना हैं कि-वो खुद कितने बड़े ईमानदार है और अब मेरी शिकायत उनकी ईमानदारी पर ही एक प्रश्नचिन्ह है
जवाब देंहटाएंमैंने दिल्ली पुलिस के कमिश्नर श्री बी.के. गुप्ता जी को एक पत्र कल ही लिखकर भेजा है कि-दोषी को सजा हो और निर्दोष शोषित न हो. दिल्ली पुलिस विभाग में फैली अव्यवस्था मैं सुधार करें
कदम-कदम पर भ्रष्टाचार ने अब मेरी जीने की इच्छा खत्म कर दी है.. माननीय राष्ट्रपति जी मुझे इच्छा मृत्यु प्रदान करके कृतार्थ करें मैंने जो भी कदम उठाया है. वो सब मज़बूरी मैं लिया गया निर्णय है. हो सकता कुछ लोगों को यह पसंद न आये लेकिन जिस पर बीत रही होती हैं उसको ही पता होता है कि किस पीड़ा से गुजर रहा है.
मेरी पत्नी और सुसराल वालों ने महिलाओं के हितों के लिए बनाये कानूनों का दुरपयोग करते हुए मेरे ऊपर फर्जी केस दर्ज करवा दिए..मैंने पत्नी की जो मानसिक यातनाएं भुगती हैं थोड़ी बहुत पूंजी अपने कार्यों के माध्यम जमा की थी.सभी कार्य बंद होने के, बिमारियों की दवाइयों में और केसों की भागदौड़ में खर्च होने के कारण आज स्थिति यह है कि-पत्रकार हूँ इसलिए भीख भी नहीं मांग सकता हूँ और अपना ज़मीर व ईमान बेच नहीं सकता हूँ.
achchhi post...
जवाब देंहटाएंब्लॉग जगत के जिस शख्स ने हमारीवाणी.कॉम का नामकरण किया था उससे पहले उसने ही हमारीअंजुमन.कॉम का भी नामकरण किया था.
achchhi post...
जवाब देंहटाएंब्लॉग जगत के जिस शख्स ने हमारीवाणी.कॉम का नामकरण किया था उससे पहले उसने ही हमारीअंजुमन.कॉम का भी नामकरण किया था.
ई ध्यान रखना कि बाल-बच्चन की खातिर तनी माल-मत्ता हुइ तब्बै बुलाना !
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