रविवार, 8 अगस्त 2010

हरेक इंसान के अंदर होता है एक चैंपियन ........अजय कुमार झा


शायद इस बात को मैं पहले भी कई बार कह चुका हूं कि स्कूली दिनों में, मैं कभी भी एक मेधावी छात्र ,नहीं रहा , हां ऐसा भी नहीं रहा कि अभिभावकों को इस बात की चिंता भी नहीं रहती थी कि कहीं फ़ेल तो नहीं हो जाएगा बेटा । और यकीनन उस समय आज की गलाकाट प्रतिस्पर्धी युग की शुरूआत भी नहीं हुई थी इसीलिए , वो आजकल का सुसाईडल माहौल भी नहीं था । हम मजे में पढाई लिखाई के साथ स्कूल का लुत्फ़ उठाए जाए रहे थे ।

पढाई में गंभीरता का आलम तो बस ये था कि , मैट्रिक की परीक्षा देते हुए जब उस वर्ष आते जाते , लोग बाग रोक टोक कर यही पूछते कि , " और कैसी हो रही है परीक्षाएं ?" हम सोचते कि यार ये वार्षिक परीक्षाएं तो हर साल ही इसी तरह होती हैं , फ़िर इस बार कौन खास लड्डू पेडे जडे हुए हैं , जो सभी को इत्ती चिंता हो रही है । मगर ये तो भांप ही गए थे कि कुछ न कुछ गडबड तो है ही । खैर जब रिजल्ट आया तो ....सम्मान के साथ थर्ड डिवीजन से पास होकर ....हम अपने मां बाबूजी के लाडले बने ही रहे । मगर उस समय एक बात बडे ही गहरे तक उतरी , हुआ ये कि कुछ हमारे सहपाठी , जो पढाई में हमसे भी गए गुजरे थे ...........सोचिए क्या जमाना था वो भी .हमसे भी गए गुजरे .......उनके नंबर हमसे कहीं ज्यादा था .....अब ये मत पूछिएगा कि कैसे थे ........चलिए नए बच्चों के लिए बताते चलते हैं कि .....ये उस वक्त एक कला होती थी ..बडी ही बारीक बारीक सी कला ...एक दम फ़र्रे दार हुनर था .....और एक से एक विद्यार्थी थे इसके सिद्धहस्त ......आजकल की तरह नहीं कि बस पोथी पढ पढ जग मुआ............तो उसी कलाकारी से संपन्न कुछ सहपाठियों ने हमे भी पीछे छोड दिया ।




मगर उस दिन जो खटका लगा , हालांकि पिताजी माताजी सहित खानदान में किसी को भी ऐसी कोई उम्मीद नहीं थी कि मैट्रिक में हम कोई चमत्कार कर दिखाएंगे कि बाद में रिजल्ट बनाने वाले पर ही शक होने लगे , मगर फ़िर भी झटका तो हमें लगा ही .....और वो दिन और आज का दिन । हमने कभी पीछे मुड कर नहीं देखा ...। मुझे अब तक याद है कि जब भारतीय वायु सेना के लिए मेरा चयन हुआ था तब मेरी उम्र महज अठारह साल थी , मगर चिकित्सकीय परीक्षा के दौरान , बचपन में कुहनी में लगी हुई एक चोट के कारण अनफ़िट करार दिए जाने से मां को मुंह मांगी मुराद मिल गई थी , आखिर पति के बाद पुत्र को भी वर्दी में झेल पाने को , खासकर उस उम्र में , तब वो तैयार नहीं थीं ।

इसके बाद शुरू हुआ वो बैंकिंग की परीक्षाओं के दौर में दौड लगाने का सिलसिला । आलम ये था कि हमारे ही सहपाठियों और मित्रों में से आज कुल चौबीस जन बैंकों की सेवा कर रहे हैं । हम सब जो बचे हुए थे , राजधानी की ओर उड चले । यहां एक वर्ष की जीतोड तैयारी के बाद जो परिणाम आया वो जरूर ही सुखद रहा । कुल पैंतीस परीक्षाएं , और उनमें से उनत्तीस में चयन ...। इसके बाद साक्षात्कार का दौर और अंतिम से रूप से चयन भी हुआ तो आठ आठ स्थानों पर ...। ईपीएफ़ओ, भारतीय रेलवे, दिल्ली उच्च न्यायालय, ऑल इंडिया रेडियो पटना , आदि में ...मगर नियति ने दिल्ली के लिए सब तय कर दिया था ।

और फ़िर एक रेल यात्रा के दौरान मिला एक सहपाठी जिसे मेरी नियुक्ति के बारे में , और उससे अधिक मेरी सफ़लता के बारे में जानकर बहुत ही आश्चर्य हुआ था । वो सोच रहा था कि अबे यार तू ..मतलब कैसे ...? मैं सोच रहा था कि हां सच ही सोच रहा था वो । और मैं जान चुका था कि हरेक आदमी के अंदर एक चैंपियन होता है ...बस जरूरत इस बात की होती है कि वो अपने अंदर छुपे चैंपियन को बाहर आने के लिए कब तैयार करता है ।

यही कुछ हाल खेलों के लिए भी रहा । शारीरिक तौर पर न तो कभी गामा पहलवानों में गिनती रही न ही कभी असार्थ्यवानों में । फ़ुटबॉल, हॉकी, शतरंज, बैडमिंटन, वॉलीबॉल, और क्रिकेट भी ......सभी में साथी खिलाडियों के अनुसार मैं अच्छा खिलाडी थी .....अलबथा कभी स्कूल कॉलेज की टीम में नहीं रहा ...या नहीं लिया गया । लेकिन फ़ंडा वही रहा कि जिस खेल को खेला अपना सब कुछ उसमें झोंकने की कोशिश जरूर रही ।

इसके आगे का सफ़र भी कुछ कुछ ऐसा ही चलता रहा , चाहे वो काम के दौरान प्रेम और फ़िर प्रेम विवाह की बात हो ......चाहे लेखनी को पहले सिर्फ़ शौकिया तौर पर शुरू करने के बाद उसमें सारी व्यावसायिकता डाल देने की बात .....नौकरी के कई सालों बाद .......एक चुनौती के रूप मे विधि की शिक्षा को लेकर उसे पार कर देने की जिद हो या और भी कुछ । मैं अपने अंदर के चैंपियन को पहले टटोलता हूं , मुझे यकीन होता है कि ....वो है तो कहीं भीतर ही ..इसलिए कितने दिनों तक छुपा रह सकता है ...और जैसे ही उससे मिलता हूं ..उसे इतनी रफ़्तार और शक्ति देता हूं कि .............फ़िर सफ़लता दूर नहीं रहती । इसलिए मेरा तो यही मानना है कि .....सबके अंदर एक चैंपियन होता है .......क्यों होता है न ????

19 टिप्‍पणियां:

  1. हां जी, हरेक के अंदर चैंपियन होता है- सो हम देख ही रहे हैं कामनवेल्थ में :) सफ़लताओं के लिए बधाई चैम्पियन जी:) :)

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  2. प्रकृति ने सबको कुछ न कुछ विशेषताएं दी हैं .. जरूरत है उसपर अमल कर उसे सामने लाने की .. पर आज के युग में सबका सदुपयोग कहां हो पाता है ??

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  3. बहुत सार्थक लेख ...खुद की क्षमता को पहचानना ही चैम्पियन का द्योतक है ..

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  4. सार्थक और सराहनीय प्रस्तुती ,शानदार सच्ची अभिव्यक्ति ...

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  5. बिल्कुल सही है जी। होता है हरेक के अंदर चैंपियन। कभी कभी तो डेडली कॉम्बो भी हो जाता है :-)

    रोचक अभिव्यक्ति, प्रेरक प्रसंग, सारगर्भित विचार

    बी एस पाबला

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  6. हाँ जी बिलकुल होता है जी ..............आप में भी है और ..............हे... हे... हे... .......मुझ में भी !!! ;-)

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  7. .....बस वो अंदर के चैम्पियन को पहचानना होता है।

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  8. सच में आप चैंपियन हैं।
    ये स्पिरिट हमेशा जागृत रहे आपमें।

    हर आदमी हर फ़ील्ड में टॉप पर नहीं पहुंच सकता, लेकिन अगर आप कई फ़ील्ड्स में किसी को प्रतिद्वंदिता का अहसास भी करवा सकें तो यह कम नहीं है।

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  9. हरेक आदमी के अंदर एक चैंपियन होता है ...बस जरूरत इस बात की होती है कि वो अपने अंदर छुपे चैंपियन को बाहर आने के लिए कब तैयार करता है ।

    -यह एकदम पते की बात कही आपने...एक सत्य!!

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  10. सही कह रहे हो भैया । सब के अन्दर चैम्पियन होता है । कोई और पहचान पाए या न पाए , खुद को तो पहचान ही लेना चाहिए । दिखा दो दुनिया को कि हम भी किसी से कम नहीं ।

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  11. आप सचमुच में चैम्पियन हैं जी, अपना तो हमें कहीं से लगता नहीं।

    एक चैम्पियन की लव स्टोरी भी लिखियेगा

    प्रणाम

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  12. बिलकुल सही कहा बस खुद की क्षमता को पहचान लें तो चैंपियन बन जाना मुश्किल नही। बहुत प्रेरक और सार्थक आलेख है। बधाई

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  13. हाँ, सबके अंदर एक चैंपियन होता है.
    ..आपकी यह पोस्ट उन तमाम बेरोजगार युवकों के लिए संजीवनी का काम करेगी जो निराश हो चुके हैं.
    सार्थक, प्रेरक पोस्ट के लिए आभार.

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  14. एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
    आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !

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  15. आपने एकदम सही कहा कि हरेक आदमी के अंदर एक चैंपियन होता है...बस जरूरत इस बात की होती है कि वो अपने अंदर छुपे चैंपियन को बाहर आने के लिए कब तैयार करता है...

    आज से कुछ साल पहले मुझे खुद भी नहीं मालुम था कि मैं कभी हास्य-व्यंग्य के लेखक के रूप में स्थापित भी हो सकता हूँ...कभी सोचा ही नहीं था इस बारे में :-)

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  16. ji bahut sahi likha hai aapne...
    Meri Nai Kavita padne ke liye jaroor aaye..
    aapke comments ke intzaar mein...

    A Silent Silence : Khaamosh si ik Pyaas

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  17. आपने जितने कार्य कर दिखाये, वह तो एक चैम्पियन के बस की बात है ही नहीं। पुनः अन्दर झाँक कर देखिये, कई चैम्पियन बैठे होंगे।

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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला

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