जैसे ही ये एक्सक्लूसिव ख़बर हमने अपने मित्र चिटठा सिंग को सुनाई वे हमेशा की तरह बिदक कर बोले ,
यार झा जी, ई सब एक्सलूसिव टाईप ख़बर कहाँ से ढूंढ कर लाते हो आप, और आपही को मिल जाता ई ख़बर सब, कुछो बोल देते हो।
हम भी टनक कर बोले , क्यूँ भाई आपको हमेशा ही ये शिकायत रहती है की हम सारी एक्सक्लूसिव खबर सिर्फ़ ब्लॉगजगत पर ही क्यूँ प्रकाशित करते हैं जबकि अपने इंडिया टी वी, अमेरीका टी वी, जापान टी वी वाले भी उसके लिए कतना पेमेंट करने को तैयार रहते हैं, अजी छोडिये ई सब बात हम तो ब्लॉगजगत के रिपोर्टर हैं। और हाँ शत प्रतिशत सच्ची ख़बर है ये, आईये आपको विस्तार से बताते हैं।
देखिये आप ई तो जानते ही हैं की अपने देश में लोग चुनाव से ज्यादा प्यार करते हैं की क्रिकेट से,( फ़िर जबसे क्रिकेट टीम में चीयर गल्स को भी शामिल कर लिया गया है तब से तो समझिये की क्रिकत्वा का गल्मर और भी बढ़ गया है ) सो ऐसे में किसी अनजान देश में उस खेल के महा कुम्भ को देखने के लिए देशवाशियों को यदि जाना पड़े तो ये तो निहायत ही अत्याचार टाईप वाली बात हुई न। इसलिए फैसला किया गया है की क्यूँ न आम चुनाव को दक्षिण अफ्रीका में करवा लिया जाए। देखिये इस बात के पीछे बहुत जोरदार तर्क दिया गया है भाई। एक तो चुनाव वहां होने से पूरी पारदर्शिता बनी रहेगी, दूसरे आतंकवादी हमले की आशंका भी नहीं रहेगी। अरे वहां कौन जा रहा है हमला करने। हमला करने के लिए अमेरिका , भारत, लन्दन जैसे स्थान ही आरक्षित हैं।
अब रही बात की वहां पर मतदान करने के लिए लोगों को कैसे ले जाया जायेगा। तो इस बात पर भी पूरा मंथन किया गया है। देखो कुल आबादी का आधा प्रतिशत ही अभी मतदान करने लायक हैं, मेरा मतलब वयस्क है, अमा तुम तो वयस्क कहते ही मुझे घूरने लगते हो, मन की वैसे वयस्क है मगर मतदान करने के लिए तो उम्र के हिसाब से वयस्क नहीं है न । तो बची आधी जनसंख्या के लिए वहां जानी की पूरी जिम्मेदारी टाटा भैया पर डाली जा रही है उन्हें इस बात के लिए मनाया जा रहा है अपने सस्ती नैनो को देश सेवा का मौका देते हुए सारी तैयार गाड़ियों तो भाड़े पर लोगों को अफ्रीका ले जाने के लिए करें। वैसे एक बात और भी तय हुई है की, अधिकाँश नेताओं का रेकोर्ड किसी न किसी थाने में तो है ही तो इसलिए एक केंद्रीयकृत प्रणाली के तहत सभी अपने पसंदीदा प्रतिनिधियों को सीधे थाने में जाकर वोट कर सकते हैं।
इस पूरे प्रकरण में इस बात को भी महत्व पूर्ण मानते हुए की आख़िर मास्टर ब्लास्टर को भी आई पी एल का बाहर जाना पसंद नहीं है तो उनकी भावना का पूरा सम्मान करने के लिए देश को थोड़े बहुत कष्ट और छोटे मोटे बदलाव तो करने ही चाहिए.
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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला