मुझे पहले ही पता था कि इस बार ऑस्कर में कुछ न कुछ तो इस पिक्चर के हत्थे लगने वाला है ही, अमा अंग्रेजों ने अपने यहाँ की ऐसी ऐसी चीजें देखी और दिखाई, वो कमाल की कलात्मकता से ,( देखिये कलात्मकता की बात तो करनी ही पड़ेगी, वरना दिल्ली, मुंबई और कोलकाता में रहने वाले किसने स्लम नहीं देखा होगा, डॉग नहीं देखा होगा, और रही बात मिलीयेन्यर की तो के बी सी की कृपा से वो भी देख लिए, ) कि कमबख्त कैमरे के कमाल ने पूरे होल्लीवुड को हिला कर रख दिया। जहाँ तक हम भारतीयों की बात है तो क्या करें जी हम तो तेरे सीधे सादे लोग हमें इतनी बड़ी बड़ी बातें समझ नहीं आती। मैं तो शुरू से ही पूछ रहा हूँ, की , ये तो बताओ की पुरूस्कार किसे दे रहे हो, झुग्गी को ,कुत्ते को ,या करोड़पति को । लेकिन कौन सोच रहा है हमारे जैसों की सोच के बारे में, लाख गलियाँ देते फिरें अंग्रेजों को मगर उनको जो लगा उन्होंने किया, हम नाचें या रोयें, उन्होंने कौन सा आकर देखना है।
लेकिन आज तो इस पूरे घटनाक्रम में एक और नया मोड़ आ गया। मुझे विश्वस्त सूत्रों से पहले ही ये तो पता चल गया था की झुग्गी के कुत्तों में इस बात को लेकर गहरा रोष है की पूरे पिक्चर की टायटल उनके नाम पर थी और इसीलिए चमकी भी, मगर पुरे पिक्चर में उनके बारे में कहीं कुछ नहीं था। मगर आज सुबह सुबह ही पता चला की उनका गुस्सा तो कुछ भी नहीं , असली नाराजगी तो खटमलों को है। कारण पूछने पर बताया की, आप बताओ, सब जय हो जय हो कर रहे हैं, जबकि असलीयत तो यही है की हमारा गाना उनसे ज्यादा फैमस हुआ है, वही " खटिये पर मैं पडी थी, रिंग रिंग रिंगा, रिंग रिंग रिंगा वाला, जिसमें साफ़ तौर पर हमारी पूरी बिरादरी यानि पूरे खटमल परिवार पर तरह तरह के आरोप लग्याये गए हैं,चलिए ये भी हम सह गए। मगर ये तो सरासर नाइंसाफी है, कहीं किसी ने भी हमारे नाम का जिक्र तक नहीं किया। हम ही हैं जो न स्लम में फर्क करते हैं न ही करोडपती में और तो और कुत्तों में भी हम पिस्सू बनके पूरे भाव से उनकी सेवा करते हैं। मीडिया ने भी गुलजार साहब और भाई सुखविंदर की अनुपस्थिति की कोई न कोई कहानी तो बता ही दी, एक हम ही छूट गए। मैं तो आपसे ये सब इसलिए कह रहा हूँ
कहीं ऐसा न हो की आप ब्लॉगर लोग भी हमें भूल जाओ, क्योंकि मुझे पता है की आप लोग भी ऑस्कर ऑस्कर ही कर रहे होगे आज॥
अरे नहीं नहीं पिस्सू भाई, मेरा मतलब रिंगा रिंगा खटमल जी , फ़िर आप क्यों दिल पर लेते हो फ़िल्म टाईटैनिक में जहाज बनने वालों को किसने पूछा था, बांकी सबको तो पुरूस्कार मिल ही गया था न.
हम तो विदेश से आयातित माल ही पसंद करते हैं । पुरस्कार भी विदेशी ही अच्छा लगे तो इसमें बुराई ही क्या है ?
जवाब देंहटाएंgaribi kee shandar marketing or pro sship ko mile inam. narayan naraayn
जवाब देंहटाएंऔर खुशी बेबकूफ मच्छरों को
जवाब देंहटाएंHa ha ha ha...bahut sahi kaha..
जवाब देंहटाएंमैं तो शुरू से ही पूछ रहा हूँ, की , ये तो बताओ की पुरूस्कार किसे दे रहे हो, झुग्गी को ,कुत्ते को ,या करोड़पति को....
aap sabka bahut bahut dhanyavaad, padhne aur pasand karne ke liye.
जवाब देंहटाएंमज़ा आ गया ...बहुत शानदार है.
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