पुराने दिन याद करता हूँ तो एक चीज़ जो भुलाए नहीं भूलती वो थी बगैर किसी विकल्प के, यानि सिर्फ़ एक ही ब्रांड की दुनिया। न सिर्फ़ हमारी दैनिक जरूरतों की वस्तयूं बल्कि टी वी , रेडियो तक में सिर्फ़ एक या ज्यादा से ज्यादा दो विकल्प होते थे सबके पास। दूरदर्शन , एक, आकाशवाणी एक टाटा नमक एक बाटा जूता एक , बोरोलीन एक, पैराशूट नारियल तेल एक, सरसों तेल एक, फोन एक , हाँ साबुन पौउदर जरूर एक से ज्यादा दिख जाते थे। कहीं कोई मुफ्त स्कीम नहीं कोई इनाम नहीं , कोई गलाकाट प्रतियोगिता नहीं थे। मगर सब कुछ मजे में था । उलटा लोगों में निश्चिन्तता थी की ये है तो ठीक है और यही है भी। अजी मुझे तो याद है की रुकावट के लिए खेद है को भी हम सब्र से बैठ कर देखते थे.समय बदला और बाज़ार में भीड़ बढ़ी। खरीददार बढे तो सामान बनाने और बेचने वाले भी बढे।
आज सबके सामने विकल्पों की बड़ी ( या शायद भ्रमित करने वाली छोटी ) दुनिया खुली हुई है। आज कुछ भी ऐसा नहीं है जिसे चुनने से पहले सबके पास ढेरों विकल्प न हों। अजी, सामानों की तो बातें क्या कहें , शिक्षा, पढाई के विषय , नौकरी, और यहाँ तक की , दोस्ती, रिश्ते तक में भी सबके पास विकल्प हैं। बास करना तो ये है की आपको अपनी वरीयताओं या कहूँ की जरूरतों के हिसाब से बस चुनना भर है। और ऐसा नहीं है की इसके लिए आपको कोई आत्मग्लानी हो , क्योंकि आज सबके साथ ही तो ऐसा हो रहा है। बस शुक्र है तो इतना की माता- पिता, गुरुजनों , घर , परिवार का अब भी कोई विकल्प नहीं है और ना ही कभी हो सकते हैं। हां, इतना जरूर है की इन विकल्पों की दुनिया ने सबमें एक अतृप्ति सी , एक अनबुझी प्यास , एक अंधी दौड़ सी भर कर रख दी है, जाने हम अपनी आने वाली नस्लों को क्या देने जा रहे हैं.
विकल्प इतने हैं यहाँ दुबई में ........ऐसा लगता है की बस लोग चलने के लिए चल रहे हैं.....कहाँ जाना है, क्या पाना है , ये समझने के लिए समय नही है यहाँ , बस अंधी चकाचौंध की दुनिया है
जवाब देंहटाएंसच है-एक अंधी दौड़ ही तो है किन्तु बस, इस दौड़ में शामिल न होने का शायद कोई विकल्प नहीं है.
जवाब देंहटाएंजितने विकल्प उतनी ही उलझने है।
जवाब देंहटाएंआजकल तो हर चीज का विकल्प है । कभी-कभी तो लोग माता-पिता का विकल्प भी ढूढ़ लेते है। :(
चिंता न करे आने वाली पीड़ी इस समस्या का भी कोई विकल्प ढूंढ लेगी....
जवाब देंहटाएंaap sabkaa dhanyavaad. padhne aur saraahne ke liye .
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